कोर्ट में नया नियम: अब केवल वकील पहन सकेंगे सफेद शर्ट और काली पैंट
Rohini Court Dress Code Notice Expanded | रोहिणी कोर्ट बार एसोसिएशन (RCBA) ने 15 जुलाई 2025 को एक महत्वपूर्ण नोटिस जारी कर दिल्ली के रोहिणी जिला अदालत परिसर में आम जनता, क्लर्कों और वादियों के लिए सफेद शर्ट और काली पैंट पहनने पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया है। इस नियम का प्राथमिक उद्देश्य वकीलों की विशिष्ट पेशेवर पहचान को संरक्षित करना और उन धोखेबाजों को रोकना है, जो वकीलों या उनके क्लर्कों के रूप में खुद को प्रस्तुत कर अनजान वादियों को ठग रहे थे। यह कदम कोर्ट परिसर में अनुशासन, पारदर्शिता और विश्वास को बढ़ावा देने के लिए उठाया गया है। Rohini Court Dress Code Notice Expanded
नियम का उद्देश्य और महत्व
सफेद शर्ट और काली पैंट का संयोजन लंबे समय से भारत में वकीलों की पेशेवर पहचान का प्रतीक रहा है। यह ड्रेस कोड न केवल एक औपचारिक पोशाक है, बल्कि यह कानूनी बिरादरी की गरिमा और विश्वसनीयता को भी दर्शाता है। हालांकि, हाल के वर्षों में, कुछ असामाजिक तत्वों ने इस ड्रेस कोड का दुरुपयोग किया है। ये लोग वकीलों जैसी पोशाक पहनकर कोर्ट परिसर में वादियों को गुमराह करते थे, जिससे न केवल वादियों का शोषण हुआ, बल्कि कानूनी प्रणाली की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठे।
रोहिणी कोर्ट बार एसोसिएशन ने इस समस्या को गंभीरता से लिया और कई शिकायतों के बाद यह निर्णय लिया कि अब केवल पंजीकृत अधिवक्ता ही इस ड्रेस कोड का उपयोग कर सकेंगे। इस नियम का उद्देश्य न केवल धोखाधड़ी को रोकना है, बल्कि कोर्ट परिसर में एक स्पष्ट और पेशेवर वातावरण बनाए रखना भी है। Rohini Court Dress Code Notice Expanded
क्लर्कों के लिए नई शर्तें
इस नोटिस में क्लर्कों के लिए भी विशेष प्रावधान किए गए हैं। अब सभी क्लर्कों के लिए अधिकृत पहचान पत्र (ID कार्ड) ले जाना अनिवार्य होगा। यह कदम इसलिए उठाया गया है ताकि फर्जी व्यक्तियों को आसानी से पहचाना जा सके। क्लर्क, जो वकीलों के सहायक के रूप में काम करते हैं, अक्सर कोर्ट परिसर में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हालांकि, कुछ लोग क्लर्क बनकर वादियों को गलत सलाह देकर या फर्जी दस्तावेज बनाकर ठगी करते थे। इस नए नियम से ऐसी गतिविधियों पर अंकुश लगाने में मदद मिलेगी।
कोर्ट परिसर में अनुशासन और पारदर्शिता
रोहिणी कोर्ट बार एसोसिएशन ने अपने नोटिस में स्पष्ट किया है कि यह नियम कोर्ट परिसर में अनुशासन और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए लागू किया गया है। कोर्ट परिसर वह स्थान है जहां न्याय की मांग करने वाले लोग विश्वास के साथ आते हैं। यदि इस स्थान पर धोखाधड़ी और अव्यवस्था का माहौल बनता है, तो यह न केवल वादियों के विश्वास को ठेस पहुंचाता है, बल्कि पूरी कानूनी प्रणाली की साख को भी प्रभावित करता है।
इस नियम के लागू होने से कोर्ट परिसर में एक स्पष्ट अंतर दिखाई देगा। वकील अपनी विशिष्ट पोशाक के माध्यम से आसानी से पहचाने जा सकेंगे, और वादियों को यह समझने में आसानी होगी कि वे एक अधिकृत अधिवक्ता से बात कर रहे हैं। इसके अलावा, क्लर्कों के लिए पहचान पत्र अनिवार्य होने से उनकी प्रामाणिकता सुनिश्चित होगी, जिससे कोर्ट की कार्यवाही में और अधिक पारदर्शिता आएगी।
अन्य अदालतों के लिए प्रेरणा
यह नियम न केवल रोहिणी कोर्ट तक सीमित है, बल्कि यह अन्य जिला अदालतों, जैसे गुरुग्राम और देहरादून, के लिए भी एक प्रेरणा बन सकता है। इन शहरों में पहले से ही इस तरह के नियम लागू किए जा चुके हैं, और रोहिणी कोर्ट का यह कदम अन्य अदालतों को भी इसी तरह के कदम उठाने के लिए प्रोत्साहित कर सकता है। यह एक व्यापक पहल का हिस्सा बन सकता है, जिसका उद्देश्य पूरे देश में कानूनी प्रणाली को और अधिक विश्वसनीय और पारदर्शी बनाना है।
