पानी नहीं हैं तो भी बंपर पैदावार देंगी गेहूं की ये किस्‍में

कम पानी वाले क्षेत्रों में खेती के लिए वरदान: सूखा प्रतिरोधी गेहूं

Drought-resistant wheat | आज की बदलती जलवायु और लगातार बढ़ते जल संकट के बीच, कृषि क्षेत्र को नई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। इनमें से एक प्रमुख चुनौती है पानी की कमी, जो विशेष रूप से उन क्षेत्रों को प्रभावित कर रही है जहाँ खेती का मुख्य आधार पारंपरिक सिंचाई पर निर्भर करता है। भारत जैसे देश में, जहाँ अधिकांश खेती मानसून पर आधारित है, पानी की कमी और सूखा बड़ी समस्या बनते जा रहे हैं। ऐसे में सूखा प्रतिरोधी (ड्रॉट-रेजिस्टेंट) गेहूं की किस्में एक महत्वपूर्ण समाधान के रूप में उभर रही हैं। ये किस्में कम पानी में भी उगाई जा सकती हैं और किसानों को अच्छी उपज देती हैं।

सूखा प्रतिरोधी गेहूं का महत्व

भारत में गेहूं एक प्रमुख खाद्यान्न फसल है और इसे रबी मौसम में उगाया जाता है, जब सिंचाई की आवश्यकता अधिक होती है। हालाँकि, पिछले कुछ दशकों में जल संसाधनों पर अत्यधिक दबाव के कारण सिंचाई के लिए पानी की उपलब्धता कम हो गई है। जलवायु परिवर्तन और अनियमित मानसून की वजह से समस्या और भी गंभीर हो गई है। ऐसे में सूखा प्रतिरोधी गेहूं की किस्में किसानों के लिए वरदान साबित हो रही हैं।  Drought-resistant wheat

सूखा प्रतिरोधी गेहूं की किस्मों को विशेष रूप से उन क्षेत्रों के लिए विकसित किया गया है जहाँ पानी की उपलब्धता सीमित होती है। ये किस्में न केवल कम पानी में अच्छी उपज देती हैं, बल्कि उन्हें अत्यधिक गर्मी और सूखा भी सहन करने की क्षमता होती है। इसके अलावा, इन किस्मों को उगाने के लिए किसानों को पारंपरिक गेहूं की तुलना में कम सिंचाई करनी पड़ती है, जिससे पानी की बचत होती है और उत्पादन लागत भी कम होती है।

सूखा प्रतिरोधी गेहूं की प्रमुख किस्में

भारत में कई सूखा प्रतिरोधी गेहूं की किस्में विकसित की गई हैं, जो विभिन्न जलवायु परिस्थितियों और भूगोल के अनुरूप हैं। इनमें से कुछ प्रमुख किस्में निम्नलिखित हैं:

1. HI 1500 (कैविरी)

यह किस्म मध्य भारत के शुष्क क्षेत्रों में उगाई जाती है। इसे भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) द्वारा विकसित किया गया है और यह सूखा प्रतिरोधी होने के साथ-साथ बेहतर पोषण गुणवत्ता भी प्रदान करती है। HI 1500 किस्म की विशेषता यह है कि यह कम पानी में भी उच्च उपज देती है और इसका दाना मोटा तथा चमकदार होता है। Drought-resistant wheat

2. PBW 550

PBW 550 किस्म पंजाब, हरियाणा और राजस्थान के कम पानी वाले क्षेत्रों में उगाई जाती है। यह किस्म सूखा प्रतिरोधी होने के साथ-साथ बीमारियों के प्रति भी प्रतिरोधी है, जिससे किसानों को कम लागत में बेहतर उत्पादन मिलता है। यह किस्म खासकर उन किसानों के लिए उपयोगी है जो सिंचाई के लिए केवल बारिश के पानी पर निर्भर रहते हैं।

3. GW 273

GW 273 गुजरात और मध्य प्रदेश के शुष्क क्षेत्रों के लिए विकसित की गई है। इसे कम पानी वाले क्षेत्रों में अधिकतम उत्पादन देने के लिए तैयार किया गया है। यह किस्म न केवल सूखा प्रतिरोधी है, बल्कि इसकी फसल जल्दी पक जाती है, जिससे किसान समय पर अपनी अगली फसल की बुवाई कर सकते हैं। Drought-resistant wheat

4. Raj 3765

राजस्थान के शुष्क इलाकों के लिए यह एक लोकप्रिय सूखा प्रतिरोधी गेहूं की किस्म है। यह किस्म कम पानी में भी उत्कृष्ट उत्पादन देती है और इसका दाना गुणवत्ता में अच्छा होता है। Raj 3765 की फसल को सूखे में जीवित रहने और अच्छा उत्पादन देने के लिए विशेष रूप से विकसित किया गया है। Drought-resistant wheat

सूखा प्रतिरोधी गेहूं की खेती के फायदे

1. जल संरक्षण

सूखा प्रतिरोधी गेहूं की किस्में कम पानी में भी उगाई जा सकती हैं, जिससे सिंचाई के लिए आवश्यक पानी की मात्रा कम होती है। इससे न केवल पानी की बचत होती है, बल्कि भूजल स्तर को बनाए रखने में भी मदद मिलती है। पानी की बढ़ती कमी के दौर में यह एक बड़ा लाभ है, खासकर उन क्षेत्रों में जहाँ सिंचाई की सुविधा सीमित है। Drought-resistant wheat

