सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला: भोजशाला मंदिर-मस्जिद विवाद प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट से जुड़े मामलों में शामिल
भोजशाला मंदिर और कमल मौला मस्जिद के विवाद की पृष्ठभूमि
Bhojshala Mandir Masjid Vivad | मध्य प्रदेश के धार जिले में स्थित भोजशाला मंदिर और कमल मौला मस्जिद धार्मिक विवाद का केंद्र बने हुए हैं। 11वीं शताब्दी के इस ऐतिहासिक स्थल पर हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच स्वामित्व और पूजा अधिकारों को लेकर लंबे समय से संघर्ष चल रहा है। हिंदू पक्ष इसे वाग्देवी मंदिर यानी देवी सरस्वती का स्थान मानता है, जबकि मुस्लिम समुदाय इसे कमल मौला मस्जिद के रूप में देखता है। इस मुद्दे ने वर्षों से कानूनी और सामाजिक स्तर पर विवाद पैदा किया है।
सुप्रीम कोर्ट का आदेश और प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में इस विवाद को लेकर एक महत्वपूर्ण आदेश जारी किया। कोर्ट ने कहा कि भोजशाला मंदिर और मस्जिद परिसर से संबंधित सभी कानूनी कार्यवाहियों को प्लेस ऑफ वर्शिप (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 के तहत चल रही याचिकाओं के साथ जोड़ा जाएगा। यह अधिनियम देशभर में धार्मिक स्थलों की स्थिति को 15 अगस्त 1947 की स्थिति में बनाए रखने का प्रावधान करता है।
सीजेआई की अध्यक्षता में होगी सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट की मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही है। कोर्ट ने पहले ही विवादित धार्मिक स्थलों के स्वामित्व और शीर्षक से संबंधित नए मुकदमों पर रोक लगाने का आदेश दिया था। इसके अलावा, कोर्ट ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को निर्देश दिया कि वह अपनी सर्वेक्षण रिपोर्ट के आधार पर किसी भी प्रकार की कार्रवाई कोर्ट की अनुमति के बिना न करे। Bhojshala Mandir Masjid Vivad
पुरातात्विक सर्वेक्षण का निर्देश
पिछले साल अप्रैल में सुप्रीम कोर्ट ने एएसआई को भोजशाला परिसर का सर्वेक्षण करने की अनुमति दी थी। इसके साथ ही कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि किसी भी प्रकार की खुदाई, जो स्मारक के स्वरूप को बदल सकती है, नहीं की जाए। मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने भी एएसआई को वैज्ञानिक सर्वेक्षण करने का निर्देश दिया था।
अवमानना का मामला और आगे की कार्यवाही
सुप्रीम कोर्ट की वर्तमान सुनवाई के दौरान यह मुद्दा भी उठा कि कोर्ट के निर्देशों के बावजूद परिसर में खुदाई की गई। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि यदि मामले की सुनवाई की जाती है तो आदेश का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ अवमानना नोटिस जारी करना होगा। इस पर हिंदू पक्ष के अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने तर्क दिया कि यह मामला पूजा स्थल अधिनियम के दायरे में नहीं आता।
धार्मिक विवाद और समाज पर प्रभाव
इस विवाद ने धार जिले और आसपास के क्षेत्रों में धार्मिक और सामाजिक तनाव को बढ़ावा दिया है। दोनों समुदायों के धार्मिक अधिकारों और भावनाओं का यह टकराव न केवल कानूनी प्रणाली बल्कि सामाजिक ताने-बाने के लिए भी चुनौतीपूर्ण साबित हुआ है।
प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट की अहमियत
प्लेस ऑफ वर्शिप अधिनियम, 1991, धार्मिक स्थलों की स्थिति को स्थिर बनाए रखने के लिए बनाया गया था ताकि देश में सांप्रदायिक सौहार्द बना रहे। हालांकि, इस अधिनियम की वैधता को लेकर कई याचिकाएं दायर की गई हैं, जो यह दावा करती हैं कि यह अधिनियम धार्मिक समुदायों के अधिकारों का हनन करता है।
आगे क्या होगा
अब यह मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है और इसके समाधान के लिए कानूनी प्रक्रिया का पालन किया जाएगा। कोर्ट के आदेश इस विवाद पर व्यापक प्रभाव डाल सकते हैं। वहीं, यह भी देखना महत्वपूर्ण होगा कि दोनों समुदाय इस फैसले को किस रूप में स्वीकार करते हैं। भोजशाला मंदिर और कमल मौला मस्जिद का विवाद न केवल कानूनी बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व भी रखता है। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इससे यह उम्मीद की जा सकती है कि इस विवाद का समाधान शांति और न्यायपूर्ण तरीके से हो सकेगा। Bhojshala Mandir Masjid Vivad
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