मंदिर की जमीन पर बनी है मस्जिद, हिंदू संगठनों का विरोध, CM मोहन यादव ने SDM को हटाया
Jabalpur Masjid Controversy | मध्य प्रदेश के जबलपुर में रांझी के मड़ई क्षेत्र में गायत्री मंदिर की जमीन पर मस्जिद के कथित अवैध निर्माण को लेकर विवाद ने तूल पकड़ लिया है। विश्व हिंदू परिषद (VHP) और बजरंग दल जैसे हिंदू संगठनों ने इस मुद्दे पर आक्रामक रुख अपनाते हुए प्रदर्शन किए और प्रशासन पर पक्षपात का आरोप लगाया। यह विवाद तब और गहरा गया जब कलेक्टर के आधिकारिक सोशल मीडिया अकाउंट से एक विवादित पोस्ट की गई, जिसे बाद में हटा लिया गया। इस मामले में मुख्यमंत्री मोहन यादव ने त्वरित कार्रवाई करते हुए SDM को हटाने और जांच कमेटी गठित करने का आदेश दिया है। आइए, इस विवाद की धार्मिक, सामाजिक, और प्रशासनिक पृष्ठभूमि को विस्तार से समझते हैं। Jabalpur Masjid Controversy
विवाद की शुरुआत: मंदिर की जमीन पर मस्जिद का दावा
जबलपुर के मड़ई क्षेत्र में खसरा नंबर 169 की जमीन, जो राजस्व रिकॉर्ड में 1975 से बाल गायत्री मंदिर के नाम दर्ज है, विवाद का केंद्र बनी हुई है। हिंदू संगठनों का दावा है कि इस जमीन पर अवैध रूप से मस्जिद का निर्माण किया गया है। उनके अनुसार, वक्फ बोर्ड को केवल खसरा नंबर 165 की 1000 वर्ग फुट जमीन आवंटित थी, जो वर्तमान मस्जिद से लगभग 40 मीटर दूर है। फिर भी, मस्जिद का निर्माण 3000 वर्ग फुट क्षेत्र में किया गया, जिसमें अवैध दुकानें और एक मदरसा भी शामिल है। Jabalpur Masjid Controversy
प्रमुख आरोप:
- अवैध निर्माण: हिंदू संगठनों का कहना है कि मस्जिद का निर्माण मंदिर की जमीन पर हुआ, जो राजस्व रिकॉर्ड में स्पष्ट है। 29 अक्टूबर 2021 की नायब तहसीलदार की रिपोर्ट भी इसकी पुष्टि करती है।
- वक्फ बोर्ड की भूमिका: संगठनों का आरोप है कि वक्फ बोर्ड ने आवंटित जमीन से तीन गुना अधिक क्षेत्र पर कब्जा किया।
- अवैध मदरसा: मस्जिद की आड़ में एक अवैध मदरसा संचालित हो रहा है, जिसके लिए कोई वैध दस्तावेज नहीं हैं।
- हाईकोर्ट में केस वापसी: मस्जिद कमेटी ने इस मामले को हाईकोर्ट में उठाया था, लेकिन दस्तावेजों की कमी के कारण याचिका वापस लेनी पड़ी।
प्रशासन का रुख और विवादित पोस्ट
12 जुलाई 2025 को रघुवीर सिंह मरावी ने सोशल मीडिया पर मस्जिद निर्माण से जुड़ी जानकारी साझा की, जिसके बाद हिंदू संगठनों ने कार्रवाई की मांग की। इसके जवाब में, जबलपुर कलेक्टर के आधिकारिक अकाउंट से एक पोस्ट की गई, जिसमें दावा किया गया कि मस्जिद का निर्माण बंदोबस्त से पहले की मालिकाना हक वाली जमीन पर हुआ और वहां कभी मंदिर नहीं था।
इस पोस्ट ने हिंदू संगठनों को भड़का दिया, क्योंकि उनके पास राजस्व रिकॉर्ड और नायब तहसीलदार की रिपोर्ट जैसे प्रमाण थे। पोस्ट को कुछ घंटों बाद हटा लिया गया, लेकिन तब तक यह सोशल मीडिया पर वायरल हो चुकी थी। VHP विभाग मंत्री पंकज श्रीवास्तव ने प्रशासन पर बिना जांच के मस्जिद कमेटी को क्लीन चिट देने का आरोप लगाया।
प्रदर्शन और तनाव:
- 14 जुलाई 2025: हिंदू संगठनों ने कलेक्टर का प्रतीकात्मक अर्थी जुलूस निकाला और मड़ई क्षेत्र में नारेबाजी की। पुलिस ने स्थिति नियंत्रित करने के लिए वाटर कैनन का उपयोग किया।
- 15 जुलाई 2025: VHP और बजरंग दल ने सभी 41 प्रखंडों में पुतला दहन की योजना बनाई थी, लेकिन मुख्यमंत्री के हस्तक्षेप के बाद इसे स्थगित कर दिया गया।
मुख्यमंत्री का हस्तक्षेप और SDM की बर्खास्तगी
