One Nation One Election पर केंद्र सरकार इसी सत्र में बिल ला सकती है

मोदी सरकार ‘एक देश- एक चुनाव’ पर सक्रिय, संसद के शीतकालीन सत्र में आ सकता है बिल

केंद्र की मोदी सरकार ‘एक देश, एक चुनाव’ (One Nation One Election) की योजना को अमलीजामा पहनाने की दिशा में तेज़ी से कदम बढ़ा रही है। सरकार इस महत्वाकांक्षी योजना पर लंबे समय से काम कर रही है और सूत्रों के अनुसार, संसद के आगामी शीतकालीन सत्र में इससे संबंधित एक विधेयक पेश किया जा सकता है। इस विधेयक का उद्देश्य देश में लोकसभा और विधानसभा चुनावों को एक साथ कराने की दिशा में कानूनी आधार तैयार करना है।

संसद की संयुक्त समिति के पास जा सकता है बिल

सूत्रों के अनुसार, सरकार इस विधेयक को विस्तृत चर्चा के लिए संसद की संयुक्त समिति (Joint Parliamentary Committee) के पास भेजने पर विचार कर रही है। इस समिति में सभी राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि शामिल होंगे, ताकि व्यापक स्तर पर सहमति बनाई जा सके। इसके अलावा, सरकार ने इस मुद्दे पर व्यापक जनसंवाद आयोजित करने का निर्णय लिया है।

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इसके तहत सभी राज्य विधानसभाओं के स्पीकरों को भी आमंत्रित किया जा सकता है। साथ ही, सिविल सोसायटी और प्रबुद्ध वर्ग के लोगों से भी इस विषय पर सुझाव मांगे जाएंगे। सरकार की मंशा है कि इस विधेयक को पारित करने से पहले इसे सभी संबंधित पक्षों के साथ गहन चर्चा के माध्यम से अंतिम रूप दिया जाए।

कोविंद समिति की भूमिका

‘एक देश, एक चुनाव’ की योजना को लागू करने के लिए सरकार ने सितंबर 2023 में पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक उच्चस्तरीय समिति का गठन किया था। इस समिति को देश के मौजूदा चुनावी ढांचे की समीक्षा कर, एक साथ चुनाव कराने के लिए संभावित कानूनी और प्रशासनिक बदलावों पर रिपोर्ट सौंपने की जिम्मेदारी दी गई थी।

कोविंद समिति ने अपनी रिपोर्ट मार्च 2024 में सरकार को सौंपी थी, जब लोकसभा चुनाव की घोषणा होने ही वाली थी। इस रिपोर्ट में समिति ने दो चरणों में चुनाव कराने की सिफारिश की थी। केंद्र सरकार ने हाल ही में इस रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया है और इसे लागू करने की दिशा में आगे बढ़ने की योजना बना रही है।

दो चरणों में चुनाव कराने की सिफारिश

समिति ने देश के चुनावी ढांचे को सुव्यवस्थित करने और प्रशासनिक खर्चों में कटौती करने के लिए दो चरणों में चुनाव कराने का प्रस्ताव रखा है। इसके तहत, पहले चरण में लोकसभा और लगभग आधी राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जाएंगे। इसके बाद, शेष राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव दूसरे चरण में आयोजित होंगे।

व्यापक जनसंवाद की तैयारी

सरकार इस विधेयक को पारित कराने से पहले सभी हितधारकों की राय लेना चाहती है। इसके लिए सभी राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों से विचार-विमर्श किया जाएगा। सरकार का मानना है कि ‘एक देश, एक चुनाव’ का क्रियान्वयन देश की लोकतांत्रिक प्रक्रिया को और मजबूत करेगा। इससे न केवल प्रशासनिक खर्चों में कमी आएगी, बल्कि बार-बार चुनाव होने से पड़ने वाले व्यवधान को भी रोका जा सकेगा।

इस योजना के लाभ

सरकार का कहना है कि अगर देश में एक साथ चुनाव कराए जाते हैं, तो इससे सरकारी मशीनरी के उपयोग में सुधार होगा और देश के संसाधनों का बेहतर प्रबंधन हो सकेगा। बार-बार चुनाव कराने से विकास कार्यों पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभाव को भी कम किया जा सकेगा।

विशेषज्ञों का मानना है कि ‘एक देश, एक चुनाव’ देश में स्थिर शासन प्रदान करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है। हालांकि, यह प्रक्रिया चुनौतीपूर्ण है और इसके लिए संवैधानिक और कानूनी संशोधनों की आवश्यकता होगी।

विपक्ष की चिंताएं

इस योजना को लेकर विपक्षी दलों के बीच अलग-अलग राय है। कुछ दलों का मानना है कि ‘एक देश, एक चुनाव’ से देश की संघीय व्यवस्था प्रभावित हो सकती है। उनका तर्क है कि हर राज्य की अपनी राजनीतिक परिस्थितियां होती हैं और एक साथ चुनाव कराने से क्षेत्रीय मुद्दों को नजरअंदाज किया जा सकता है।

‘एक देश, एक चुनाव’ भारत के चुनावी इतिहास में एक बड़ा बदलाव हो सकता है। हालांकि, इसे लागू करना आसान नहीं होगा। सरकार के समक्ष इस योजना को क्रियान्वित करने के लिए कानूनी, प्रशासनिक और तकनीकी बाधाओं को दूर करने की बड़ी चुनौती है।

फिर भी, अगर सभी पक्षों के साथ व्यापक सहमति बनाई जाती है, तो यह कदम भारत की लोकतांत्रिक प्रणाली को अधिक मजबूत और प्रभावी बनाने में मददगार साबित हो सकता है।


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