डोडा में हिंदुओं का सुनियोजित नरसंहार: 310 की हत्या, डेमोग्राफी बदलने की साजिश, आतंक का खौफनाक इतिहास
310 Hindus killed in Doda massacre | जम्मू। जम्मू-कश्मीर के डोडा जिले में 1990 के दशक से हिंदुओं के खिलाफ चली हिंसा की लहर ने न केवल सैकड़ों जिंदगियां छीनीं, बल्कि एक सुनियोजित साजिश के तहत क्षेत्र की जनसांख्यिकी (डेमोग्राफी) को बदलने का प्रयास किया गया। पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों ने डोडा के सामरिक महत्व को समझते हुए हिंदुओं को चुन-चुनकर निशाना बनाया, उनके घर-द्वार छीने, बलात्कार और हत्याओं के जरिए उन्हें पलायन के लिए मजबूर किया। 1993 से 2001 के बीच 310 हिंदुओं की हत्या की गई, जिसमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल थे। यह हिंसा केवल कश्मीर घाटी तक सीमित नहीं थी, बल्कि डोडा जैसे दुर्गम क्षेत्रों में भी आतंकवादियों ने खौफ का साम्राज्य स्थापित किया। 310 Hindus killed in Doda massacre
डोडा का सामरिक महत्व और आतंक की जड़ें
डोडा, जम्मू क्षेत्र का एक पहाड़ी जिला, अपने सामरिक महत्व के कारण आतंकवादियों के निशाने पर रहा। यह क्षेत्र हिमाचल प्रदेश, उधमपुर, लद्दाख और अनंतनाग से घिरा हुआ है, और राष्ट्रीय राजमार्ग (NH-1A) के जरिए कश्मीर घाटी से जुड़ा है। 1990 के दशक में डोडा का क्षेत्र 11,691 वर्ग किलोमीटर में फैला था, जिसमें जम्मू-कश्मीर के 26% जंगल शामिल थे। घने जंगल, उबड़-खाबड़ पहाड़ी रास्ते और पगडंडियां आतंकवादियों के लिए शरण लेने और हमले करने के लिए मुफीद थीं। उस समय डोडा में सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) और केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) की केवल पांच यूनिट थीं, जबकि भारतीय सेना का ध्यान कश्मीर घाटी पर केंद्रित था। इस कमी का फायदा उठाकर आतंकवादियों ने डोडा को हिंदुओं से “मुक्त” करने की साजिश रची।
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1991 की जनगणना के अनुसार, डोडा में मुस्लिम आबादी 57.3% (ज्यादातर कश्मीरी) और हिंदू आबादी 42.22% थी। अनुसूचित जाति की आबादी 8.74% थी। इस मिश्रित जनसांख्यिकी और सामरिक महत्व के कारण डोडा आतंकवादियों के लिए एक आसान लक्ष्य बन गया। पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी संगठनों, जैसे लश्कर-ए-तैयबा, हरकत-उल-मुजाहिदीन और हिज्बुल मुजाहिदीन ने इस क्षेत्र में हिंदुओं को निशाना बनाकर हिंसा की लहर शुरू की।
हिंदुओं पर अत्याचार: क्रूरता की दास्तां
1990 के दशक की शुरुआत में डोडा में आतंकवादियों ने हिंदुओं को चुन-चुनकर मारा। घरों से अपहरण, बलात्कार, और बेरहमी से हत्या की घटनाएं आम हो गईं। आतंकवादियों का मकसद हिंदुओं को डराकर क्षेत्र से भगाना और डेमोग्राफी को मुस्लिम बहुल बनाना था। कुछ प्रमुख घटनाएं इस प्रकार हैं:
- 1992: 19 दिसंबर को बीजेपी के जिला महासचिव संतोष कुमार ठाकुर की उनके घर के बाहर गोली मारकर हत्या की गई। यह हिंदुओं को निशाना बनाने की शुरुआत थी।