मामले के तूल पकड़ने पर मुख्यमंत्री मोहन यादव ने त्वरित कार्रवाई की। उन्होंने SDM रघुवीर सिंह मरावी को हटा दिया और एक जांच कमेटी गठित करने का आश्वासन दिया। नए SDM ऋषभ जैन ने स्पष्ट किया कि विवादित पोस्ट SDM की जानकारी के बिना शेयर की गई थी।
VHP की प्रतिक्रिया: विश्व हिंदू परिषद ने मुख्यमंत्री के इस कदम का स्वागत किया और कहा कि जांच के परिणाम तक वे अपने आंदोलन को स्थगित रखेंगे। हालांकि, उन्होंने चेतावनी दी कि यदि निष्पक्ष जांच नहीं हुई तो वे 16 जुलाई को जबलपुर बंद और प्रदेशव्यापी आंदोलन करेंगे। Jabalpur Masjid Controversy
धार्मिक और सामाजिक संदर्भ
यह विवाद केवल जमीन के मालिकाना हक तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें धार्मिक भावनाएं और सामाजिक तनाव भी शामिल हैं। हिंदू संगठनों का कहना है कि यह मामला अयोध्या, काशी, और मथुरा जैसे विवादों की पुनरावृत्ति है। VHP नेता सुमित सिंह ठाकुर ने कहा, “गायत्री मंदिर की जमीन पर अवैध कब्जा ऐतिहासिक मंदिरों के साथ हुए अन्याय की तरह है।”
मस्जिद कमेटी का पक्ष: मस्जिद कमेटी ने दावा किया कि मामला कोर्ट में है और उनके पास भी दस्तावेज हैं। हालांकि, हाईकोर्ट में उनकी याचिका सबूतों के अभाव में वापस ली गई थी।
सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाएं: X पर कई यूजर्स ने इस विवाद को लेकर अपनी राय व्यक्त की। एक यूजर ने लिखा, “मंदिर की जमीन पर अवैध निर्माण बर्दाश्त नहीं होगा। प्रशासन को निष्पक्ष जांच करनी चाहिए।” वहीं, कुछ यूजर्स ने इसे सांप्रदायिक तनाव बढ़ाने वाला कदम बताया।
वैज्ञानिक और तार्किक विश्लेषण
यह विवाद केवल धार्मिक नहीं, बल्कि प्रशासनिक और कानूनी भी है। राजस्व रिकॉर्ड में खसरा नंबर 169 मंदिर के नाम दर्ज होने और नायब तहसीलदार की रिपोर्ट इसे पुष्ट करने के बावजूद, प्रशासन की क्लीन चिट ने सवाल खड़े किए हैं। यह मामला दस्तावेजों की पारदर्शिता और निष्पक्ष जांच की आवश्यकता को उजागर करता है।
संभावित समाधान:
- निष्पक्ष जांच: राजस्व रिकॉर्ड और सीमांकन की दोबारा जांच होनी चाहिए।
- दोनों पक्षों की सुनवाई: मस्जिद कमेटी और हिंदू संगठनों को अपने दस्तावेज प्रस्तुत करने का अवसर मिलना चाहिए।
- कानूनी प्रक्रिया: मामला कोर्ट में है, इसलिए कोर्ट के निर्णय का पालन होना चाहिए।
जबलपुर का मस्जिद विवाद धार्मिक संवेदनशीलता और प्रशासनिकजवाबदेही का मिश्रण है। हिंदूसंगठनों के प्रदर्शन और मुख्यमंत्री के हस्तक्षेप से यह स्पष्ट है कि मामलागंभीर है। निष्पक्ष जांच और पारदर्शीप्रक्रिया से ही इस विवाद का समाधान संभव है। फिलहाल, प्रशासन को दोनों समुदायों के बीच शांति बनाए रखने और कानूनी प्रक्रिया का पालन करने की चुनौती है। Jabalpur Masjid Controversy
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वर्ष 2013 से 2023 तक मैंने अपना मीडिया हाउस ‘Hi Media’ संचालित किया, जो उज्जैन में एक विश्वसनीय नाम बना। डिजिटल पत्रकारिता के युग में, मैंने सितंबर 2023 में पुनः दैनिक भास्कर से जुड़ते हुए साथ ही https://mpnewsbrief.com/ नाम से एक न्यूज़ पोर्टल शुरू किया है। इस पोर्टल के माध्यम से मैं करेंट अफेयर्स, स्वास्थ्य, ज्योतिष, कृषि और धर्म जैसे विषयों पर सामग्री प्रकाशित करता हूं। फ़िलहाल मैं अकेले ही इस पोर्टल का संचालन कर रहा हूं, इसलिए सामग्री सीमित हो सकती है, लेकिन गुणवत्ता से कोई समझौता नहीं होता।