भारतीय वैज्ञानिकों ने बनाया बिजली गिरने से 3 घंटे पहले चेतावनी देने वाला सिस्टम, लाखों जिंदगियां होंगी सुरक्षित

भारतीय वैज्ञानिकों ने बनाया बिजली गिरने से 3 घंटे पहले चेतावनी देने वाला सिस्टम, लाखों जिंदगियां होंगी सुरक्षित

Indian Scientists develop lightning prediction technology | भारत में हर साल मानसून के दौरान बिजली गिरने से सैकड़ों लोगों की जान चली जाती है, लेकिन अब भारतीय वैज्ञानिकों ने एक ऐसी क्रांतिकारी तकनीक विकसित की है, जो इस खतरे को काफी हद तक कम कर सकती है। नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर (NRSC) के वैज्ञानिकों ने भारत के इंसैट-3डी सैटेलाइट का उपयोग करके एक अत्याधुनिक सिस्टम तैयार किया है, जो बिजली गिरने से 3 घंटे पहले चेतावनी दे सकता है। यह सिस्टम न केवल किसानों, मजदूरों और खुले में काम करने वालों को सुरक्षित स्थान पर जाने का समय देगा, बल्कि हजारों जिंदगियों को बचाने में भी मदद करेगा। आइए, इस सिस्टम के बारे में विस्तार से जानते हैं और समझते हैं कि यह कैसे काम करता है। Indian Scientists develop lightning prediction technology

बिजली गिरने की समस्या: भारत में एक गंभीर चुनौती

भारत में बिजली गिरने की घटनाएं, खासकर मानसून के मौसम में, एक गंभीर समस्या रही हैं। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों के अनुसार, 2002 से 2022 तक बिजली गिरने से 52,477 लोगों की मौत हुई। वहीं, एक अन्य वैज्ञानिक अध्ययन का दावा है कि 1967 से 2020 के बीच 1 लाख से अधिक लोग इस प्राकृतिक आपदा का शिकार बने। ये आंकड़े बताते हैं कि बिजली गिरना केवल एक मौसमी घटना नहीं, बल्कि एक राष्ट्रीय आपदा है, जिसका सामना ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में किया जाता है।

खासकर ग्रामीण इलाकों में, जहां लोग खेतों में या खुले में काम करते हैं, बिजली गिरने का खतरा सबसे ज्यादा होता है। पहले के सिस्टम केवल 30 मिनट पहले चेतावनी दे पाते थे, जो पर्याप्त नहीं था। लेकिन अब NRSC का यह नया सिस्टम 3 घंटे पहले अलर्ट देकर लोगों को सुरक्षित स्थान पर जाने का मौका देता है। इसकी सटीकता 75% से 85% तक है, जो इसे और भी प्रभावी बनाता है।

इंसैट-3डी सैटेलाइट: आसमान की निगरानी में मास्टर

इस सिस्टम की रीढ़ है भारत का इंसैट-3डी सैटेलाइट, जो 36,000 किलोमीटर की ऊंचाई पर पृथ्वी की कक्षा में चक्कर लगाता है। यह सैटेलाइट वातावरण में होने वाले सूक्ष्म बदलावों को भांप लेता है। इसका मुख्य काम है आउटगोइंग लॉन्गवेव रेडियेशन (OLR) को मापना। OLR वह गर्मी की ऊर्जा है, जो पृथ्वी से अंतरिक्ष में वापस जाती है। जब वातावरण में आंधी-तूफान बनने की स्थिति पैदा होती है, तो OLR में कमी आती है, जिसे सैटेलाइट आसानी से पकड़ लेता है।

NRSC की रिसर्च टीम के प्रमुख आलोक ताओरी बताते हैं, “जब धरती की सतह गर्म होती है, तो कम दबाव का क्षेत्र बनता है। इससे गर्म हवा तेजी से ऊपर उठती है, जो बादलों और आंधी-तूफान का निर्माण करती है। इस प्रक्रिया में OLR का पैटर्न बदल जाता है, जिसे इंसैट-3डी सैटेलाइट के जरिए देखा जा सकता है। यह ठीक वैसा ही है जैसे उबलती केतली में भाप का पैटर्न बदलने से पहले संकेत मिलते हैं।”

