श्राद्ध पक्ष की शुरुआत को लेकर मतभेद: 17 या 18 सितंबर, जानें कौन-सा दिन है श्राद्ध के लिए उचित

Shraddh Ritual Debate | श्राद्ध पक्ष की शुरुआत को लेकर मतभेद: 17 या 18 सितंबर, जानें कौन-सा दिन है श्राद्ध के लिए उचित

Shraddh Ritual Debate | उज्जैन। श्राद्ध पक्ष का प्रारंभ इस बार पंचांग और ज्योतिष गणनाओं में आए मतभेद के कारण उलझन का विषय बन गया है। कई पंचांगकर्ता और ज्योतिषाचार्य 17 सितंबर को दोपहर से पूर्णिमा तिथि के आरंभ को मानते हुए इसी दिन से श्राद्ध पक्ष की शुरुआत मान रहे हैं, जबकि कुछ पंडित और विद्वान 18 सितंबर को पूर्णिमा मानते हुए उसी दिन से श्राद्ध करने की सलाह दे रहे हैं। ऐसे में श्राद्धकर्म करने वाले लोगों में यह सवाल खड़ा हो गया है कि वे किस दिन श्राद्ध करें।

विशेष रूप से प्रतिपदा तिथि के श्राद्धकर्म करने वाले लोगों में संशय [Shraddh Ritual Debate] की स्थिति है। उज्जैन के विक्रम विश्वविद्यालय के ज्योतिष विभाग के प्रोफेसर एवं वरिष्ठ ज्योतिषाचार्य पं. सर्वेश्वर शर्मा के अनुसार, 17 सितंबर को दोपहर में पूर्णिमा तिथि का आरंभ हो रहा है, इसलिए इस दिन से श्राद्ध पक्ष शुरू होगा। उनके अनुसार, श्राद्ध कर्म के लिए उदयातिथि का महत्व होता है, लेकिन पितृ पक्ष में मुख्य पूजा और कर्म दोपहर में संपन्न होते हैं। अत: 17 सितंबर को दोपहर में लगने वाली पूर्णिमा तिथि मान्य होगी, और अगले दिन यानी 18 सितंबर को प्रतिपदा तिथि का श्राद्ध किया जाएगा।

17 सितंबर से श्राद्ध पक्ष प्रारंभ होने का पक्ष

पं. सर्वेश्वर शर्मा और अन्य ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, चूंकि 17 सितंबर को दोपहर के बाद पूर्णिमा तिथि लग रही है, इसलिए इस दिन पूर्णिमा का श्राद्ध किया जाना चाहिए। श्राद्ध कर्म में मुख्य रूप से मध्याह्न का समय महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि यही समय पितरों को अर्पित करने के लिए सर्वोत्तम होता है। [Shraddh Ritual Debate]

उनका तर्क है कि जब पंचांग में दोपहर के समय पूर्णिमा तिथि प्रारंभ हो रही है, तो उस दिन पूर्णिमा का श्राद्ध किया जाना चाहिए। इसके साथ ही, अगले दिन 18 सितंबर को प्रतिपदा तिथि मान्य होगी और उस दिन प्रतिपदा का श्राद्ध किया जाएगा। उनका यह भी कहना है कि पितृ पक्ष में दिन का उदयकाल नहीं, बल्कि दोपहर का समय विशेष महत्व रखता है, इसीलिए 17 सितंबर को ही पूर्णिमा का श्राद्ध किया जाना चाहिए।

18 सितंबर को श्राद्ध पक्ष प्रारंभ मानने का पक्ष

दूसरी ओर, कुछ अन्य पंचांगकर्ता और विद्वान मानते हैं कि उदयातिथि के आधार पर श्राद्ध कर्म किया जाना चाहिए। उनके अनुसार, 18 सितंबर को पूर्णिमा तिथि का उदय होगा, इसलिए उसी दिन से श्राद्ध पक्ष की शुरुआत होगी और पूर्णिमा का श्राद्ध भी इसी दिन किया जाना चाहिए। इस मत के अनुसार, 18 सितंबर को ही श्राद्धकर्म शुरू करने से पितरों को शांति और तृप्ति मिलेगी। [Shraddh Ritual Debate]

इस मतभेद के कारण श्राद्धकर्म करने वालों में असमंजस की स्थिति उत्पन्न हो गई है। खासकर, जो लोग प्रतिपदा तिथि का श्राद्ध करते हैं, उनके लिए यह तय करना मुश्किल हो रहा है कि वे 17 सितंबर को श्राद्ध करें या 18 सितंबर को।

