भारत की चाय: एक प्याला, हजार कहानियां – हैदराबाद की ईरानी चाय से कश्मीर की शीरी चाय तक, संस्कृति का स्वाद
International Tea Day 2025 | 21 मई 2025: भारत में चाय सिर्फ एक पेय नहीं, बल्कि एक संस्कृति, एक परंपरा और एक भावना है, जो हर गली-नुक्कड़, हर घर-आंगन में बस्ती है। अंग्रेजों ने इसे भारत में लाकर गांव-गांव मुफ्त बांटा, लेकिन भारतीयों ने इसे अपने दिल में बसा लिया। आज हैदराबाद की खारी ईरानी चाय से लेकर कश्मीर की गुलाबी नून चाय और भोपाल की नमकीन सुलेमानी चाय तक, हर क्षेत्र की चाय अपनी अनूठी कहानी कहती है। आइए, इस चाय की दुनिया में गोता लगाएं और जानें कि कैसे यह पेय भारत की सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा बन गया।
चाय: भारत की सुबह से शाम तक की साथी
भारत में चाय सिर्फ एक पेय नहीं, बल्कि एक रिवाज है। सुबह की नींद खुलते ही चाय का प्याला हाथ में आता है, और दिनभर की थकान मिटाने के लिए भी चाय ही पहली पसंद है। चाहे वह गांव की चौपाल हो या शहर का चौराहा, चाय की गर्माहट और उसकी खुशबू हर जगह बिखरी रहती है। किसी मेहमान के घर आने पर चाय न पूछना असंभव सा लगता है। लोग कहते हैं, “उनके यहां तो चाय भी नहीं पूछी!” यह एक छोटा-सा वाक्य भारत में चाय के महत्व को दर्शाता है।
चाय ने भारत के हर कोने को अपने स्वाद से सराबोर किया है। कश्मीर की शीरी चाय, हैदराबाद की ईरानी चाय, भोपाल की सुलेमानी चाय, या फिर मुंबई की कटिंग चाय – हर क्षेत्र की चाय की अपनी खासियत है। सर्दियों में अदरक और इलायची वाली चाय गर्माहट देती है, तो गर्मियों में ठंडी लेमन आइस टी ताजगी लाती है। चाय की दुकानों पर लोग न सिर्फ चाय पीने आते हैं, बल्कि गपशप, बहस और दोस्ती का आलम भी बनता है।
हैदराबाद की ईरानी चाय: खारापन और बिस्कुट का जादू
हैदराबाद की गलियों में ईरानी चाय की खुशबू हर किसी को अपनी ओर खींचती है। यहां हर मोहल्ले में 50 से ज्यादा चाय की स्टॉल्स हैं, जहां सुबह से देर रात तक लोग चाय की चुस्कियों के साथ गपशप में डूबे रहते हैं। ईरानी चाय का हल्का खारापन और इसके साथ परोसे जाने वाले बेक्ड बिस्कुट इसे खास बनाते हैं। चारमीनार से लेकर हाई-टेक सिटी तक, ईरानी चाय का स्वाद हैदराबाद की पहचान बन चुका है। स्थानीय लोग और पर्यटक दोनों इस चाय के दीवाने हैं।
हैदराबाद के एक मशहूर चाय स्टॉल मालिक, अहमद हुसैन, बताते हैं, “हमारी ईरानी चाय में दूध, चायपत्ती और चीनी के साथ एक खास मसाला डाला जाता है जो इसे अलग बनाता है। लोग इसे पीने के लिए दूर-दूर से आते हैं।” एक कप ईरानी चाय की कीमत 10 से 20 रुपये तक होती है, और इसके साथ परोसा जाने वाला ओस्मानिया बिस्कुट स्वाद को दोगुना कर देता है।
कश्मीर की शीरी और नून चाय: स्वाद में परंपरा
कश्मीर की चाय अपने अनूठे स्वाद और परंपरा के लिए मशहूर है। शीरी चाय, नून चाय (नमकीन चाय), और गुलाबी चाय कश्मीरी संस्कृति का अभिन्न हिस्सा हैं। नून चाय को बनाने में हरी चाय की पत्तियों को दूध, नमक और बेकिंग सोडा के साथ उबाला जाता है, जिससे इसका रंग गुलाबी हो जाता है। इसे बादाम और पिस्ता के साथ परोसा जाता है, जो इसे शाही बनाता है। शीरी चाय में दालचीनी और इलायची का स्वाद इसे सर्दियों में और भी खास बनाता है।
कश्मीर के श्रीनगर में एक चाय विक्रेता, गुलाम मोहम्मद, कहते हैं, “नून चाय हमारे लिए सिर्फ पेय नहीं, बल्कि एक परंपरा है। इसे पीते वक्त लोग परिवार और दोस्तों के साथ समय बिताते हैं।” कश्मीरी चाय की कीमत 30 से 50 रुपये प्रति कप हो सकती है, और यह पर्यटकों के बीच भी बेहद लोकप्रिय है।
भोपाल: नमकीन चाय का शहर
भोपाल को चाय के दीवानों का शहर कहा जाता है। पुराने शहर की तंग गलियों में सुलेमानी नमकीन चाय की दुकानें हर कदम पर मिल जाएंगी। बुधवारा के मुमताज उमर, जो दशकों से चाय बेच रहे हैं, बताते हैं, “हमारी चाय में दूध, पानी, शक्कर और थोड़ा-सा नमक डाला जाता है, जो स्वाद को अनूठा बनाता है। रोजाना 100 किलो से ज्यादा दूध की चाय बनती है।” इस चाय की कीमत 8 रुपये प्रति कप है, और यह भोपाल की संस्कृति का हिस्सा बन चुकी है।
