संजा लोकोत्सव : ग्रामीण संस्कृति और नारी शक्ति का अद्भुत संगम

संजा लोकोत्सव : ग्रामीण संस्कृति और नारी शक्ति का अद्भुत संगम

Sanja Lokotsavसंजा लोकोत्सव क्या है और क्यों मनाया जाता है? संजा लोकोत्सव (Sanja Lokotsav) मध्य भारत का एक प्रमुख ग्रामीण नारी उत्सव है, जिसे खासकर मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। यह पर्व मुख्य रूप से कन्याओं और विवाहित महिलाओं द्वारा मनाया जाता है। इसे पितृपक्ष (Pitru Paksha) के दौरान मनाया जाता है और यह लगभग 16 दिनों तक चलता है। इस वर्ष यह 8 सितंबर से 21 सितंबर 2025 तक मनाया जाएगा। 

इस त्योहार का मुख्य उद्देश्य है – नारी शक्ति की पूजा, पारिवारिक सुख-समृद्धि और कन्याओं को अच्छे वर का आशीर्वाद। Sanja Lokotsav

संजा की उत्पत्ति और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि क्या है?

संजा (Sanja) की परंपरा लोकमान्यताओं से जुड़ी है। कहा जाता है कि प्राचीन समय में पितृपक्ष में लोग अपने पूर्वजों का श्राद्ध और तर्पण करते थे। इसी दौरान कन्याएँ संजा माता की पूजा करती थीं ताकि उनके परिवार को सुख-शांति मिले और उन्हें अच्छा पति व समृद्ध जीवन मिले।कुछ मान्यताओं के अनुसार, संजा देवी को पार्वती या उमा का रूप भी माना जाता है, जो कन्याओं की रक्षा करती हैं।संजा की पूजा और प्रतिमा निर्माण कैसे किया जाता है?प्रतिमा निर्माण (Idol Making) – घर की दीवार या आँगन में गोबर से चौकोर या गोलाकार आकृति बनाई जाती है। इसे “संजा” कहा जाता है।

  1. सजावट (Decoration) – इस आकृति को फूलों, खील-बताशों, रंगों, मिट्टी के खिलौनों और लोक आकृतियों से सजाया जाता है।आरती और गीत (Songs and Rituals) – शाम के समय लड़कियाँ इकट्ठा होकर संजा की आरती करती हैं और लोकगीत गाती हैं।विसर्जन (Immersion) – पितृपक्ष की समाप्ति पर संजा की प्रतिमा को तालाब या नदी में विसर्जित किया जाता है।

संजा लोकोत्सव के प्रमुख लोकगीत कौन-कौन से हैं?

संजा पर्व की असली खूबसूरती इसके लोकगीत (Folk Songs) में है। ये गीत पीढ़ी दर पीढ़ी गाए जाते रहे हैं। इनमें पारिवारिक, सामाजिक और धार्मिक संदेश होते हैं।

  1. कुछ प्रसिद्ध गीत इस प्रकार हैं –
  2. “संजा बहना आ गइयाँ…”
  3. “संजा तेरा कोठा, चिरैया करे बोला…”
  4. “संजा मैया आयी रे, खुशियाँ संग लाई रे…”
  5. इन गीतों में सामूहिकता, बहनापा और नारी जीवन की खुशियों-दुखों का चित्रण होता है।

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संजा पर्व का सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व क्या है?

  1. नारी शक्ति की आराधना (Women Empowerment) – यह पर्व महिलाओं और कन्याओं के लिए समर्पित है।
  2. सामूहिकता और भाईचारा (Unity and Bonding) – लड़कियाँ सामूहिक रूप से पूजा करती हैं, जिससे आपसी मेलजोल बढ़ता है।
  3. लोककला का संरक्षण (Preservation of Folk Art) – सजावट, गीत और चित्रकारी से ग्रामीण कला जीवित रहती है।
  4. पारिवारिक सुख-शांति (Family Well-being) – मान्यता है कि संजा माता की पूजा से परिवार में खुशहाली आती है।

संजा पर्व को ग्रामीण कला और परंपराओं से कैसे जोड़ा जाता है?

  1. संजा केवल पूजा का पर्व नहीं बल्कि एक लोककला उत्सव (Folk Art Festival) भी है।
  2. लड़कियाँ गोबर की आकृतियों में सूरज, चाँद, हाथी, घोड़ा, फूल-पत्तियाँ, पंखे, झूले आदि बनाती हैं।
  3. ये आकृतियाँ वारली पेंटिंग और अल्पना कला जैसी प्रतीत होती हैं।
  4. इससे रचनात्मकता और कलात्मक प्रतिभा को प्रोत्साहन मिलता है।

क्या संजा लोकोत्सव केवल महिलाओं तक सीमित है?

  1. हालांकि यह पर्व मुख्य रूप से कन्याओं और महिलाओं का है, लेकिन इसमें पूरा गाँव अप्रत्यक्ष रूप से शामिल होता है।
  2. पुरुष और बच्चे भी गीत सुनने और विसर्जन में शामिल होते हैं।
  3. यह त्यौहार पूरे गाँव की सांस्कृतिक धरोहर (Cultural Heritage) को दर्शाता है।

आधुनिक समय में संजा लोकोत्सव का स्वरूप कैसा है?

  1. आज के समय में भी संजा पर्व ग्रामीण इलाकों में धूमधाम से मनाया जाता है, लेकिन कुछ बदलाव आए हैं –
  2. पहले संजा केवल मिट्टी और गोबर से बनाई जाती थी, अब रंग-बिरंगे कागज, सजावटी सामग्री का उपयोग होता है।
  3. अब संजा पर्व केवल घर तक सीमित नहीं बल्कि सांस्कृतिक कार्यक्रमों और मेलों में भी मनाया जाता है।
  4. शहरी इलाकों में रहने वाली महिलाएँ भी इसे अपार्टमेंट और कॉलोनियों में मनाती हैं। Sanja Lokotsav

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