षष्ठी और सप्तमी का श्राद्ध एक ही दिन, दो दिन की एकादशी

इस बार श्राद्ध पक्ष में षष्ठी और सप्तमी का श्राद्ध एक ही दिन होगा। पंचांग के अनुसार, षष्ठी और सप्तमी तिथियां इस प्रकार से पड़ रही हैं कि दोनों का श्राद्धकर्म एक ही दिन किया जाएगा। इसके साथ ही, एकादशी तिथि दो दिन रहेगी, यानी कि एकादशी का श्राद्धकर्म करने वाले लोग दो दिन तक श्राद्ध कर सकेंगे।

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श्राद्धकर्म में तिथि निर्धारण का महत्व

हिंदू धर्म में श्राद्ध कर्म और पितृ तर्पण का अत्यधिक महत्व है। यह कर्म पितरों की आत्मा की शांति और तृप्ति के लिए किया जाता है, जिससे परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहे। श्राद्ध पक्ष में हर तिथि का अपना विशेष महत्व होता है, और जिस तिथि पर व्यक्ति की मृत्यु हुई हो, उसी तिथि पर श्राद्धकर्म किया जाता है।

परंतु जब तिथियों के निर्धारण में कोई मतभेद उत्पन्न होता है, तो श्राद्धकर्म करने वाले लोगों के लिए यह समझना कठिन हो जाता है कि सही तिथि कौन-सी है। पंचांग और ज्योतिष गणनाओं में इस प्रकार के मतभेद [Shraddh Ritual Debate] सामान्यत: तिथियों के क्षय या उनके विलुप्त होने के कारण होते हैं।

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श्राद्धकर्म करने वालों के लिए सुझाव

इस प्रकार की परिस्थितियों में, श्राद्धकर्म करने वालों को निम्नलिखित सुझावों पर विचार करना चाहिए:

  1. स्थानीय पुरोहित या ज्योतिषाचार्य से परामर्श लें: तिथि के निर्धारण को लेकर उत्पन्न संशय को दूर करने के लिए यह महत्वपूर्ण है कि श्राद्धकर्म करने वाले लोग अपने स्थानीय पुरोहित या विद्वान ज्योतिषाचार्य से परामर्श करें। उनके मार्गदर्शन से आप यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि सही तिथि पर श्राद्धकर्म संपन्न हो।
  2. परिवार की परंपरा का पालन करें: कई बार परिवार में पहले से चली आ रही परंपराओं का पालन करने से भी संशय समाप्त हो जाता है। यदि आपके परिवार में किसी विशेष तिथि को श्राद्धकर्म किया जाता है, तो उसी तिथि को श्राद्ध करना उचित रहेगा।
  3. मध्याह्न का महत्व: जैसा कि पं. सर्वेश्वर शर्मा और अन्य ज्योतिषाचार्यों ने बताया है कि श्राद्ध कर्म में दोपहर का समय विशेष महत्व रखता है। इसलिए तिथि के आरंभ से अधिक उस समय को ध्यान में रखना चाहिए, जब श्राद्ध कर्म किया जाता है।
  4. क्षय तिथि का ध्यान रखें: श्राद्ध पक्ष में कुछ तिथियों का क्षय हो सकता है, अर्थात वे तिथियां पूरी तरह से नहीं रहतीं। ऐसे में यह महत्वपूर्ण है कि पंचांग के अनुसार सही तिथि का चुनाव किया जाए, ताकि पितरों की आत्मा को तृप्ति मिल सके।

श्राद्ध पक्ष की शुरुआत को लेकर उत्पन्न यह मतभेद [Shraddh Ritual Debate] दर्शाता है कि धार्मिक और ज्योतिषीय गणनाओं में सूक्ष्म अंतर कैसे लोगों के निर्णयों को प्रभावित कर सकता है। 17 सितंबर को पूर्णिमा तिथि के दोपहर में आरंभ होने के कारण पं. सर्वेश्वर शर्मा जैसे विद्वानों का मत है कि श्राद्धकर्म इसी दिन से शुरू होना चाहिए। वहीं, उदयातिथि को महत्व देने वाले पंडित 18 सितंबर को श्राद्ध करने की सलाह दे रहे हैं।

इस मतभेद के बावजूद, श्राद्धकर्म करने वाले लोगों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वे सही तिथि और समय पर अपने पितरों का श्राद्ध करें, ताकि उनके परिवार में शांति और समृद्धि बनी रहे। श्राद्ध पक्ष की यह धार्मिक विधि केवल परंपरा नहीं, बल्कि आत्मीय श्रद्धा और कर्तव्य का प्रतीक है, जिसे सही तरीके से निभाना अत्यंत महत्वपूर्ण है। [Shraddh Ritual Debate]

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