‘कंपोजिट इंडिकेटर’: सिस्टम की खासियत

NRSC के वैज्ञानिकों ने इस सिस्टम को और प्रभावी बनाने के लिए तीन प्रमुख मापदंडों को मिलाकर एक ‘कंपोजिट इंडिकेटर’ विकसित किया है। ये मापदंड हैं:

  1. जमीन की सतह का तापमान (LST): यह बताता है कि धरती की सतह कितनी गर्म है। गर्म सतह कम दबाव का क्षेत्र बनाती है, जो आंधी-तूफान का कारण बनता है।
  2. बादलों की गति (CMV): यह बादलों की गति और उनके बदलते पैटर्न को ट्रैक करता है, जो बिजली गिरने की संभावना का संकेत देता है।
  3. आउटगोइंग लॉन्गवेव रेडियेशन (OLR): यह पृथ्वी से अंतरिक्ष में जाने वाली गर्मी में बदलाव को मापता है।

इन तीनों मापदंडों का विश्लेषण करके सिस्टम बिजली गिरने की संभावना को 3 घंटे पहले ही भांप लेता है। यह समय ग्रामीण और कमजोर समुदायों तक चेतावनी पहुंचाने के लिए पर्याप्त है। यह सिस्टम खासकर उन क्षेत्रों में उपयोगी है, जहां लोग खुले में काम करते हैं, जैसे खेतों में किसान, निर्माण स्थलों पर मजदूर, या मछुआरे। Indian Scientists develop lightning prediction technology

कैसे काम करता है यह सिस्टम?

यह सिस्टम पूरी तरह से डेटा-आधारित है और सैटेलाइट से प्राप्त जानकारी को वास्तविक समय में विश्लेषण करता है। इंसैट-3डी सैटेलाइट हर 30 मिनट में वातावरण की तस्वीरें लेता है और LST, CMV, और OLR जैसे मापदंडों को रिकॉर्ड करता है। इसके बाद, सिस्टम में मौजूद एल्गोरिदम इन डेटा का विश्लेषण करके बिजली गिरने की संभावना का अनुमान लगाता है। अगर कोई खतरनाक पैटर्न दिखता है, तो सिस्टम तुरंत अलर्ट जनरेट करता है।

यह अलर्ट स्थानीय प्रशासन, आपदा प्रबंधन विभाग, और मोबाइल ऐप्स के जरिए लोगों तक पहुंचाया जा सकता है। ग्रामीण क्षेत्रों में, जहां इंटरनेट की पहुंच सीमित है, रेडियो और SMS के जरिए भी चेतावनी दी जा सकती है। वैज्ञानिकों का कहना है कि इस सिस्टम को और बेहतर बनाने के लिए वे इसे भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के मौजूदा अलर्ट सिस्टम के साथ एकीकृत करने की योजना बना रहे हैं।

भारत में बिजली गिरने की घटनाओं का प्रभाव

भारत में बिजली गिरने की घटनाएं सबसे ज्यादा मानसून के महीनों (जून से सितंबर) में होती हैं। ओडिशा, झारखंड, बिहार, उत्तर प्रदेश, और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में ये घटनाएं सबसे आम हैं। एक अध्ययन के अनुसार, भारत में हर साल औसतन 2,500 से 3,000 लोग बिजली गिरने से मरते हैं। ये मौतें ज्यादातर ग्रामीण क्षेत्रों में होती हैं, जहां लोग खेतों में काम कर रहे होते हैं या उनके पास सुरक्षित आश्रय नहीं होता।

बिजली गिरने से न केवल मानवीय क्षति होती है, बल्कि पशुधन और फसलों को भी नुकसान पहुंचता है। कई बार बिजली गिरने से आग लगने की घटनाएं भी सामने आती हैं, जिससे संपत्ति का भारी नुकसान होता है। इस सिस्टम के लागू होने से न केवलमानवीय जानें बचेंगी, बल्कि आर्थिक नुकसान को भी कम किया जा सकेगा।

पुराने सिस्टम की कमियां और नया सिस्टम क्यों है बेहतर?

