सोम प्रदोष व्रत कथा : इस पावन कथा के पाठ से पाएं व्रत का दोगुना फल

सोम प्रदोष व्रत कथा : इस पावन कथा के पाठ से पाएं व्रत का दोगुना फल

Som Pradosh Vrat Katha | सोमवार को पड़ने वाला प्रदोष व्रत, जिसे सोम प्रदोष व्रत के नाम से जाना जाता है, भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त करने का शुभ अवसर है। यह व्रत भोलेनाथ के आशीर्वाद को दोगुना करता है, क्योंकि सोमवार भगवान शिव का प्रिय दिन माना जाता है। मान्यता है कि इस व्रत को श्रद्धा और नियमपूर्वक करने से व्यक्ति के सभी कष्ट, दुख और संकट दूर हो जाते हैं, साथ ही मनचाही मनोकामनाएं भी पूरी होती हैं। सोम प्रदोष व्रत की कथा पढ़ने और सुनने से इसका पुण्य फल कई गुना बढ़ जाता है। आइए, जानते हैं इस पावन व्रत की विस्तृत कथा और इसके महत्व को। Som Pradosh Vrat Katha in Hindi


सोम प्रदोष व्रत कथा

प्राचीन काल की बात है, एक छोटे से नगर में एक निर्धन ब्राह्मणी अपने छोटे पुत्र के साथ रहती थी। उसके पति का देहांत हो चुका था, जिसके बाद उसका पुत्र ही उसका एकमात्र सहारा था। उनके पास न तो कोई संपत्ति थी, न ही कोई अन्य आर्थिक साधन। अपनी और अपने बेटे की आजीविका चलाने के लिए वह रोज सुबह अपने पुत्र के साथ भिक्षा मांगने निकल पड़ती थी। भिक्षा में मिलने वाले थोड़े-बहुत अन्न और वस्त्रों से ही दोनों का जीवन-यापन होता था।

एक दिन, जब ब्राह्मणी भिक्षा मांगकर अपने घर लौट रही थी, तो रास्ते में उसे एक युवक दिखाई दिया। वह युवक गंभीर रूप से घायल था और दर्द से कराह रहा था। उसकी हालत देखकर ब्राह्मणी का हृदय करुणा से भर उठा। उसने बिना किसी स्वार्थ के उस युवक को अपने घर ले जाने का निर्णय लिया। घर पहुंचकर उसने अपनी अल्प सामग्री से उसका उपचार किया और उसे अपने बेटे की तरह स्नेह व देखभाल दी। ब्राह्मणी की सेवा और ममता से कुछ ही दिनों में वह युवक पूरी तरह स्वस्थ हो गया।

स्वस्थ होने पर युवक ने ब्राह्मणी को अपनी आपबीती सुनाई। वह कोई साधारण व्यक्ति नहीं, बल्कि विदर्भ देश का राजकुमार था। कुछ समय पहले उसके राज्य पर शत्रुओं ने आक्रमण कर दिया था। युद्ध में उसके पिता को बंदी बना लिया गया और वह स्वयं अपनी जान बचाकर भाग निकला था। भागते समय वह घायल हो गया और भटकते हुए इस नगर में पहुंचा। ब्राह्मणी ने उसकी कहानी सुनकर उसे अपने परिवार का हिस्सा बना लिया और अपनी सीमित क्षमता में भी उसकी हर संभव मदद की।

ब्राह्मणी एक सच्ची शिव भक्त थी। वह प्रत्येक सोमवार को सोम प्रदोष व्रत पूरे विधि-विधान और श्रद्धा के साथ रखती थी। वह सुबह जल्दी उठकर स्नान करती, भगवान शिव का पूजन करती और दिनभर उपवास रखती। संध्या काल में शिव मंदिर जाकर शिवलिंग पर जल, बेलपत्र, धतूरा और चंदन अर्पित करती थी। उसका यह व्रत और भक्ति ही उसके जीवन का आधार थी। राजकुमार भी ब्राह्मणी के इस समर्पण को देखकर प्रभावित हुआ और उसने भी शिव भक्ति में रुचि लेनी शुरू कर दी।

इसी नगर में अंशुमति नाम की एक सुंदर और गुणवान गंधर्व कन्या अपने माता-पिता के साथ रहती थी। एक दिन उसकी नजर राजकुमार पर पड़ी। उसकी शालीनता, तेज और आचरण से वह इतनी प्रभावित हुई कि उसे राजकुमार से प्रेम हो गया। उसने अपने माता-पिता को अपने मन की बात बताई। अंशुमति के माता-पिता ने राजकुमार से मिलने का निर्णय लिया। मुलाकात के दौरान वे भी राजकुमार के व्यक्तित्व से अभिभूत हो गए।

