नवग्रहों की पौराणिक कथाएं: ज्योतिषीय महत्व और दिव्य रहस्य

नवग्रहों की पौराणिक कथाएं: ज्योतिषीय महत्व और दिव्य रहस्य

Mythology of the Navagrahas | हिंदू ज्योतिष और पौराणिक कथाओं में नवग्रहों—सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु और केतु—का विशेष महत्व है। ये ग्रह न केवल खगोलीय पिंड हैं, बल्कि इन्हें जीवन, कर्म और आध्यात्मिकता को प्रभावित करने वाली शक्तियों के रूप में पूजा जाता है। प्रत्येक ग्रह की अपनी अनूठी कहानी, स्वभाव और ज्योतिषीय प्रभाव हैं। यह लेख नवग्रहों की पौराणिक कथाओं, उनके धार्मिक महत्व और पश्चिमी संस्कृतियों में उनकी तुलना को सरल भाषा में प्रस्तुत करता है।

सूर्य देव: जीवन और शक्ति के स्रोत

हिंदू मान्यता में सूर्य देव को अदिति और कश्यप ऋषि का पुत्र माना जाता है। जब राक्षसों ने देवताओं को परास्त किया, तब अदिति की प्रार्थना पर सूर्य देव आदित्य के रूप में अवतरित हुए और राक्षसों का नाश किया। सूर्य को जीवन, ऊर्जा और प्राण का स्रोत माना जाता है। उनकी पूजा सात घोड़ों वाले रथ के साथ की जाती है, जो सूर्य के सात रंगों (विबग्योर) का प्रतीक है। माना जाता है कि सूर्य देव मेरु पर्वत की परिक्रमा करते हैं, जिससे दिन और रात का चक्र बनता है। पश्चिमी संस्कृति में सूर्य को अपोलो कहा जाता है, जो बृहस्पति और लटोना का पुत्र और डायना का भाई माना जाता है।

चंद्र देव: नक्षत्रों के प्रिय

हरिवंश पुराण के अनुसार, चंद्र देव ऋषि अत्रि के पुत्र हैं और दस दिशाओं ने उनका पालन-पोषण किया। उन्होंने दक्ष प्रजापति की 27 कन्याओं (27 नक्षत्रों) से विवाह किया, लेकिन रोहिणी नक्षत्र को विशेष स्नेह दिया। चंद्र देव ने बृहस्पति की पत्नी तारा के साथ भागने की घटना के कारण दक्ष से क्षय रोग का श्राप प्राप्त किया। इस रिश्ते से बुध देव का जन्म हुआ। पश्चिमी मान्यताओं में चंद्र को वर्जिन मेरी या लूना (डायना) कहा जाता है, जो रात्रि की रानी और प्रजनन की देवी मानी जाती हैं।

मंगल देव: भूमिपुत्र और युद्ध के देवता

मंगल देव को धरती माता का पुत्र माना जाता है, इसलिए इन्हें भौम भी कहा जाता है। एक कथा के अनुसार, जब भगवान विष्णु ने वराह अवतार में पृथ्वी को समुद्र से निकाला, तब धरती माता ने एक पुत्र का वर मांगा, जिसके फलस्वरूप मंगल देव का जन्म हुआ। कुछ कथाओं में इन्हें शिव और पृथ्वी का पुत्र भी माना जाता है। मंगल युद्ध, शक्ति और ऊर्जा के प्रतीक हैं। पश्चिमी ज्योतिष में मंगल को युद्ध और शिकार का देवता माना जाता है, जो बाइबिल में शैतान का प्रतीक है। इनका संबंध सामवेद से भी जोड़ा जाता है।

बुध देव: बुद्धि और संन्यास के प्रतीक

बुध देव चंद्र और तारा (बृहस्पति की पत्नी) के पुत्र हैं। चंद्र द्वारा तारा को अपहरण करने की घटना के बाद, तारा ने बुध को जन्म दिया, जिसे बृहस्पति ने अपनाया। बुध सूर्य के सबसे निकट होने के कारण एक हिस्सा अत्यधिक गर्म (360 डिग्री सेल्सियस) और दूसरा हिस्सा ठंडा रहता है। पश्चिमी संस्कृति में बुध को बृहस्पति और माया का पुत्र माना जाता है और उसे अपोलो का मित्र कहा जाता है। बुध बुद्धि, व्यापार और संन्यास का प्रतीक है।