पहले के बिजली चेतावनी सिस्टम ज्यादातर ग्राउंड-बेस्ड सेंसर या रडार पर निर्भर थे, जो केवल 30 मिनट पहले चेतावनी दे पाते थे। इतने कम समय में लोगों को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाना मुश्किल था। इसके अलावा, इन सिस्टम की सटीकता भी 50-60% तक सीमित थी। NRSC का नया सिस्टम सैटेलाइट-आधारित है, जो ज्यादा व्यापक क्षेत्र को कवर करता है और इसकी सटीकता 75-85% है। साथ ही, 3 घंटे पहले चेतावनी देने की क्षमता इसे और प्रभावी बनाती है। Indian Scientists develop lightning prediction technology

भविष्य की योजनाएं: और बेहतर होगा सिस्टम

NRSC के वैज्ञानिक इस सिस्टम को और उन्नत बनाने की दिशा में काम कर रहे हैं। उनकी योजना है कि इसे भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) और अन्य आपदा प्रबंधन एजेंसियों के साथ एकीकृत किया जाए। इसके अलावा, इस सिस्टम को स्थानीय भाषाओं में अलर्ट भेजने के लिए मोबाइल ऐप्स और SMS सेवाओं के साथ जोड़ा जाएगा। इससे ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोग भी समय पर जानकारी प्राप्त कर सकेंगे।

वैज्ञानिक इस सिस्टम में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और मशीन लर्निंग (ML) तकनीकों को शामिल करने पर भी विचार कर रहे हैं, ताकि इसकीसटीकता को 90% से अधिक किया जा सके। साथ ही, यह सिस्टम भविष्य में तूफान, भारी बारिश, और अन्य प्राकृतिक आपदाओं की भविष्यवाणी के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है।

सामाजिक और आर्थिक प्रभाव

इस सिस्टम का सबसे बड़ा लाभ उन कमजोर समुदायों को होगा, जो बिजली गिरने की घटनाओं से सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं। किसान, मजदूर, और मछुआरे अब समय रहते सुरक्षित स्थान पर जा सकेंगे। इससे न केवल उनकी जान बचेगी, बल्कि उनके परिवारों को आर्थिक और भावनात्मक नुकसान से भी बचाया जा सकेगा।

इसके अलावा, यह सिस्टम सरकार और आपदा प्रबंधन विभागों को बेहतर योजना बनाने में मदद करेगा। उदाहरण के लिए, बिजली गिरने की संभावना वाले क्षेत्रों में पहले से ही राहत और बचाव कार्य शुरू किए जा सकते हैं। यह सिस्टम भारत के डिजिटल इंडिया और आत्मनिर्भरभारत के दृष्टिकोण को भी मजबूत करता है, क्योंकि यह पूरी तरहस्वदेशी तकनीक पर आधारित है। Indian Scientists develop lightning prediction technology

निष्कर्ष: एक नई उम्मीद

NRSC के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित यह सिस्टम भारत में बिजली गिरने की घटनाओं से होने वाली मौतों को कम करने की दिशा में एक बड़ा कदम है। इंसैट-3डी सैटेलाइट और ‘कंपोजिट इंडिकेटर’ की मदद से 3 घंटे पहले चेतावनी देने की क्षमता इसे विश्व स्तर पर एक अनूठा सिस्टम बनाती है। यह न केवल भारत की वैज्ञानिकउपलब्धियों को दर्शाता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि कैसे तकनीक का उपयोग आम लोगों की जिंदगी को बेहतर बनाने के लिए किया जा सकता है। Indian Scientists develop lightning prediction technology

डिस्क्लेमर: यह जानकारी वैज्ञानिक अनुसंधान और उपलब्ध आंकड़ों के आधार पर दी गई है। इस सिस्टम की प्रभावशीलता क्षेत्र और परिस्थितियों पर निर्भर हो सकती है। Indian Scientists develop lightning prediction technology


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