धोखाधड़ी पर अंकुश
हाल के वर्षों में, कोर्ट परिसरों में धोखाधड़ी की घटनाएं बढ़ी हैं। कुछ लोग वकीलों की पोशाक पहनकर वादियों को गलत सलाह देते थे, फर्जी दस्तावेज तैयार करते थे, या उनसे पैसे ऐंठते थे। ऐसी घटनाएं न केवल वादियों के लिए हानिकारक हैं, बल्कि ये कानूनी पेशे की प्रतिष्ठा को भी नुकसान पहुंचाती हैं। रोहिणी कोर्ट का यह नया नियम इन गतिविधियों पर प्रभावी रूप से अंकुश लगाएगा।
इसके अलावा, यह नियम वादियों को शिक्षित करने में भी मदद करेगा। अब वादी आसानी से समझ सकेंगे कि सफेद शर्ट और काली पैंट पहनने वाला व्यक्ति एक पंजीकृत वकील है। यह उनके लिए एक अतिरिक्त सुरक्षा कवच प्रदान करेगा, जिससे वे धोखाधड़ी के शिकार होने से बच सकेंगे।
कानूनी बिरादरी की प्रतिक्रिया
रोहिणी कोर्ट बार एसोसिएशन के इस फैसले को कानूनी बिरादरी में व्यापक समर्थन मिला है। कई वकीलों का मानना है कि यह नियम उनकी पेशेवर पहचान को और मजबूत करेगा। साथ ही, यह वादियों के बीच विश्वास को बढ़ाने में भी मदद करेगा। कुछ वकीलों ने यह भी सुझाव दिया है कि इस तरह के नियमों को अन्य राज्यों और उच्च न्यायालयों में भी लागू किया जाना चाहिए।
हालांकि, कुछ लोगों ने इस नियम के व्यावहारिक पहलुओं पर सवाल उठाए हैं। उदाहरण के लिए, कुछवादियों का कहना है कि वे अनजाने में सफेद शर्ट और काली पैंट पहनकर कोर्ट आ सकते हैं। ऐसे में, उन्हें कोर्ट परिसर में प्रवेश से पहले अपनी पोशाक बदलने की आवश्यकता हो सकती है, जो असुविधाजनक हो सकता है। इस तरह की चिंताओं को दूर करने के लिए, एसोसिएशन ने सुझाव दिया है कि कोर्ट परिसर में इस नियम के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए सूचना बोर्ड और अन्य माध्यमों का उपयोग किया जाएगा।
भविष्य की संभावनाएं
यह नियम कानूनी प्रणाली में एक सकारात्मक बदलाव की शुरुआत हो सकता है। भविष्य में, अन्य अदालतें भी इस तरह के नियमों को अपनाकर अपनीकार्यवाही को और अधिक पारदर्शी और विश्वसनीय बना सकती हैं। इसके अलावा, यह नियम डिजिटल पहचान पत्र और अन्य तकनीकी उपायों को लागू करने की दिशा में भी एक कदम हो सकता है, जो कोर्ट परिसर में सुरक्षा और अनुशासन को और बढ़ाएंगे।
रोहिणी कोर्ट बार एसोसिएशन का यह नया नियम एक महत्वपूर्णकदम है, जो न केवल वकीलों की पेशेवर पहचान को संरक्षितकरता है, बल्कि कोर्ट परिसर में धोखाधड़ी और अव्यवस्था को भी कम करता है। यह नियम वादियों के लिए एक सुरक्षित और विश्वसनीय वातावरण सुनिश्चित करता है, जहां वे बिना किसी डर के अपनीकानूनी समस्याओं का समाधान खोज सकते हैं। यह कदम न केवल रोहिणी कोर्ट, बल्कि पूरे देश की कानूनी प्रणाली के लिए एक मिसाल बन सकता है। Rohini Court Dress Code Notice Expanded
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मैं इंदर सिंह चौधरी वर्ष 2005 से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय हूं। मैंने मास कम्यूनिकेशन में स्नातकोत्तर (M.A.) किया है। वर्ष 2007 से 2012 तक मैं दैनिक भास्कर, उज्जैन में कार्यरत रहा, जहाँ पत्रकारिता के विभिन्न पहलुओं का व्यावहारिक अनुभव प्राप्त किया।
वर्ष 2013 से 2023 तक मैंने अपना मीडिया हाउस ‘Hi Media’ संचालित किया, जो उज्जैन में एक विश्वसनीय नाम बना। डिजिटल पत्रकारिता के युग में, मैंने सितंबर 2023 में पुनः दैनिक भास्कर से जुड़ते हुए साथ ही https://mpnewsbrief.com/ नाम से एक न्यूज़ पोर्टल शुरू किया है। इस पोर्टल के माध्यम से मैं करेंट अफेयर्स, स्वास्थ्य, ज्योतिष, कृषि और धर्म जैसे विषयों पर सामग्री प्रकाशित करता हूं। फ़िलहाल मैं अकेले ही इस पोर्टल का संचालन कर रहा हूं, इसलिए सामग्री सीमित हो सकती है, लेकिन गुणवत्ता से कोई समझौता नहीं होता।