मंदसौर में किसान का नवाचार: गेहूं का भूसा दबाने से मक्का उत्पादन 30% बढ़ा, गुजरात से लाए केले के पौधे, बाग महकने लगा

Mandsour News  | मंदसौर में किसान का नवाचार: गेहूं का भूसा दबाने से मक्का उत्पादन 30% बढ़ा, गुजरात से लाए केले के पौधे, बाग महकने लगा

Mandsour News  | मध्य प्रदेश के मंदसौर जिले के नाहरगढ़ में किसान नंदलाल धाकड़ ने जैविक खेती में नवाचार कर मिट्टी की उर्वरता और फसल उत्पादन को नए आयाम दिए हैं। गेहूं की कटाई के बाद बचे भूसे को जलाने के बजाय, उन्होंने इसे विशेष तकनीक से खेत में दबाकर मिट्टी की उर्वरता बढ़ाई। इस तकनीक से न केवल मक्का का उत्पादन 30% तक बढ़ा, बल्कि रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता भी 80% कम हुई। साथ ही, गुजरात से लाए केले के पौधों के साथ तीन साल की रिसर्च के बाद, मालवा में केले की खेती भी सफल हो रही है। Mandsour News

भूसे से बढ़ी मिट्टी की ताकत

नंदलाल ने बताया कि गेहूं के भूसे को बायो-डीकंपोजर के साथ मिलाकर खेत में दबाने से मिट्टी की नमी और पोषक तत्वों में वृद्धि होती है। यह तकनीक मिट्टी के भौतिक और रासायनिक गुणों में सुधार करती है, खरपतवार नियंत्रण में मदद करती है और मृदा सूक्ष्मजीवों को बढ़ावा देती है। भूसे को गहरी जुताई या बारीक काटकर मिट्टी में मिलाया जाता है, जो सड़कर प्राकृतिक खाद का काम करता है। इससे रासायनिक खाद और दवाओं की लागत कम हुई, और खेत की उर्वरता लंबे समय तक बनी रहती है।

मक्का उत्पादन में 30% की वृद्धि

इस नवाचार से मक्का की फसल में उल्लेखनीय सुधार हुआ। पहले प्रति बीघा 10 क्विंटल उत्पादन होता था, लेकिन अब यह 13-14 क्विंटल तक पहुंच गया है, यानी 30% की वृद्धि। रासायनिक उर्वरकों का उपयोग 80% तक कम हो गया, और जरूरत पड़ने पर ही सीमित मात्रा में खाद का उपयोग किया जाता है। इससे लागत कम हुई और लाभ बढ़ा। Mandsour News

केले की खेती में सफल प्रयोग

नंदलाल ने तीन साल तक रिसर्च कर गुजरात से केले के पौधे लाए और छोटे स्तर पर प्रयोग शुरू किए। अलग-अलग पौधों पर खाद और दवा प्रबंधन आजमाने के बाद, उन्होंने सैकड़ों पौधे रोपे। मालवा में केले की खेती असामान्य है, लेकिन उनका यह प्रयोग सफल रहा। केले की फसल 12 महीने की है, और जून तक फल मिलेंगे। इसके अलावा, वे आम, टमाटर और मिर्च की खेती की भी तैयारी कर रहे हैं। Mandsour News

यह तकनीक न केवल लागत कम करती है, बल्कि पर्यावरण को भी बचाती है। भूसे को जलाने के बजाय मिट्टी में मिलाने से खेत की उर्वरताबढ़ती है, और जैविक खेती से लंबे समय तक स्थायी लाभ मिलता है। मालवा में उनकी केले की खेती एक मिसाल बन रही है, जो अन्यकिसानों को भी प्रेरित कर सकती है। Mandsour News


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