विक्रमोत्सव: भारत की सांस्कृतिक विरासत का प्रदर्शन, 114 रियासतों के राजा होते थे शामिल

विक्रमोत्सव: भारत की सांस्कृतिक विरासत का प्रदर्शन, 114 रियासतों के राजा होते थे शामिल

Ujjain News | विक्रमोत्सव का आयोजन भारतीय संस्कृति और इतिहास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसकी शुरुआत 1942 में हुई थी। यह उत्सव पंडित सूर्यनारायण व्यास द्वारा स्थापित किया गया था, जो 114 रियासतों के राज ज्योतिषी थे। उन्होंने 1940 में मासिक पत्रिका ‘विक्रम’ का प्रकाशन किया, जिसके दो वर्षों बाद विक्रम महोत्सव की शुरुआत हुई। इस उत्सव का उद्देश्य भारतीय समाज को अपने महानायकों और उनके गौरवशाली इतिहास से परिचित कराना था। Ujjain News

उत्सव की लोकप्रियता और विस्तार

विक्रमोत्सव की शुरुआत उज्जैन से हुई, और इसकी लोकप्रियता इतनी तेजी से बढ़ी कि यह आयोजन उज्जैन से लेकर मुंबई तक धूमधाम से मनाया जाने लगा। 114 रियासतों के राजा और महाराजाओं ने इस उत्सव में भाग लिया, जिससे यह आयोजन और भी भव्य बन गया। पंडित व्यास ने इस उत्सव को और भी लोकप्रिय बनाने के लिए ‘विक्रमादित्य’ नामक फिल्म का निर्माण किया, जिसमें सुपरस्टार पृथ्वीराज कपूर ने मुख्य भूमिका निभाई। इस फिल्म ने न केवल राजा विक्रमादित्य के इतिहास को उजागर किया, बल्कि विक्रमोत्सव में भाग लेने वाले लोगों की संख्या में भी वृद्धि की।

अंग्रेजों की प्रतिक्रिया

भारत छोड़ो आंदोलन के पहले विक्रमोत्सव का आयोजन अंग्रेजों के लिए चिंता का विषय बन गया। हिंदू राजा महाराजाओं का एकत्रीकरण अंग्रेजों और मुस्लिम राजाओं के लिए परेशानी का कारण बना। लॉर्ड वेवल ने कई राजाओं को भड़काया, जिसके परिणामस्वरूप कुछ राजाओं ने विक्रम महोत्सव से अपने हाथ खींच लिए। अंग्रेजों ने राजा विक्रमादित्य को काल्पनिक बताने के लिए कई प्रयास किए, लेकिन उत्सव के दौरान हिंदी, मराठी और अंग्रेजी में विक्रम स्मृति ग्रंथ का प्रकाशन हुआ। इस ग्रंथ में विद्वानों द्वारा विक्रम और कालिदास पर शोधपूर्ण लेख लिखवाए गए, जिससे यह साबित हुआ कि राजा विक्रमादित्य वास्तव में एक ऐतिहासिक व्यक्ति थे।

वर्तमान में विक्रमोत्सव का स्वरूप

वर्तमान में विक्रमोत्सव एक पर्व के रूप में और भी अधिक लोकप्रियता प्राप्त कर रहा है। इस वर्ष यह उत्सव 125 दिनों तक मनाया जाएगा, जिसकी शुरुआत महाशिवरात्रि 26 फरवरी 2025 से हो चुकी है। यह उत्सव 30 जून 2025 तक जारी रहेगा, जिसमें विभिन्न कार्यक्रम शामिल होंगे, जैसे:

  • अनादी देव और शिव की कलाओं का शिवार्चन
  • विक्रम व्यापार मेला
  • शिल्प वस्त्र उद्योग और हथकरघा उपकरणों की प्रदर्शनी
  • विक्रमादित्य वैदिक घड़ी ऐप का लोकार्पण
  • उज्जैनी नाटक एवं नृत्य समारोह
  • शोध संगोष्ठी
  • विक्रमादित्य का न्याय वैचारिक समागम

इन आयोजनों का उद्देश्य न केवल भारतीय संस्कृति को बढ़ावा देना है, बल्कि युवाओं को अपने इतिहास और परंपराओं से जोड़ना भी है। विक्रमोत्सव का यह विस्तारित स्वरूप उज्जैन से लेकर इंदौर, भोपाल और दिल्ली तक आयोजित किया जाएगा, जिससे यह उत्सव और भी व्यापक और समृद्ध बन सके।

विक्रमोत्सव केवल एक उत्सव नहीं है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति, इतिहास और एकता का प्रतीक है। यह उत्सव हमें हमारे महानायकों की याद दिलाता है और हमें अपने गौरवशाली अतीत से जोड़ता है। पंडित सूर्यनारायण व्यास की इस पहल ने न केवल भारतीय समाज को जागरूक किया, बल्कि एक नई सांस्कृतिक धारा को भी जन्म दिया, जो आज भी जीवित है। विक्रमोत्सव का यह सफर आगे भी जारी रहेगा, और यह भारतीय संस्कृति की धरोहर को संजोए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। Ujjain News


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