झालावाड़ स्कूल हादसा: बच्चे कहते रहे छत गिर रही, टीचर ने धमकाकर बैठा दिया! 5 टीचर और एक अधिकारी सस्पेंड

झालावाड़ स्कूल हादसा: बच्चे कहते रहे छत गिर रही, टीचर ने धमकाकर बैठा दिया! 5 टीचर और एक अधिकारी सस्पेंड

School roof fall teacher ignored warning | राजस्थान के झालावाड़ जिले के पिपलौद गांव में शुक्रवार सुबह एक दिल दहला देने वाला हादसा हुआ, जब सरकारी हाई प्राइमरी स्कूल की जर्जर छत अचानक ढह गई। इस दुखद घटना में सात मासूम बच्चों की जान चली गई, जबकि 15 से अधिक बच्चे घायल हो गए। हादसे के समय स्कूल में सुबह की प्रार्थना सभा चल रही थी, और बच्चे प्रांगण में एकत्रित थे। स्थानीय ग्रामीणों की तत्परता और सहायता से बच्चों को मलबे से निकाला गया, लेकिन कई मासूमों को बचाया नहीं जा सका। इस हादसे ने प्रशासन और स्कूल प्रबंधन की घोर लापरवाही को उजागर किया है, जिसके चलते पांच शिक्षकों और एक शिक्षा विभाग के अधिकारी को निलंबित कर दिया गया है। School roof fall teacher ignored warning

हादसे की भयावहता और प्रत्यक्षदर्शियों का बयान

घटना के समय स्कूल में लगभग 50 बच्चे मौजूद थे। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, छत से पहले छोटे-छोटे कंकड़ और मलबा गिरना शुरू हुआ था। एक छात्रा, वर्षा, ने बताया कि बच्चों ने शिक्षकों को छत से कंकड़ गिरने की बात बताई, लेकिन शिक्षकों ने बच्चों को डांटकर चुप करा दिया और प्रार्थना सभा में बैठने के लिए कहा। वर्षा ने कहा, “हमने टीचर से कहा कि छत से कंकड़ गिर रहे हैं, लेकिन उन्होंने हमें डांट दिया और कहा, ‘चुपचाप बैठो।’ थोड़ी देर बाद ही छत गिर गई, और कई बच्चे मलबे में दब गए।” उस समय शिक्षक पास में ही नाश्ता कर रहे थे, जिससे उनकी लापरवाही और असंवेदनशीलता स्पष्ट होती है।

स्थानीय लोगों ने तुरंत बचाव कार्य शुरू किया और मलबे में दबे बच्चों को निकालकर नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र पहुंचाया। घायल बच्चों को झालावाड़ के एसआरजी अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां 11 बच्चों का इलाज चल रहा है। कुछ बच्चों की हालत गंभीर बताई जा रही है।

स्कूल की जर्जर इमारत और अनदेखी की कहानी

यह स्कूल भवन 78 साल पुराना था और इसकी हालत कई वर्षों से जर्जर थी। ग्रामीणों और अभिभावकों का कहना है कि उन्होंने कई बार स्कूल प्रशासन और जिला अधिकारियों को इमारत की खराब स्थिति के बारे में शिकायत की थी, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। कुछ समय पहले छत पर प्लास्टर का काम कराया गया था, लेकिन यह महज सतही उपाय था, जिससे बुनियादी समस्या हल नहीं हुई। ग्रामीण रामलाल ने बताया, “हमने कई बार अधिकारियों से कहा कि यह इमारत खतरनाक है, लेकिन हर बार हमें टाल दिया गया। अगर समय रहते कार्रवाई की गई होती, तो हमारे बच्चों की जान बच सकती थी।”

प्रशासन की कार्रवाई और निलंबन

हादसे के बाद जिला प्रशासन ने त्वरित कार्रवाई करते हुए पांच शिक्षकों और एक शिक्षा विभाग के अधिकारी को निलंबित कर दिया। जिला कलेक्टर अजय सिंह राठौड़ ने बताया कि मामले की गंभीरता को देखते हुए एक जांच समिति गठित की गई है। समिति की रिपोर्ट के आधार पर दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। उन्होंने कहा, “हम इस हादसे की गहन जांच कर रहे हैं। जिम्मेदार लोगों को बख्शा नहीं जाएगा।”

सरकार का मुआवजा और नए स्कूल का वादा

राजस्थान के शिक्षा एवं पंचायती राज मंत्री मदन दिलावर ने हादसे के बाद झालावाड़ के एसआरजी अस्पताल पहुंचकर घायल बच्चों से मुलाकात की और उनके स्वास्थ्य की जानकारी ली। उन्होंने इस घटना को अत्यंत दुखद बताते हुए मृतक बच्चों के परिजनों के लिए 10 लाख रुपये की आर्थिक सहायता और एक परिजन को संविदा पर नौकरी देने की घोषणा की। इसके साथ ही, उन्होंने कहा कि सरकार पिपलौद गांव में एक नया स्कूल भवन बनवाएगी, और इस स्कूल के कमरों का नाम मृतक बच्चों के नाम पर रखा जाएगा। उन्होंने दोहराया कि हादसे के लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाएगी।

नेताओं और जनता का गुस्सा

पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने इस घटना पर गहरा दुख जताया और इसे “बेहद पीड़ादायक” बताया। उन्होंने ट्वीट कर कहा, “झालावाड़ के पिपलौद में स्कूल की छत गिरने से मासूम बच्चों की मौत अत्यंत दुखद है। मैं सरकार से मांग करती हूं कि इसकी उच्च स्तरीय जांच हो और दोषियों को सजा दी जाए।” स्थानीय लोगों में प्रशासन के प्रति गुस्सा भड़क रहा है। परिजनों और ग्रामीणों ने स्कूल के बाहर प्रदर्शन किया और मांग की कि इस हादसे के लिए जिम्मेदार सभी लोगों को तुरंत गिरफ्तार किया जाए।

यह हादसा न केवल एक त्रासदी है, बल्कि यह सरकारी स्कूलों की बदहाल स्थिति और प्रशासनिक लापरवाही का जीता-जागता सबूत है। सवाल उठता है कि आखिर कितनी शिकायतों के बाद प्रशासन जागता? क्या इस हादसे को रोका जा सकता था? ग्रामीणों का कहना है कि अगर समय रहते स्कूल की मरम्मत की गई होती या बच्चों को दूसरी जगह स्थानांतरित किया गया होता, तो यह त्रासदी टल सकती थी।

जांच समिति की रिपोर्ट का इंतजार है, लेकिन इस बीच सरकार और प्रशासन पर दबाव बढ़ रहा है कि वह स्कूलों की सुरक्षा सुनिश्चित करे। यह हादसा एक चेतावनी है कि सरकारी स्कूलों की जर्जर इमारतों पर तुरंत ध्यान देना जरूरी है, ताकि भविष्य में ऐसी घटनाएं न हों।

झालावाड़ का यह हादसा सिर्फ एक स्कूल की छतगिरने की घटना नहीं, बल्कि यह शिक्षा व्यवस्था और प्रशासनिकलापरवाही की विफलता का प्रतीक है। मृतक बच्चों के परिजनों का दर्द और घायलबच्चों की पीड़ा समाज के लिए एक सबक है कि बच्चों की सुरक्षा से समझौता नहीं किया जा सकता। सरकार को चाहिए कि वह तत्काल सभी जर्जरस्कूल भवनों की जांच कराए और उनकी मरम्मत या पुनर्निर्माण करे, ताकि भविष्य में ऐसी त्रासदी दोबारा न हो। School roof fall teacher ignored warning


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