One Nation One Election | मंगलवार |17 दिसंबर 2024, को संसद के शीतकालीन सत्र का 17वां दिन था। इस दिन लोकसभा में केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने ‘एक देश, एक चुनाव’ के लिए 129वां संविधान संशोधन विधेयक पेश किया। यह विधेयक राजनीतिक और प्रशासनिक सुधारों के संदर्भ में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। हालांकि, इस विधेयक ने राजनीतिक दलों के बीच गंभीर बहस और विवाद को भी जन्म दिया।
विधेयक की पृष्ठभूमि और पेश करने की प्रक्रिया
लोकसभा में इस बिल को लेकर सांसदों को चर्चा का समय दिया गया। चर्चा के दौरान विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं ने अपने विचार व्यक्त किए। इसके बाद बिल को दोबारा पेश करने के लिए इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग हुई। शुरुआती गिनती में पक्ष में 220 और विपक्ष में 149 वोट पड़े। लोकसभा अध्यक्ष ने सांसदों को अपने मत बदलने का अवसर दिया। इसके बाद हुए अंतिम मतदान में पक्ष में 269 और विपक्ष में 198 वोट दर्ज हुए।
विधेयक पेश करते हुए कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा कि यह संविधान संशोधन देश के चुनावी तंत्र को सुव्यवस्थित और पारदर्शी बनाएगा। इसके माध्यम से लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने का प्रावधान किया जाएगा।
सांसदों के विचार और आपत्तियां
इस विधेयक को लेकर सदन में तीखी बहस हुई। विपक्षी दलों ने इस पर कई आपत्तियां उठाईं।
समाजवादी पार्टी के सांसद धर्मेंद्र यादव ने इसे लोकतंत्र के लिए खतरनाक करार देते हुए कहा कि “यह विधेयक बीजेपी की तानाशाही लाने की कोशिश है।” उन्होंने इसे संघीय ढांचे पर हमला बताया।
कांग्रेस सांसदों ने कहा कि यह विधेयक राज्यों के अधिकारों में कटौती करने और केंद्र को अधिक शक्तिशाली बनाने का प्रयास है।
तृणमूल कांग्रेस और डीएमके जैसे क्षेत्रीय दलों ने भी इस पर गंभीर आपत्तियां जताई। उन्होंने कहा कि यह राज्यों की स्वतंत्रता को कमजोर कर सकता है।
वहीं, सत्तारूढ़ बीजेपी के सांसदों ने इस विधेयक को ऐतिहासिक और लोकतंत्र को मजबूत करने वाला बताया।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने सदन में कहा कि यह बिल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की एक दूरदर्शी सोच का परिणाम है। अमित शाह ने आगे बताया कि कैबिनेट में चर्चा के दौरान प्रधानमंत्री ने सुझाव दिया था कि इस विधेयक को संयुक्त संसदीय समिति (JPC) के पास भेजा जाना चाहिए।
विधेयक के संभावित प्रभाव और संशोधन
इस विधेयक का उद्देश्य लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराना है। इससे सरकार का तर्क है कि:
1. चुनाव लागत में कमी: बार-बार चुनाव कराने से बचा जा सकेगा, जिससे वित्तीय बचत होगी।
2. प्रशासनिक सुगमता: चुनावों के दौरान आचार संहिता लागू होने से विकास कार्य रुक जाते हैं। एक साथ चुनाव से इस समस्या से बचा जा सकता है।
3. राजनीतिक स्थिरता: बार-बार चुनावों से होने वाले राजनीतिक अस्थिरता को रोका जा सकेगा।
हालांकि, विपक्ष ने इन तर्कों को खारिज किया। उन्होंने कहा कि यह विधेयक भारतीय संघीय ढांचे के विपरीत है, जहां केंद्र और राज्य अपने चुनाव स्वतंत्र रूप से आयोजित करते हैं।
संविधान में प्रस्तावित संशोधन
विधेयक के माध्यम से संविधान में कई महत्वपूर्ण संशोधन प्रस्तावित हैं:
1. चुनावी प्रावधानों में बदलाव: लोकसभा और विधानसभा चुनावों के लिए एक ही समय पर मतदान।
2. संघीय ढांचे में संशोधन: राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के अधिकारों को पुनर्परिभाषित करना।
3. जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा: विधेयक में जम्मू-कश्मीर से जुड़े कानूनों में संशोधन का भी प्रावधान है। इसमें जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा देने का प्रस्ताव है।
कानून मंत्री ने केंद्र शासित प्रदेशों से जुड़े तीन कानूनों में संशोधन के लिए भी विधेयक पेश किया। इनमें शामिल हैं:
द गवर्नमेंट ऑफ यूनियन टेरिटरीज एक्ट, 1963
द गवर्नमेंट ऑफ नेशनल कैपिटल टेरिटरी ऑफ दिल्ली एक्ट, 1991
द जम्मू एंड कश्मीर रीऑर्गनाइजेशन एक्ट, 2019
विपक्ष के विरोध के कारण
विपक्षी दलों का मानना है कि इस विधेयक से:
1. राज्यों की स्वायत्तता कमजोर होगी।
2. क्षेत्रीय दलों के अस्तित्व पर खतरा बढ़ेगा।
3. केंद्र सरकार का प्रभुत्व राज्यों पर बढ़ेगा।
इसके अलावा, कई दलों ने इसे संविधान की मूल भावना के खिलाफ बताया। उनका कहना है कि भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में एक साथ चुनाव कराना व्यावहारिक नहीं है।
समर्थन और आलोचना
जहां बीजेपी और उसके सहयोगी दल इसे “एक भारत, श्रेष्ठ भारत” के दृष्टिकोण से जोड़ रहे हैं, वहीं विपक्ष इसे लोकतंत्र के लिए खतरा बता रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि यह विधेयक पारित होता है, तो भारतीय राजनीति और प्रशासन में बड़े बदलाव देखने को मिल सकते हैं।
आगे की प्रक्रिया
अमित शाह ने सुझाव दिया कि इस विधेयक को JPC के पास भेजा जाना चाहिए। JPC इस पर व्यापक विचार-विमर्श कर इसे अंतिम रूप देगी। हालांकि, विधेयक को कानून बनने के लिए संसद के दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत से पारित होना होगा। इसके बाद इसे राज्यों की मंजूरी की आवश्यकता होगी।
‘एक देश, एक चुनाव’ विधेयक भारतीय राजनीति में एक क्रांतिकारी कदम हो सकता है। लेकिन इसके लिए सहमति बनाना बेहद चुनौतीपूर्ण है। सरकार और विपक्ष के बीच इस पर जारी खींचतान यह दिखाती है कि भारतीय लोकतंत्र में मतभेदों का सम्मान किया जाता है। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि इस विधेयक का भविष्य क्या होगा और यह देश की चुनावी प्रणाली को कैसे प्रभावित करेगा।