2. कम उत्पादन लागत

कम पानी में उगने वाली गेहूं की किस्में किसानों के लिए आर्थिक रूप से भी फायदेमंद हैं। चूंकि इन फसलों को कम सिंचाई की आवश्यकता होती है, इसलिए सिंचाई की लागत भी कम हो जाती है। इसके अलावा, सूखा प्रतिरोधी किस्में रोगों और कीटों के प्रति भी अधिक प्रतिरोधी होती हैं, जिससे रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों की जरूरत भी कम पड़ती है।

3. जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करना

जलवायु परिवर्तन के कारण हो रहे मौसम में अस्थिरता और अनियमित बारिश ने खेती को जोखिम में डाल दिया है। ऐसे में सूखा प्रतिरोधी गेहूं की किस्में किसानों को बदलते मौसम की चुनौतियों से निपटने में मदद करती हैं। ये किस्में अधिक तापमान और कम वर्षा के बावजूद अच्छा उत्पादन देने में सक्षम हैं।

4. सतत कृषि को बढ़ावा

सूखा प्रतिरोधी गेहूं की खेती से सतत कृषि को बढ़ावा मिलता है। कम पानी की खपत और रसायनों का कम उपयोग पर्यावरण को नुकसान से बचाता है और भूमि की उर्वरता को बनाए रखने में मदद करता है। इसके साथ ही, किसानों को फसल सुरक्षा के लिए कम संसाधनों की जरूरत पड़ती है, जिससे उनके लिए खेती अधिक टिकाऊ और लाभकारी हो जाती है।

सरकार और शोध संस्थानों की भूमिका

भारत सरकार और कृषि अनुसंधान संस्थानों ने सूखा प्रतिरोधी गेहूं की किस्मों को बढ़ावा देने के लिए कई प्रयास किए हैं। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) और विभिन्न राज्य कृषि विश्वविद्यालय सूखा प्रतिरोधी किस्मों के विकास और वितरण में अहम भूमिका निभा रहे हैं। इसके अलावा, सरकार द्वारा किसानों को सूखा प्रतिरोधी बीज और सिंचाई की उन्नत तकनीकों के बारे में जागरूक करने के लिए कई कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं।

कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) और कृषि विस्तार सेवाएं भी किसानों को सूखा प्रतिरोधी किस्मों की जानकारी और प्रशिक्षण देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। सरकार द्वारा दी जाने वाली सब्सिडी और बीज वितरण कार्यक्रमों के तहत इन किस्मों को बढ़ावा दिया जा रहा है, ताकि अधिक से अधिक किसान इनका लाभ उठा सकें।  Drought-resistant wheat

चुनौतियाँ और समाधान

हालाँकि सूखा प्रतिरोधी गेहूं की किस्में किसानों के लिए एक महत्वपूर्ण समाधान हैं, लेकिन इसके बावजूद कुछ चुनौतियाँ भी हैं। जैसे कि सभी किसान सूखा प्रतिरोधी किस्मों के बारे में जागरूक नहीं हैं, और उन्हें इन किस्मों की उपज और लाभ के बारे में जानकारी नहीं है। इसके अलावा, कुछ क्षेत्रों में सूखा प्रतिरोधी बीजों की उपलब्धता भी सीमित है, जिससे किसानों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।

इन समस्याओं का समाधान जागरूकता और प्रशिक्षण के माध्यम से किया जा सकता है। किसानों को सूखा प्रतिरोधी गेहूं की किस्मों की विशेषताओं, उनके लाभ, और खेती की तकनीकों के बारे में जानकारी देना आवश्यक है। इसके अलावा, कृषि विभाग और स्थानीय सरकारें बीज वितरण प्रणाली को और अधिक सुलभ बना सकती हैं, ताकि हर किसान को इन किस्मों का लाभ मिल सके। Drought-resistant wheat

कम पानी में होने वाला सूखा प्रतिरोधी गेहूं भारतीय कृषि के लिए एक महत्वपूर्ण समाधान साबित हो सकता है, खासकर उन क्षेत्रों में जहाँ पानी की कमी एक बड़ी चुनौती है। सूखा प्रतिरोधी गेहूं की किस्में न केवल पानी की बचत करती हैं, बल्कि कम लागत में अधिक उत्पादन भी प्रदान करती हैं। इसके अलावा, यह किस्में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने में भी मदद करती हैं, जिससे किसानों के लिए खेती को अधिक टिकाऊ और लाभकारी बनाया जा सकता है।

कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले समय में सूखा प्रतिरोधी फसलों का महत्व और बढ़ेगा, क्योंकि जलवायु परिवर्तन और जल संकट की समस्याएँ और भी गंभीर होती जा रही हैं। इसलिए, सरकार, शोध संस्थान और किसान सभी को मिलकर सूखा प्रतिरोधी खेती को बढ़ावा देना होगा, ताकि देश की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके और किसानों की आजीविका को बेहतर बनाया जा सके। Drought-resistant wheat

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