आत्माओं की मुक्ति का महापर्व: शंखोद्वार मेला
मंदसौर जिले के मोलाखेड़ी गांव में प्रतिवर्ष आयोजित होने वाला आत्माओं का शंखोद्वार मेला इस वर्ष 12 नवंबर से शुरू होकर 15 नवंबर तक चलेगा। चार दिनों तक चलने वाले इस मेले में एक लाख से अधिक श्रद्धालुओं के पहुंचने की संभावना है, जो अपने पूर्वजों की आत्माओं की मुक्ति के लिए चंबल नदी के किनारे स्थित इस तीर्थस्थल पर आते हैं। यह मेला हिंदू परंपराओं और लोक मान्यताओं के आधार पर आयोजित किया जाता है, जहां अधोगति में मृत आत्माओं की मुक्ति के लिए अनुष्ठान और पूजा-पाठ होते हैं।
शंखोद्वार तीर्थ का धार्मिक महत्व
शंखोद्धार तीर्थ, जो महाभारत कालीन इतिहास का गवाह है, आज भी अपने अस्तित्व का प्रमाण देता है। आज से 60 वर्ष पहले गांधीसागर बांध बनने के कारण यह तीर्थ अपने मूल स्वरूप से जलमग्न हो गया था, और तीर्थ वासियों को अपना बसेरा छोड़कर अन्यत्र बसना पड़ा। कई मंदिरों की मूर्तियाँ भी लोग अपने साथ ले गए और कुछ मंदिर चर्मणवती नदी में डूब गए। केवल पांडवों के हाथों स्थापित महादेव मंदिर आज भी एक टिले पर स्थित होकर इस प्राचीन तीर्थ की उपस्थिति का प्रमाण दे रहा है। यह मंदिर एक पत्थर से निर्मित है और शंखोद्धार तीर्थ के अन्य देवी-देवताओं को चचावदापठारी गांव में स्थापित कर तीर्थ वासियों ने अपनी नई बसाहट बनाई। यहां कृष्ण मंदिर, अन्नपूर्णा माता मंदिर, कालका माता मंदिर, राम मंदिर, चारभुजानाथ मंदिर आदि का पुनः स्थापना की गई। महाभारत कालीन शंखोद्धार महादेव मंदिर, जो पिछले 6 वर्षों से गांधीसागर के जल में डूबा था, इस वर्ष जल स्तर घटने पर फिर से बाहर आ गया है। इस मंदिर का महत्व खास है, क्योंकि यहां अकाल मृत्यु को प्राप्त आत्माओं का तर्पण होता है, जिससे उन्हें मुक्ति मिलती है।
मान्यता है कि पांडवों ने अपने अज्ञातवास के समय यहां शंखासुर नामक राक्षस का वध किया था और उसकी इच्छा के अनुसार यहां शिवलिंग स्थापित किया। यह स्थान अकाल मृत्यु को प्राप्त आत्माओं की मुक्ति का केंद्र माना गया और इसका उल्लेख महाभारत में भी मिलता है। शंखोद्धार महादेव का शिवलिंग हर छह माह जमीन के अंदर और बाहर दिखाई देता है, जो श्रद्धालुओं के लिए एक अद्भुत चमत्कार है। इसके साथ ही रामपुरा के राजा रामा भील का भी इस मंदिर से संबंध है। कहा जाता है कि उनका सिर कट जाने के बावजूद उनका धड़ दुश्मनों से लड़ता रहा और उनकी मृत्यु इस मंदिर के चरणों में जाकर हुई।
अविभाजित मन्दसौर जिले में यह स्थान गंगामाता शंखोद्धार महादेव के नाम से प्रसिद्ध था और यहाँ विशाल मेला लगता था, लेकिन 1950 में गांधीसागर बांध बनने के बाद यह स्थान इतिहास के पन्नों में खो गया। आज जब यह मंदिर जल स्तर घटने के बाद बाहर आता है, तो श्रद्धालु दूर-दूर से यहां दर्शन करने आते हैं और अपने परिजनों के मोक्ष की कामना करते हैं।
आत्माओं की मुक्ति की मान्यता
स्थानीय मान्यता के अनुसार, जिन व्यक्तियों की मृत्यु अधोगति में होती है, उनकी आत्माएं भटकती रहती हैं और उन्हें मोक्ष प्राप्त नहीं हो पाता। ऐसे में उनके परिजन शंखोद्वार मेले के दौरान अनुष्ठानों के माध्यम से उनकी मुक्ति की कामना करते हैं। श्रद्धालु अपनी मृत परिजनों की आत्माओं की शांति के लिए मेले में शामिल होते हैं और चंबल नदी में स्नान कर पूजा-अर्चना करते हैं। अनुष्ठान के बाद श्रद्धालु आत्माओं की मुक्ति की प्रार्थना करते हैं और चंबल नदी में उन्हें मोक्ष के लिए छोड़ देते हैं।
मेले की परंपराएं और अनुष्ठान
शंखोद्वार मेले में श्रद्धालु अपने परिजनों की आत्माओं के साथ आते हैं और मेले में उनके लिए खास इंतजाम किए जाते हैं। आत्माओं की शांति के लिए वे रात्रि जागरण करते हैं और अनुष्ठान करते हैं। मेले के दौरान श्रद्धालु अस्थायी रूप से भूखंडों पर छोटे-छोटे मकान बनाकर रहते हैं। इस मकान को प्रतीकात्मक रूप से उस आत्मा का घर माना जाता है। वे यहाँ आत्माओं को साथ रखकर मोक्ष की कामना करते हैं और फिर उन्हें चंबल नदी में छोड़ देते हैं। यह भी मान्यता है कि एक बार आत्मा को मोक्ष मिलने के बाद अगले पांच साल तक परिजन यहाँ आते रहते हैं और अपने पूर्वजों की आत्माओं का हालचाल जानने का अनुष्ठान करते हैं।
प्रशासन की तैयारियां
शंखोद्वार मेले के लिए प्रशासन द्वारा विशेष व्यवस्थाएं की गई हैं। इस वर्ष भी प्रशासन ने मेले के आयोजन के लिए पूरी योजना बनाई है ताकि श्रद्धालुओं को किसी प्रकार की असुविधा न हो। प्रशासन द्वारा सुरक्षा, यातायात और ठहरने की विशेष व्यवस्था की गई है, ताकि दूर-दराज से आने वाले श्रद्धालुओं को सुविधा मिले। इसके अलावा, मेडिकल कैंप और पीने के पानी की व्यवस्था भी की गई है।
मेले का सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व
यह मेला केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। यह मेले का आयोजन लोगों को अपनी जड़ों और परंपराओं से जोड़ता है। देश के विभिन्न हिस्सों से लोग यहाँ आते हैं और अपने पूर्वजों की आत्माओं के मोक्ष के लिए प्रार्थना करते हैं। मेले में ग्रामीण जीवन और संस्कृति की झलक भी देखने को मिलती है, जहां लोग अपने परिजनों की आत्माओं के प्रति आदर और श्रद्धा प्रकट करते हैं।
इस प्रकार शंखोद्वार मेला केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं बल्कि आस्था, विश्वास और परंपराओं का प्रतीक है, जो श्रद्धालुओं के लिए आत्माओं की शांति और मोक्ष प्राप्ति का माध्यम बनता है।
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