- 1993: 18 फरवरी को मोहन सिंह को उनके बिजरानी स्थित घर से अपहरण कर प्रताड़ित किया गया और उनका शव घोड़े की पीठ पर लटकाया गया। उसी दिन कश्मीरा सिंह का अपहरण हुआ, और छह दिन बाद उनका यातनाग्रस्त शव नहर में मिला। 14 अप्रैल को मस्त नाथ योगी के भतीजे की हत्या की गई, क्योंकि उन्होंने आतंकवाद के खिलाफ सेना का समर्थन किया था।
- 14 अगस्त 1993: किश्तवाड़ से जम्मू जा रही एक बस को आतंकवादियों ने रोका। हिंदू पुरुषों और बच्चों को अलग कर 15 लोगों को गोलियों से भून दिया गया। इस हमले का नेतृत्व हरकत-उल-मुजाहिदीन के आतंकी आरिफ हुसैन ने किया।
- 1997: चंपानेरी गांव में एक बारात पर हमला हुआ, जिसमें 25 हिंदू पुरुषों को गोलियों से मार डाला गया। एक महीने बाद कलाबन में 23 और किश्तवाड़ के हॉर्ना और केशवान में 16 हिंदुओं की हत्या की गई।
- 2006: थर्वा और कुलहंड में आतंकवादियों ने भारतीय सेना की वर्दी में 22 हिंदुओं को मार डाला। उसी दिन उधमपुर के बसंतगढ़ में 13 हिंदू चरवाहों की हत्या की गई।
पलायन और डेमोग्राफी बदलने की साजिश
आतंकवादियों ने हिंदुओं को डराने के लिए क्रूर तरीके अपनाए। घरों को लूटा गया, संपत्तियां जब्त की गईं, और कुछ स्थानीय मुस्लिमों ने हिंदुओं की जमीनों को आपस में बांट लिया। 1994 में गोहा और गुंडोह तहसील के कई गांवों से 822 हिंदू परिवार हिमाचल प्रदेश के चंबा में पलायन कर गए। आतंकवादियों ने हिंदुओं के खिलाफ हिंसा को “जिहाद” का नाम दिया और इसे भारत से जम्मू-कश्मीर को अलग करने की रणनीति का हिस्सा बनाया।
संयुक्त राष्ट्र के मध्यस्थ ओवेन डिक्सन की 1950 की जनमत संग्रह की योजना ने भी इस क्षेत्र की संवेदनशीलता को बढ़ाया। डिक्सन ने डोडा, राजौरी और पुंछ जैसे मुस्लिम बहुल क्षेत्रों को कश्मीर घाटी में मिलाने और चिनाब नदी के उत्तर में सीमा बनाने का प्रस्ताव दिया था। इस प्रस्ताव ने आतंकवादियों को और प्रोत्साहन दिया।
हिंदुओं का प्रतिरोध और ग्राम रक्षा समितियां
हिंदू समुदाय ने आतंक के खिलाफ जवाबी कार्रवाई की कोशिश की। मोंडा गांव में गुस्साए हिंदुओं ने एक आतंकी के घर में आग लगा दी। 1995 में सरकार ने ग्राम रक्षा समिति (वीडीसी) कार्यक्रम शुरू किया, जिसके तहत पूर्व सैनिकों और कमजोर समुदायों को आत्मरक्षा के लिए हथियार दिए गए। डोडा के 330 समुदाय इस कार्यक्रम में शामिल हुए। 1994 में आतंकवाद विरोधी बल (डेल्टा) का गठन हुआ, जिसमें सीआरपीएफ, बीएसएफ और राष्ट्रीय राइफल्स की बटालियनें शामिल थीं। 1996 तक कई कुख्यात आतंकी, जैसे लश्कर-ए-तैयबा के जुलकर नैन और हिज्बुल मुजाहिदीन के जावेद कुरैशी मारे गए।
आतंक का विस्तार: हिमाचल तक पहुंच
आतंकवाद डोडा तक सीमित नहीं रहा। 1997 में हिमाचल प्रदेश के चंबा जिले में आतंकवादियों ने मजदूर शिविरों पर हमला किया, जिसमें 11 मजदूर मारे गए। कलाबन में हिंदुओं को बंधक बनाकर उनकी हत्या की गई। 2006 तक आतंकवादियों ने डोडा, उधमपुर और राजौरी में हिंदुओं को निशाना बनाना जारी रखा।
