जहाँ भी गए, रोहिंग्या शरणार्थियों ने अशांति फैलाई: इंडोनेशिया के आचे तट पर स्थानीय समुदाय ने किया विरोध
Rohingya Refugee Crisis | इंडोनेशिया के आचे प्रांत में स्थानीय मछुआरा समुदाय ने समुद्र तट पर पहुँचे 140 रोहिंग्या शरणार्थियों को जमीन पर कदम रखने से रोक दिया, जिससे वहाँ तनावपूर्ण स्थिति पैदा हो गई। महिलाओं और बच्चों सहित यह समूह बांग्लादेश के कॉक्स बाजार से मलेशिया की ओर जा रहा था, लेकिन यात्रा के दौरान वे आचे के तट पर पहुँच गए। इन लोगों की समुद्र में लगभग दो हफ्ते की लंबी यात्रा ने उन्हें भूखा और थका हुआ कर दिया था, इस दौरान तीन लोगों की मौत भी हो गई। लेकिन तट पर उतरने की अनुमति न मिलने के कारण उन्हें नाव में ही रहना पड़ा।
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इस घटना ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि रोहिंग्या शरणार्थियों का भविष्य क्या होगा, जो म्यांमार के अत्याचारों से भागकर बांग्लादेश और अन्य देशों में शरण लेने के लिए मजबूर हैं। आचे में समुदाय के नेता मोहम्मद जबल ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि उनका समुदाय रोहिंग्या मुस्लिमों को जमीन पर उतरने नहीं देगा क्योंकि इससे क्षेत्र में शांति और सुरक्षा खतरे में आ सकती है। उन्होंने आरोप लगाया कि जहाँ-जहाँ रोहिंग्या शरणार्थी गए हैं, वहाँ संघर्ष और अशांति फैलने की घटनाएँ हुई हैं। इसी कारण स्थानीय निवासियों ने समुद्र तट पर एक बैनर भी लगाया है, जिसमें लिखा है कि “साउथ आचे रीजेंसी के लोग इस क्षेत्र में रोहिंग्या शरणार्थियों के आगमन को अस्वीकार करते हैं।”
आचे का यह स्थानीय समुदाय पिछले कुछ वर्षों में ऐसी कई घटनाओं का साक्षी रहा है, जब रोहिंग्या शरणार्थियों के आने के बाद वहाँ सांप्रदायिक तनाव और सामाजिक असंतुलन पैदा हुआ। मोहम्मद जबल के अनुसार, पहले भी इस तरह की घटनाओं से स्थानीय लोग परेशान हो चुके हैं, और यही कारण है कि वे रोहिंग्या शरणार्थियों को अपने क्षेत्र में उतरने की अनुमति नहीं देना चाहते। समुदाय का मानना है कि शरणार्थियों की बढ़ती संख्या से यहाँ संसाधनों पर दबाव पड़ता है, और इससे उनके समाज में अस्थिरता का खतरा रहता है। Rohingya Refugee Crisis
स्थानीय समुदाय ने रोहिंग्या शरणार्थियों की सहायता के लिए खाना और अन्य सामग्री तो प्रदान की, लेकिन उन्हें जमीन पर उतरने की अनुमति देने से साफ इनकार कर दिया। मछुआरों का मानना है कि रोहिंग्या शरणार्थियों की समस्या का समाधान स्थानीय स्तर पर नहीं, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर होना चाहिए। इंडोनेशिया के आचे प्रांत में यह कोई पहली घटना नहीं है; पिछले वर्षों में भी कई बार रोहिंग्या शरणार्थियों को स्थानीय विरोध का सामना करना पड़ा है, जिसके परिणामस्वरूप उनकी नावों को समुद्र में ही लौटा दिया गया था। Rohingya Refugee Crisis
म्यांमार से पलायन और रोहिंग्या की स्थिति
रोहिंग्या मुस्लिमों का म्यांमार से पलायन एक दर्दनाक कहानी है, जिसने दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया के कई देशों को प्रभावित किया है। म्यांमार में रोहिंग्या समुदाय पर 2017 से अत्याचार किए जा रहे हैं, जिसके कारण उन्हें अपना घर और जमीन छोड़कर भागने पर मजबूर होना पड़ा। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार, म्यांमार के सुरक्षा बलों द्वारा किए गए क्रूर आतंकवाद विरोधी अभियानों के दौरान करीब 740,000 रोहिंग्या मुस्लिम म्यांमार से भागकर बांग्लादेश में शरण लेने को मजबूर हुए। इन अभियानों के कारण हजारों लोगों की जान गई, और लाखों को अपने घरों से बेघर होना पड़ा। बांग्लादेश के कॉक्स बाजार के शरणार्थी शिविरों में लाखों रोहिंग्या रह रहे हैं, लेकिन इन शिविरों में अस्थायी जीवन, गरीबी, भूख और स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है। Rohingya Refugee Crisis
