सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: हर निजी संपत्ति का अधिग्रहण नहीं कर सकती सरकार

सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: हर निजी संपत्ति का अधिग्रहण नहीं कर सकती सरकार

Supreme Court ka faisla | नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने आज एक ऐतिहासिक निर्णय में स्पष्ट किया है कि सरकार हर निजी संपत्ति (private property) का अधिग्रहण (acquisition) नहीं कर सकती। सवाल यह था कि क्या सरकार सार्वजनिक हित (public interest) के नाम पर किसी भी प्रकार की निजी संपत्ति का अधिग्रहण कर सकती है। सुप्रीम कोर्ट की 9 सदस्यीय संविधान पीठ ने 8-1 के बहुमत से यह महत्वपूर्ण निर्णय दिया, जिसमें कहा गया कि सभी निजी संपत्तियों को अधिग्रहण करने का अधिकार सरकार के पास नहीं है। Supreme Court ka faisla

9 जजों की पीठ का फैसला

मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ (D.Y. Chandrachud) के नेतृत्व में 9 जजों की संविधान पीठ ने यह फैसला सुनाया। पीठ में जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा, मनोज मिश्रा, सुधांशु धूलिया, ऋषिकेश रॉय, बी. वी. नागरत्ना, जे. बी. पारदीवाला, राजेश बिंडल और ए. जी. मसीह शामिल थे। अदालत ने इस फैसले में न्यायमूर्ति कृष्णा अय्यर के उस पुराने निर्णय को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि सरकार सभी निजी संसाधनों को राज्य के अधिकार में ले सकती है। यह महत्वपूर्ण फैसला देश में संविधान (Constitution) की रक्षा के साथ-साथ नागरिकों के अधिकारों के संरक्षण की दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जा रहा है। Supreme Court ka faisla

अर्थव्यवस्था का उद्देश्य और चुनौतियाँ

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी बताया कि भारत की अर्थव्यवस्था (economy) का उद्देश्य एक विशेष आर्थिक मॉडल (economic model) का पालन करना नहीं है, बल्कि इसका असली उद्देश्य विकासशील देश के रूप में चुनौतियों का सामना करना और समस्याओं को हल करना है। बीते 30 वर्षों में भारत की अर्थव्यवस्था में हुए बदलावों का जिक्र करते हुए कोर्ट ने कहा कि इन नीतियों के कारण भारत आज दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक बन गया है। कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि वह न्यायमूर्ति कृष्णा अय्यर के इस विचार से सहमत नहीं है कि निजी संपत्ति को सामुदायिक संपत्ति माना जा सकता है। Supreme Court ka faisla

16 याचिकाओं पर फैसला

यह निर्णय उन 16 याचिकाओं पर सुनाया गया है, जिनमें संपत्ति के अधिकारों से जुड़े मुद्दों को उठाया गया था। इनमें मुंबई (Mumbai) के कई संपत्ति मालिकों की याचिकाएं भी शामिल थीं। मामला 1986 में महाराष्ट्र में एक कानून संशोधन से जुड़ा हुआ था, जिसमें राज्य सरकार को निजी इमारतों को मरम्मत (maintenance) और सुरक्षा के लिए अपने नियंत्रण में लेने का अधिकार मिला था। याचिकाकर्ताओं ने इस संशोधन को भेदभावपूर्ण करार दिया था और अदालत से न्याय की मांग की थी। Supreme Court ka faisla

मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ ने अपने जजमेंट (judgment) में स्पष्ट किया कि इस मामले में तीन अलग-अलग राय (opinions) आईं हैं। सबसे पहले, उनका और पीठ के छह अन्य न्यायाधीशों का निर्णय, जिसमें उन्होंने कहा कि सरकार के पास हर निजी संपत्ति को अधिग्रहण करने का अधिकार नहीं है। इसके बाद जस्टिस नागरत्ना का आंशिक सहमति वाला निर्णय आया और अंत में जस्टिस सुधांशु धूलिया का असहमति वाला निर्णय। Supreme Court ka faisla