उसी रात भगवान शिव ने अंशुमति के माता-पिता को स्वप्न में दर्शन दिए और आदेश दिया, “अंशुमति का विवाह इस राजकुमार से कर दो। यह विवाह दोनों के लिए शुभ होगा और मेरी कृपा से उनके जीवन में सुख-समृद्धि आएगी।” स्वप्न के इस आदेश को पाकर अंशुमति के माता-पिता ने अगले दिन भगवान शिव का विधिवत पूजन किया और ब्राह्मणी की सहमति से राजकुमार और अंशुमति का विवाह संपन्न कराया। यह विवाह बड़े धूमधाम और आनंद के साथ हुआ।

विवाह के कुछ समय बाद, ब्राह्मणी के सोम प्रदोष व्रत के पुण्य प्रभाव और गंधर्वों की सेना की सहायता से राजकुमार ने अपनी सेना को पुनर्गठित किया। उसने विदर्भ पर पुनः आक्रमण किया और शत्रुओं को परास्त कर अपने पिता को बंदीगृह से मुक्त कराया। इस तरह उसने अपना खोया हुआ राज्य पुनः प्राप्त किया। राजकुमार ने अपने जीवन में आए इस चमत्कार का श्रेय ब्राह्मणी की भक्ति और उसके व्रत के पुण्य को दिया।

राजकुमार ने ब्राह्मणी के पुत्र को अपना प्रधानमंत्री नियुक्त किया और उसे उच्च सम्मान दिया। वह स्वयं अंशुमति के साथ सुखपूर्वक राजपाट संभालने लगा। उसने जीवन भर प्रत्येक सोमवार को सोम प्रदोष व्रत रखने का संकल्प लिया। ब्राह्मणी का जीवन भी सुख और समृद्धि से भर गया। उसकी भक्ति और व्रत के प्रभाव से न केवल उसका जीवन सुधरा, बल्कि राजकुमार और उसके परिवार का भाग्य भी चमक उठा।


सोम प्रदोष व्रत का महत्व

सोम प्रदोष व्रत भगवान शिव और माता पार्वती की कृपा प्राप्त करने का एक अचूक साधन है। इस व्रत को करने से निम्नलिखित लाभ प्राप्त होते हैं:

  • सभी कष्टों का निवारण: यह व्रत जीवन की सभी बाधाओं, रोगों और संकटों को दूर करता है।
  • मनोकामनाओं की पूर्ति: सच्ची श्रद्धा से व्रत करने पर मनचाही इच्छाएं पूरी होती हैं।
  • आर्थिक समृद्धि: यह व्रत धन-संपत्ति और आर्थिक स्थिरता प्रदान करता है।
  • पारिवारिक सुख: परिवार में सुख-शांति और प्रेम बढ़ता है।
  • पापों का नाश: इस व्रत से पिछले जन्मों के पाप नष्ट होते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

सोम प्रदोष व्रत की पूजा विधि

  1. प्रातः स्नान: सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  2. शिव पूजन: घर या मंदिर में शिवलिंग की स्थापना करें। जल, दूध, बेलपत्र, धतूरा, चंदन और फूल अर्पित करें।
  3. उपवास: दिनभर निर्जला या फलाहार उपवास रखें।
  4. प्रदोष काल पूजा: सूर्यास्त के समय (प्रदोष काल) में पुनः शिव पूजा करें। “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का जाप करें और शिव चालीसा का पाठ करें।
  5. कथा पाठ: सोम प्रदोष व्रत की कथा पढ़ें या सुनें।
  6. आरती और प्रसाद: पूजा के बाद शिव जी की आरती करें और प्रसाद ग्रहण करें। Som Pradosh Vrat Katha

सोम प्रदोषव्रत की कथा हमें यह सिखाती है कि भगवान शिव की भक्ति और श्रद्धा से जीवन की हर मुश्किलआसान हो सकती है। ब्राह्मणी की निःस्वार्थ सेवा और व्रत के पुण्य ने न केवल उका, बल्कि राजकुमार का जीवन भी बदल दिया। यदि आप भी सच्चेमन से इसव्रत को रखते हैं और इस कथा का पाठ करते हैं, तो भगवान शिव की कृपा से आपके जीवन में भी सुख, शांति और समृद्धि आएगी। Som Pradosh Vrat Katha


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