टूटी झुग्गियों में पहुँचे राहुल गाँधी, डिमोलिशन ड्राइव से की पॉलिटिकल माइलेज लेने की कोशिश, फिर भी युवराज रहे खाली ‘हाथ’

टूटी झुग्गियों में पहुँचे राहुल गाँधी, डिमोलिशन ड्राइव से की पॉलिटिकल माइलेज लेने की कोशिश, फिर भी युवराज रहे खाली ‘हाथ’

Rahul Gandhi demolition drive reaction | 16 जून 2025 को दिल्ली के जेलर वाला बाग और अशोक विहार में डीडीए ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत एक बड़े पैमाने पर डिमोलिशन ड्राइव को अंजाम दिया। इस कार्रवाई में करीब 500 झुग्गियों को तोड़ा गया, जो डीडीए की जमीन और रेलवे पटरियों के आसपास अवैध रूप से बनी थीं। डीडीए ने दावा किया कि इन झुग्गियों को हटाने से पहले कई बार नोटिस जारी किए गए थे, लेकिन कई निवासियों ने जमीन खाली करने में कोई रुचि नहीं दिखाई। Rahul Gandhi demolition drive reaction

इस कार्रवाई का आधार सुप्रीम कोर्ट का वह आदेश था, जिसमें अवैध कब्जों को हटाने और शहर को सुरक्षित और व्यवस्थित बनाने के लिए कदम उठाने को कहा गया था। डीडीए के अनुसार, यह ड्राइव न केवल कानूनी था, बल्कि इसके साथ ही प्रभावित परिवारों के लिए पुनर्वास की व्यापक व्यवस्था भी की गई थी।

पुनर्वास योजना: ‘जहां झुग्गी, वहीं मकान’

डीडीए ने प्रधानमंत्री आवास योजना (पीएमएवाई) के तहत अशोक विहार फेज-2 में ‘स्वाभिमान अपार्टमेंट’ बनाए हैं। इस परियोजना में 1675 आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) फ्लैट्स तैयार किए गए हैं, जिनमें से 1078 पात्र परिवारों को आवंटित किए जा चुके हैं। प्रत्येक फ्लैट की लागत 25 लाख रुपये है, लेकिन पात्र परिवारों को केवल 1.42 लाख रुपये और 30,000 रुपये रखरखाव शुल्क के रूप में देना है। शेष लागत सरकार द्वारा वहन की जा रही है। यह योजना 2015 में शुरू की गई ‘जहां झुग्गी, वहीं मकान’ नीति का हिस्सा है, जिसे तत्कालीन दिल्ली सरकार ने मंजूरी दी थी।

डीडीए का कहना है कि जिन लोगों को फ्लैट्स आवंटित नहीं हुए, उनके पास 2015 से पहले का वैध राशन कार्ड या मतदाता सूची में नाम नहीं था। ऐसे लोगों को अपीलीय प्राधिकरण में अपील करने का अवसर दिया गया है। डीडीए ने यह भी स्पष्ट किया कि फ्लैट्स में बुनियादी सुविधाओं जैसे साफ पानी, बिजली और सफाई की व्यवस्था सुनिश्चित की जा रही है, और किसी भी कमी को जल्द दूर किया जाएगा।

राहुल गांधी का दौरा: मदद या पॉलिटिकल ड्रामा?

25 जुलाई 2025 को, जब संसद का मानसून सत्र चल रहा था, राहुल गांधी अचानक जेलर वाला बाग पहुंचे। उन्होंने वहां के प्रभावित परिवारों से मुलाकात की, उनकी शिकायतें सुनीं और आश्वासन दिया कि कांग्रेस उनकी लड़ाई को कोर्ट और संसद में उठाएगी। उन्होंने स्थानीय लोगों से इलाके के आकार और डिमोलिशन के दायरे के बारे में सवाल किए। एक व्यक्ति ने बताया कि इलाका 100 एकड़ में फैला है, जिस पर राहुल ने हल्के-फुल्के अंदाज में कहा, “भइया, सौ एकड़ तो मैं पैदल चला हूं।” इस बातचीत का वीडियो कांग्रेस ने अपने आधिकारिक ‘X’ अकाउंट पर शेयर किया, जिसमें दावा किया गया कि राहुल गांधी ने लोगों का दर्द बांटा और उनकी मदद का वादा किया।

हालांकि, इस दौरे को लेकर सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रियाएं आईं। कई यूजर्स ने इसे ‘सहानुभूति पॉलिटिक्स’ और पॉलिटिकल माइलेज लेने की कोशिश करार दिया। एक यूजर, पीतांबरा दत्त शर्मा, ने लिखा, “क्या इनमें से किसी ने यह जमीन खरीदी थी? जो लोग मेहनत से प्लॉट खरीदकर टैक्स देते हैं, वे तो मूर्ख हैं न?” एक अन्य यूजर, मुकेश अग्रवाल, ने सवाल उठाया कि क्या राहुल गांधी कभी पाकिस्तान से आए विस्थापितों की झुग्गियों में गए? कुछ यूजर्स ने तो कांग्रेस पर रोहिंग्या और बांग्लादेशी घुसपैठियों को बसाने की कोशिश का आरोप भी लगाया।

कांग्रेस का प्रोपेगेंडा और बीजेपी का जवाब

कांग्रेस और राहुल गांधी ने इस डिमोलिशन को बीजेपी सरकार की नाकामी के रूप में पेश करने की कोशिश की। उनका दावा है कि डीडीए की कार्रवाई ने सैकड़ों परिवारों को बेघर कर दिया, और आवंटित फ्लैट्स में साफ पानी, बिजली और सफाई जैसी बुनियादी सुविधाओं की कमी है। कुछ प्रभावित लोगों ने यह भी आरोप लगाया कि हाई कोर्ट के स्टे ऑर्डर के बावजूद उनके घर तोड़े गए।