हाल की घटनाएं और चुनौतियां
हालांकि 1990 और 2000 के दशक की तुलना में हिंसा में कमी आई है, लेकिन हिंदुओं पर हमले रुके नहीं हैं। 7 नवंबर 2024 को किश्तवाड़ में वीडीसी के दो सदस्यों, कुलदीप कुमार और नजीर अहमद की हत्या कर दी गई। उनकी आंखें निकाल ली गईं और “कश्मीर टाइगर्स” ने इसकी जिम्मेदारी ली। सितंबर 2024 में बसंतगढ़ मुठभेड़ में मारे गए एक पाकिस्तानी आतंकी के फोन से हत्या की तस्वीरें बरामद हुईं। 2023 में राजौरी के डांगरी गांव में 7 हिंदुओं, जिनमें 2 बच्चे शामिल थे, की हत्या की गई।
कश्मीरी हिंदुओं का दर्द और डोडा की अनसुनी कहानी
कश्मीर घाटी में हिंदुओं का नरसंहार, जैसे 2003 का नंदीमार्ग नरसंहार जिसमें 24 हिंदू मारे गए, और अमरनाथ यात्रा पर हमले, विश्व स्तर पर चर्चा में रहे। लेकिन डोडा में हिंदुओं की त्रासदी को उतना ध्यान नहीं मिला। आतंकवादियों का मकसद डोडा को दूसरा कश्मीर बनाना था, जहां हिंदू आबादी को खत्म कर मुस्लिम बहुल क्षेत्र बनाया जाए। इस साजिश में कुछ स्थानीय मुस्लिमों की भागीदारी और वामपंथी-उदारवादी समर्थन ने हिंदुओं के दर्द को और बढ़ाया। 310 Hindus killed in Doda massacre
डोडा में हिंदुओं के खिलाफ हिंसा की कहानी केवल एक क्षेत्र की त्रासदी नहीं, बल्कि एक सुनियोजित साजिश का हिस्सा है, जिसका मकसद भारत के इस हिस्से को अस्थिर करना था। सरकार ने सुरक्षाबलों की तैनाती बढ़ाकर और वीडीसी जैसे कदम उठाकर स्थिति को नियंत्रित करने की कोशिश की, लेकिनचुनौतियां बरकरार हैं। आतंकवाद का खतरा आज भी मौजूद है, और डोडा जैसेक्षेत्रों में शांति स्थापित करने के लिएदीर्घकालिक रणनीति की जरूरत है। हिंदुओं के पुनर्वास, उनकी सुरक्षा और क्षेत्र की आर्थिक स्थिरता के लिए ठोस कदम उठाए जाने की आवश्यकता है। 310 Hindus killed in Doda massacre
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मैं इंदर सिंह चौधरी वर्ष 2005 से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय हूं। मैंने मास कम्यूनिकेशन में स्नातकोत्तर (M.A.) किया है। वर्ष 2007 से 2012 तक मैं दैनिक भास्कर, उज्जैन में कार्यरत रहा, जहाँ पत्रकारिता के विभिन्न पहलुओं का व्यावहारिक अनुभव प्राप्त किया।
वर्ष 2013 से 2023 तक मैंने अपना मीडिया हाउस ‘Hi Media’ संचालित किया, जो उज्जैन में एक विश्वसनीय नाम बना। डिजिटल पत्रकारिता के युग में, मैंने सितंबर 2023 में पुनः दैनिक भास्कर से जुड़ते हुए साथ ही https://mpnewsbrief.com/ नाम से एक न्यूज़ पोर्टल शुरू किया है। इस पोर्टल के माध्यम से मैं करेंट अफेयर्स, स्वास्थ्य, ज्योतिष, कृषि और धर्म जैसे विषयों पर सामग्री प्रकाशित करता हूं। फ़िलहाल मैं अकेले ही इस पोर्टल का संचालन कर रहा हूं, इसलिए सामग्री सीमित हो सकती है, लेकिन गुणवत्ता से कोई समझौता नहीं होता।