आचे में शरणार्थियों का वर्तमान संकट
पुलिस रिपोर्ट के अनुसार, 9 अक्टूबर को बांग्लादेश के कॉक्स बाजार से रवाना हुए इस समूह का मूल उद्देश्य मलेशिया पहुँचना था। समुद्र में 216 लोगों के इस समूह में से 50 लोग पहले ही इंडोनेशिया के रियाउ प्रांत में उतर चुके हैं। स्थानीय समुदाय ने शरणार्थियों को खाना दिया और संयुक्त राष्ट्र के शरणार्थी मामलों के उच्चायुक्त ने भी उनकी सहायता के लिए भोजन सामग्री भेजी, लेकिन उन्हें जमीन पर उतरने की अनुमति नहीं दी गई। Rohingya Refugee Crisis
इस यात्रा के दौरान तबीयत खराब होने पर 11 रोहिंग्या मुस्लिमों को अस्पताल में भर्ती किया गया। इन लोगों की स्थिति बहुत ही नाजुक थी, और वे लम्बी यात्रा के कारण कमजोर हो चुके थे। अस्पताल में भर्ती किए गए शरणार्थियों में अधिकतर महिलाएँ और बच्चे थे। आचे की पुलिस ने मानव तस्करी के संदेह में तीन लोगों को गिरफ्तार किया है, जिन पर आरोप है कि उन्होंने शरणार्थियों से पैसे लेकर उन्हें मलेशिया पहुँचाने का वादा किया था। मानव तस्करी का यह पहलू भी रोहिंग्या शरणार्थियों की दुर्दशा को और अधिक गहराई से समझने की जरूरत को दर्शाता है। Rohingya Refugee Crisis
इंडोनेशिया की शरणार्थियों के प्रति नीति
इंडोनेशिया, थाईलैंड और मलेशिया की तरह संयुक्त राष्ट्र के 1951 शरणार्थी सम्मेलन का हस्ताक्षरकर्ता नहीं है, इसलिए इनके पास शरणार्थियों को स्वीकार करने की कानूनी बाध्यता नहीं है। इंडोनेशिया में 87% आबादी मुस्लिम है, लेकिन इसके बावजूद रोहिंग्या मुस्लिम शरणार्थियों के प्रति वहाँ सहानुभूति की बजाय विरोध का माहौल देखा जा सकता है। बीते साल नवंबर 2023 में 250 रोहिंग्या शरणार्थियों की एक नाव को इंडोनेशियाई अधिकारियों ने वापस लौटा दिया था, और बाद में उस नाव के दुर्घटनाग्रस्त होने की आशंका जताई गई थी। इसी तरह, मार्च 2024 में भी इंडोनेशिया के अधिकारियों और स्थानीय मछुआरों ने आचे के तट पर एक नाव से 75 लोगों को बचाया था। उस घटना में भी विरोध प्रदर्शन के चलते नाव को तट पर नहीं आने दिया गया, और नाव पलटने से 67 लोगों की मौत हो गई थी, जिनमें कई महिलाएँ और बच्चे शामिल थे। Rohingya Refugee Crisis
अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से अपेक्षाएँ
आचे की इस घटना ने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के सामने यह सवाल फिर से खड़ा कर दिया है कि रोहिंग्या शरणार्थियों की स्थिति को सुधारने के लिए क्या कदम उठाए जा सकते हैं। इस मामले में अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन, संयुक्त राष्ट्र, और अन्य देशों की भूमिका महत्वपूर्ण हो सकती है। इंडोनेशिया में शरणार्थियों का विरोध और उनकी कठिनाईयों को देखते हुए यह जरूरी है कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय इस मुद्दे पर ठोस कदम उठाए। Rohingya Refugee Crisis
म्यांमार की सरकार से बातचीत करके, रोहिंग्या मुस्लिमों को उनके अधिकार दिलाने और उनकी नागरिकता सुनिश्चित करने के प्रयासों को तेज किया जा सकता है। साथ ही, उन देशों में जहाँ ये शरणार्थी पहुँचते हैं, वहाँ उनके साथ मानवीय व्यवहार की भी आवश्यकता है ताकि वे शांतिपूर्ण और सुरक्षित जीवन जी सकें। Rohingya Refugee Crisis
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