वहीं, बीजेपी और डीडीए ने इन आरोपों को सिरे से खारिज किया। बीजेपी का कहना है कि यह कार्रवाई पूरी तरह सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत हुई थी, और सरकार ने प्रभावित परिवारों के लिए पुनर्वास की पूरी व्यवस्था की है। दिल्ली की रेखा गुप्ता सरकार ने ‘जहां झुग्गी, वहीं मकान’ योजना को लागू करके झुग्गीवासियों को पक्के मकान देने का वादा निभाया है। डीडीए ने स्पष्ट किया कि जिन लोगों को फ्लैट्स नहीं मिले, वे पात्रता मानदंडों को पूरा नहीं करते थे, और उनके लिए अपील का रास्ता खुला है।

ऑपइंडिया की एक रिपोर्ट में भी दावा किया गया कि यह डिमोलिशन ड्राइव बीजेपी और दिल्ली सरकार को बदनाम करने की साजिश का हिस्सा था। रिपोर्ट में कहा गया कि सरकार ने न केवल कानूनी कार्रवाई की, बल्कि प्रभावित लोगों को बेहतर जीवन देने के लिए ठोस कदम उठाए हैं।

राहुल गांधी की पॉलिटिक्स: पुराना पैटर्न, नया मौका

राहुल गांधी का यह दौरा उनकी पुरानी रणनीति का हिस्सा प्रतीत होता है, जिसमें वह सामाजिक मुद्दों को उठाकर सुर्खियां बटोरने की कोशिश करते हैं। चाहे वह 2020 के दिल्ली दंगे हों, किसान आंदोलन हो, या बेरोजगारी का मुद्दा, राहुल अक्सर प्रभावित लोगों के बीच पहुंचकर भावनात्मक अपील करते हैं, लेकिन उनके वादों का कोई ठोस नतीजा शायद ही सामने आता हो। उदाहरण के लिए, 2023 में छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार के दौरान 1000 से अधिक झुग्गियों को तोड़ा गया था, लेकिन तब राहुल गांधी ने इस मुद्दे पर चुप्पी साधे रखी। सोशल मीडिया यूजर्स ने इस बार भी यही सवाल उठाया कि जब कांग्रेस की सरकार थी, तब राहुल को गरीबों का दर्द क्यों नहीं दिखा?

राहुल गांधी की छवि एक ऐसे नेता की रही है, जो मुद्दों को जोर-शोर से उठाता है, लेकिन समाधान की दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाता। जेलर वाला बाग में भी उनका दौरा कैमरे की चमक और सोशल मीडिया पोस्ट तक सीमित रहा। उन्होंने कोर्ट और संसद में मुद्दा उठाने की बात तो की, लेकिन यह स्पष्ट नहीं कि इससे प्रभावित लोगों को तत्काल राहत कैसे मिलेगी।

लोगों को गुमराह करने की कोशिश?

कांग्रेस का यह दावा कि बीजेपी लोगों को बेघर कर रही है, कई मायनों में भ्रामक प्रतीत होता है। डीडीए की कार्रवाई सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर आधारित थी, और पुनर्वास योजना के तहत हजारों परिवारों को पक्के मकान दिए जा रहे हैं। जो लोग पात्र नहीं थे, उनके लिए अपील का रास्ता खुला है। ऐसे में यह कहना कि बीजेपी गरीबों के खिलाफ है, हकीकत से परे है।

सोशल मीडिया पर भी लोग इस बात को समझ रहे हैं। एक यूजर ने लिखा, “कांग्रेस को गरीबों का दर्द सिर्फ कैमरे के सामने दिखता है। अगर वाकई मदद करनी होती, तो डीडीए और सरकार से बातचीत करके कोई रास्ता निकालते।” यह टिप्पणी राहुल गांधी की मंशा पर सवाल उठाती है। उनके दौरे का मकसद अगर वाकई लोगों की मदद करना होता, तो शायद वह सरकार के साथ मिलकर समाधान ढूंढने की कोशिश करते, न कि इसे पॉलिटिकल प्रोपेगेंडा बनाने की। Rahul Gandhi demolition drive reaction

पॉलिटिक्स की चमक में खोया मौका

जेलर वाला बाग का डिमोलिशन ड्राइव एक जटिल मुद्दा है, जिसमें कानूनी, सामाजिक और प्रशासनिक पहलू शामिल हैं। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत हुई इस कार्रवाई को बीजेपी और डीडीए ने पारदर्शी और लोगों के हित में बताया है। दूसरी ओर, राहुल गांधी और कांग्रेस ने इसे एक पॉलिटिकल हथियार बनाने की कोशिश की, लेकिन उनकी यह रणनीति सोशल मीडिया और जमीनी हकीकत के सामने कमजोर पड़ती दिख रही है।

अगर कांग्रेस और राहुलगांधी वाकई प्रभावित लोगों की मददकरना चाहते हैं, तो उन्हें सरकार के साथ मिलकर समस्याओं का समाधान ढूंढना चाहिए। कैमरे के सामने आंसू बहाने और बड़े-बड़े वादे करने से न तो लोगों का भला होगा, न ही उनकीसमस्याएं हल होंगी। जेलर वाला बाग के लोगों को जरूरत है ठोस समाधान की, न कि पॉलिटिकल ड्रामे की। राहुल गांधी का यह दौरा एक बार फिर साबित करता है कि उनकी ‘सहानुभूति पॉलिटिक्स’ शायद सिर्फसुर्खियां बटोरने तक सीमित है। Rahul Gandhi demolition drive reaction


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