बृहस्पति देव: ज्ञान और धर्म के गुरु

बृहस्पति देव, देवताओं के गुरु, महर्षि अंगिरा के पुत्र हैं। उनकी माता ने सनत कुमारों से व्रत की विधि सीखकर पुत्र प्राप्ति के लिए तप किया, जिसके फलस्वरूप बृहस्पति का जन्म हुआ। वे बुद्धि और ज्ञान के स्वामी हैं। पश्चिमी संस्कृति में इन्हें ज़ीउस (ग्रीक), अम्मोन (मिस्र), थोर (नॉर्स) और मेरोडाक (बेबीलोन) के रूप में जाना जाता है। बृहस्पति धर्म, नीति और समृद्धि के प्रतीक हैं।

शुक्र देव: सौंदर्य और प्रेम के देवता

शुक्राचार्य, महर्षि भृगु के पुत्र, दानवों के गुरु हैं। भगवान शिव ने उन्हें मृत-संजीवनी विद्या प्रदान की, जो मृतकों को जीवित कर सकती है। शुक्र प्रेम, सौंदर्य, विवाह और सुख-सुविधाओं के देवता हैं। इन्हें महालक्ष्मी का स्वरूप और यजुर्वेद से जोड़ा जाता है। पश्चिमी मान्यताओं में शुक्र को लूसीफर या हिब्रू में एस्टोरेथ कहा जाता है।

शनि देव: कर्म और वैराग्य के स्वामी

शनि देव सूर्य और छाया के पुत्र हैं। उन्हें अक्सर गलत समझा जाता है, लेकिन वे कर्म, न्याय और वैराग्य के प्रतीक हैं। उनकी पत्नी और माता पार्वती द्वारा श्रापित होने के बावजूद, पार्वती ने उन्हें वरदान दिया कि कोई बड़ा कार्य बिना शनि की मंजूरी के पूरा नहीं होगा। शनि यमराज के बड़े भाई हैं और मृत्यु का अधिकार भी रखते हैं। कोई संत बिना शुभ शनि के जन्म नहीं ले सकता। पश्चिमी संस्कृति में शनि को समय और काल का प्रतीक माना जाता है।

राहु और केतु: मायावी ग्रहों की कथा

राहु और केतु की कहानी समुद्र मंथन से जुड़ी है। असुर स्वर्भानु ने चालाकी से देवताओं के बीच बैठकर अमृत पी लिया, लेकिन सूर्य और चंद्र ने उसे पहचान लिया। भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से उसका सिर काट दिया, पर अमृत के प्रभाव से सिर (राहु) और धड़ (केतु) अमर हो गए। राहु सर्पमुखी बन गया, जबकि केतु को ब्राह्मण मिनी ने पाला और उसे सर्प का सिर मिला। राहु और केतु सूर्य-चंद्र से शत्रुता के कारण ग्रहण कराते हैं। ज्योतिष में ये वक्री चाल चलते हैं और डेढ़ साल तक एक राशि में रहते हैं। शिव की पूजा से ये प्रसन्न होते हैं।

नवग्रहों का ज्योतिषीय और सांस्कृतिक महत्व

नवग्रह हिंदू धर्म और ज्योतिष में मानव जीवन को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक माने जाते हैं। प्रत्येक ग्रह का अपना स्वभाव, प्रभाव और पूजा विधान है। सूर्य शक्ति, चंद्र मन, मंगल साहस, बुध बुद्धि, बृहस्पति ज्ञान, शुक्र सौंदर्य, शनि कर्म, राहु माया और केतु वैराग्य का प्रतीक है। पश्चिमी संस्कृतियों में इन ग्रहों को अपोलो, लूना, मार्स, मरकरी, जुपिटर, वीनस, सैटर्न आदि के रूप में देखा जाता है, जो उनकी सांस्कृतिक और धार्मिक मान्यताओं को दर्शाता है।

नवग्रहों की पूजा न केवल ज्योतिषीय दोषों को दूर करती है, बल्कि आध्यात्मिक और मानसिक शांति भी प्रदान करती है। इनकी कथाएं हमें यह सिखाती हैं कि जीवन में संतुलन, कर्म और भक्ति का महत्व सर्वोपरि है। Mythology of the Navagrahas


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