नए शहर में भी चाय स्टूडियोज का चलन बढ़ रहा है। गौतम नगर के चाय स्टूडियो के मालिक निवेश शर्मा कहते हैं “हमारे यहां 15 फ्लेवर की चाय मिलती है लेमन टी, चॉकलेट टी, अदरक टी और ठंडी लेमन आइस टी। कीमत 10 से 40 रुपये तक है।” भोपाल में चाय सिर्फ पेय नहीं बल्कि लोगों को जोड़ने का जरिया है।
चाय की खेती: भारत का गौरव, दार्जिलिंग का संकट
भारत दुनिया के सबसे बड़े चाय उत्पादक देशों में से एक है। पश्चिम बंगाल, असम केरल, तमिलनाडु, कश्मीर और हिमाचल प्रदेश में चाय के बागान फैले हुए हैं। केरल की मुन्नार वैली और इडुक्की की पीरूमेड पहाड़ियों पर चाय के बागान और प्रोसेसिंग यूनिट्स पर्यटकों को भी आकर्षित करते हैं। असम की चाय अपनी मजबूत सुगंध और स्वाद के लिए जानी जाती है, तो दार्जिलिंग की चाय अपनी हल्की और फ्लेवरफुल खुशबू के लिए।
हालांकि, दार्जिलिंग का चाय उद्योग गहरे संकट में है। जलवायु परिवर्तन, नेपाल से सस्ती चाय का आयात, घटता निर्यात और बढ़ती लागत ने उत्पादन को 30 साल के न्यूनतम स्तर पर ला दिया है। दार्जिलिंग चाय की कीमतें अन्य चायों की तुलना में अधिक होने से प्रतिस्पर्धा मुश्किल हो रही है। इसके अलावा चाय बागानों में मजदूरों के शोषण की खबरें भी सामने आती हैं, जो इस उद्योग के लिए एक बड़ी चुनौती है। विशेषज्ञों का मानना है कि नीतिगत सुधार और उद्योग सहयोग के बिना दार्जिलिंग चाय का भविष्य खतरे में है।
भारत में चाय की विविधता: लैप्सांग से डस्ट टी तक
भारत में चाय की विविधता इसकी लोकप्रियता का एक बड़ा कारण है। बंगाल, असम और बिहार में चायपत्ती की दुकानों पर शीशे के जार और टीन के कनस्तरों में तरह-तरह की चाय मिलती है। बिहार के जमालपुर के एक चायपत्ती विक्रेता, राजेश यादव, कहते हैं, “हमारे पास लैप्सांग,डार्जिलिंग, असम टी, और डस्ट टी जैसी दो दर्जन से ज्यादा वैरायटी हैं। अमीर लोग लैप्सांग या फर्स्ट फ्लश डार्जिलिंग पीते हैं, जबकि आम आदमी डस्ट टी से अपना शौक पूरा करता है।”
चाय की कीमत भी इसकी विविधता को दर्शाती है – सस्ती डस्ट टी 100 रुपये प्रति किलो से शुरू होती है, तो प्रीमियम डार्जिलिंग चाय 2000 रुपये प्रति किलो तक जा सकती है।
चाय और भारतीय संस्कृति
चाय भारत में सिर्फ एक पेय नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक मेलजोल का प्रतीक है। चाहे वह ऑफिस में सहकर्मियों के साथ “चाय पर चर्चा” हो, या गांव की चौपाल पर बुजुर्गों की बातचीत, चाय हर जगह मौजूद है। सर्दियों में अदरक और तुलसी की चाय सेहत देती है तो गर्मियों में ठंडी मसाला चाय तरोताजा करती है। त्योहारों, शादियों और सामाजिक समारोहों में भी चाय का प्याला मेहमानों का स्वागत करता है।
हैदराबाद, भोपाल, कश्मीर, या कोलकाता – हर जगह चाय का अंदाज अलग है लेकिन इसका जादू एक-सा है। यह भारतीयों की जिंदगी में एक ऐसी मिठास घोलती है, जो हर पल को खास बनाती है।
मैं इंदर सिंह चौधरी वर्ष 2005 से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय हूं। मैंने मास कम्यूनिकेशन में स्नातकोत्तर (M.A.) किया है। वर्ष 2007 से 2012 तक मैं दैनिक भास्कर, उज्जैन में कार्यरत रहा, जहाँ पत्रकारिता के विभिन्न पहलुओं का व्यावहारिक अनुभव प्राप्त किया।
वर्ष 2013 से 2023 तक मैंने अपना मीडिया हाउस ‘Hi Media’ संचालित किया, जो उज्जैन में एक विश्वसनीय नाम बना। डिजिटल पत्रकारिता के युग में, मैंने सितंबर 2023 में पुनः दैनिक भास्कर से जुड़ते हुए साथ ही https://mpnewsbrief.com/ नाम से एक न्यूज़ पोर्टल शुरू किया है। इस पोर्टल के माध्यम से मैं करेंट अफेयर्स, स्वास्थ्य, ज्योतिष, कृषि और धर्म जैसे विषयों पर सामग्री प्रकाशित करता हूं। फ़िलहाल मैं अकेले ही इस पोर्टल का संचालन कर रहा हूं, इसलिए सामग्री सीमित हो सकती है, लेकिन गुणवत्ता से कोई समझौता नहीं होता।