संविधान और मौलिक अधिकार

यह फैसला भारतीय संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों (fundamental rights) की दृष्टि से भी अहम माना जा रहा है। संविधान के अनुच्छेद 300A में संपत्ति के अधिकार का उल्लेख किया गया है, जिसके अनुसार राज्य सरकारें केवल विधि के आधार पर संपत्ति का अधिग्रहण कर सकती हैं। कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि अनुच्छेद 300A के तहत सरकारें जनता के व्यापक हित में संपत्ति का अधिग्रहण कर सकती हैं, लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि वह हर संपत्ति का अधिग्रहण कर सकती हैं। Supreme Court ka faisla

आर्थिक स्वतंत्रता और व्यक्तिगत अधिकारों का महत्व

इस फैसले में कोर्ट ने यह भी कहा कि संपत्ति का अधिकार लोगों के व्यक्तिगत अधिकारों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। अर्थिक स्वतंत्रता (economic freedom) और निजी संपत्ति का अधिकार एक दूसरे से जुड़े हुए हैं, और इनका संरक्षक संविधान है। इसलिए, किसी भी अधिग्रहण के मामले में यह आवश्यक है कि सरकार उचित प्रक्रिया (due process) का पालन करे और मालिकों के अधिकारों का उल्लंघन न हो। सरकार की ओर से किसी भी संपत्ति का अधिग्रहण तभी उचित माना जाएगा जब यह सार्वजनिक हित में हो और इसके लिए स्पष्ट कानूनी प्रक्रिया का पालन किया जाए। Supreme Court ka faisla

निजी संपत्ति और सामाजिक संतुलन

कोर्ट ने इस निर्णय में यह भी कहा कि सरकार को इस मामले में सामाजिक संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता है। यदि हर निजी संपत्ति को सरकारी संपत्ति माना जाने लगेगा, तो यह नागरिकों के अधिकारों के विपरीत होगा और देश के लोकतंत्र (democracy) के लिए भी खतरा पैदा कर सकता है। इसके साथ ही, यह भी जरूरी है कि सरकार आर्थिक नीतियों में सामाजिक हितों को प्राथमिकता दे और साथ ही साथ यह भी सुनिश्चित करे कि इस प्रक्रिया में किसी भी व्यक्ति के अधिकारों का उल्लंघन न हो। Supreme Court ka faisla

न्यायमूर्ति कृष्णा अय्यर का पूर्व फैसला खारिज

इस ऐतिहासिक निर्णय में न्यायमूर्ति कृष्णा अय्यर के उस पुराने फैसले को खारिज कर दिया गया, जिसमें उन्होंने यह कहा था कि निजी संसाधनों को भी सामुदायिक संपत्ति के रूप में देखा जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने इस विचार को अस्वीकार करते हुए कहा कि आज के समय में भारत की अर्थव्यवस्था का उद्देश्य चुनौतियों से निपटना है, न कि किसी एक विशेष आर्थिक ढांचे को अपनाना। Supreme Court ka faisla

आगे का रास्ता

इस फैसले के बाद भारत में संपत्ति के अधिकारों पर एक नई बहस शुरू हो सकती है। सरकार को यह स्पष्ट करना होगा कि किन परिस्थितियों में वह संपत्ति का अधिग्रहण कर सकती है और किन परिस्थितियों में नहीं। संपत्ति का अधिकार एक संवेदनशील मुद्दा है और इसका सम्मान करना सरकार की जिम्मेदारी है। Supreme Court ka faisla

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला न केवल संपत्ति के अधिकारों की रक्षा करता है, बल्कि सरकार के अधिकारों को भी सीमित करता है ताकि वे अनुचित रूप से हर निजी संपत्ति का अधिग्रहण न कर सकें। यह निर्णय यह भी याद दिलाता है कि किसी भी लोकतंत्र में निजी संपत्ति का अधिकार एक महत्वपूर्ण तत्व है, और इसे सरकार द्वारा सम्मानित किया जाना चाहिए। Supreme Court ka faisla

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