एस जयशंकर का बयान: इतिहास की जटिलताओं और ‘टीपू सुल्तान’ की कहानी पर उठाए सवाल
S Jaishankar and Tipu Sultan | नई दिल्ली। विदेश मंत्री एस जयशंकर (S Jaishankar) ने शनिवार को भारतीय इतिहास के एक महत्वपूर्ण लेकिन विवादास्पद शासक टीपू सुल्तान (Tipu Sultan) पर अपनी राय व्यक्त की। उन्होंने दावा किया कि भारतीय इतिहास में तथ्यों को चुनकर प्रस्तुत करने की प्रवृत्ति रही है, जिससे कुछ कहानियां सत्ता के लिए सुविधाजनक बन सकें। यह बयान उन्होंने इतिहासकार विक्रम संपत (Vikram Sampath) की नई पुस्तक ‘टीपू सुल्तान: द सागा ऑफ मैसूर इंटररेग्नम 1761-1799’ (Tipu Sultan: The Saga of Mysore Interregnum 1761-1799) के विमोचन समारोह में दिया।
इतिहास में चयनात्मक दृष्टिकोण पर सवाल
जयशंकर ने कहा कि “हमारे अतीत के बारे में बहुत कुछ छिपाया गया है।” उन्होंने यह भी जोड़ा कि कुछ मुद्दों को जानबूझकर कम महत्व दिया गया ताकि वे सत्ता के लिए सुविधाजनक बन सकें। “आज की राजनीति (Politics) अक्सर तथ्यों को चुनने और उनकी व्याख्या करने पर ध्यान देती है,” उन्होंने कहा।
जयशंकर ने स्पष्ट किया कि यह प्रवृत्ति टीपू सुल्तान के मामले (Case of Tipu Sultan) में भी देखी गई है। उन्होंने आरोप लगाया कि मैसूर के पूर्व शासक के बारे में एक खास कहानी गढ़ी गई, जिसे कई दशकों से बढ़ावा दिया गया।
जटिल शख्सियत थे टीपू सुल्तान
विदेश मंत्री ने टीपू सुल्तान (Tipu Sultan) को भारतीय इतिहास में एक जटिल शख्सियत करार दिया। उन्होंने कहा कि टीपू ने ब्रिटिश उपनिवेशवाद (British Colonialism)** के खिलाफ कड़ा विरोध किया। इसके अलावा, स्थानीय राजाओं और प्रतिद्वंद्वियों से भी उनका संघर्ष होता रहा। जयशंकर के अनुसार, “टीपू सुल्तान की कहानी (Story of Tipu Sultan) को समझने के लिए हमें इतिहास के जटिल संदर्भों को ध्यान में रखना होगा।”
किताब पर जयशंकर की टिप्पणी
जयशंकर ने विक्रम संपत की नई पुस्तक को टीपू सुल्तान की “जीवनी (Biography)” बताते हुए इसकी सराहना की। उन्होंने कहा, “यह किताब (Book) पाठकों को अपने निष्कर्ष निकालने के लिए आवश्यक तथ्यों के साथ प्रस्तुत करती है। यह टीपू के युग की जटिलताओं को भी सामने लाती है।”**
उन्होंने यह भी कहा कि “ऐसी किताबों को लिखने में लेखक को रूढ़िवादिता (Orthodoxy) और पूर्वाग्रहों का सामना करना पड़ता है।”
टीपू सुल्तान की विदेश नीति पर चर्चा
जयशंकर ने विशेष रूप से टीपू सुल्तान की विदेश नीति (Foreign Policy of Tipu Sultan) का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि ब्रिटिश विस्तारवादी योजनाओं का सामना करने के लिए, टीपू ने फ्रांसीसी शक्तियों (French Powers)** के साथ गठजोड़ करने में कोई झिझक नहीं दिखाई। इस संदर्भ में, जयशंकर ने कहा, “यह कहानी को केवल विदेशी-विरोधी (Anti-Foreign) दृष्टिकोण से देखना मुश्किल बना देता है।”
वोट बैंक की राजनीति से मुक्त होने की बात
जयशंकर ने यह भी कहा कि अब वोट बैंक की राजनीति (Vote Bank Politics) से आगे बढ़ते हुए, राजनीतिक रूप से असुविधाजनक सच्चाइयों को सामने लाने में हिचकिचाना नहीं चाहिए। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि इतिहास को बिना किसी पक्षपात के देखा जाना चाहिए।
भारत में इतिहास लेखन की परंपरा पर सवाल
जयशंकर ने भारत में इतिहास लेखन की परंपरा पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि यह अक्सर चयनात्मक और पूर्वाग्रहों से भरा होता है। उन्होंने कहा, “इतिहास को देखने का तरीका अक्सर सत्ता के लिए सुविधाजनक होता है।”
पुस्तक का महत्व
‘टीपू सुल्तान: द सागा ऑफ मैसूर इंटररेग्नम 1761-1799’ को एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक योगदान बताते हुए, जयशंकर ने कहा कि यह किताब न केवल पाठकों को टीपू के जीवन और उनके युग की बेहतर समझ प्रदान करती है, बल्कि भारतीय इतिहास में गहरे जड़ें जमाए पूर्वाग्रहों को भी चुनौती देती है।
विवादित व्यक्तित्व का विश्लेषण
टीपू सुल्तान को लेकर इतिहासकार और राजनेताओं के बीच हमेशा से मतभेद रहे हैं। कुछ लोग उन्हें ‘स्वतंत्रता सेनानी (Freedom Fighter)’ मानते हैं, जिन्होंने ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ बहादुरी से संघर्ष किया। वहीं, अन्य लोग उन्हें एक ‘धार्मिक उत्पीड़क (Religious Oppressor)’ मानते हैं। जयशंकर ने इस विभाजन पर टिप्पणी करते हुए कहा कि “इतिहास को जटिलताओं के साथ समझने की जरूरत है।”
क्या कहती है नई किताब?
विक्रम संपत की यह नई पुस्तक टीपू सुल्तान की कहानी को तथ्यों और ऐतिहासिक प्रमाणों के आधार पर प्रस्तुत करती है। लेखक ने न केवल उनके शासन और युद्धों का विश्लेषण किया है, बल्कि उनकी सामरिक चालों (Strategic Moves) और उनके धार्मिक नीतियों (Religious Policies) पर भी प्रकाश डाला है।
जयशंकर ने पुस्तक के संदर्भ में कहा कि यह “ऐतिहासिक सत्य (Historical Truth) और दृष्टिकोण को सामने लाने का प्रयास है।”
जयशंकर का बयान भारत में इतिहास लेखन और इतिहास की व्याख्या में मौजूद चुनौतियों को उजागर करता है। उन्होंने स्पष्ट किया कि टीपू सुल्तान जैसे शासकों को समझने के लिए केवल एकतरफा दृष्टिकोण से बचना चाहिए। साथ ही, विक्रम संपत की नई पुस्तक भारतीय इतिहास में नए सिरे से चर्चा का विषय बन सकती है।
भारत का अतीत जितना जटिल है, उतना ही इसे समझने के लिए निष्पक्ष दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। जयशंकर के अनुसार, “इतिहास को समझने में, सच्चाई को सामने लाने से हिचकिचाना नहीं चाहिए।”
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