कारगिल युद्ध में उत्तराखंड के वीरों ने दी सबसे ज्यादा कुर्बानी, आंखें नम कर देगा आंकड़ा

कारगिल युद्ध में उत्तराखंड के वीरों ने दी सबसे ज्यादा कुर्बानी, आंखें नम कर देगा आंकड़ा

Kargil Vijay Diwas | 26 जुलाई 1999 को भारतीय सेना ने कारगिल की बर्फीली चोटियों पर तिरंगा फहराकर पाकिस्तान की सेना और आतंकवादियों को करारी शिकस्त दी थी। इस ऐतिहासिक जीत को ‘कारगिल विजय दिवस’ के रूप में हर साल मनाया जाता है, जो न केवल भारत की सैन्य शक्ति का प्रतीक है, बल्कि उन 527 वीर जवानों की शहादत का भी सम्मान करता है, जिन्होंने देश की रक्षा के लिए अपने प्राण न्योछावर किए। इस युद्ध में सबसे ज्यादा शहीद उत्तराखंड के जवानों के थे, जिनके बलिदान ने इस छोटे से पहाड़ी राज्य को देश की सैन्य गाथा में अमर कर दिया। आइए, इस युद्ध की कहानी, शहादत के आंकड़ों और उत्तराखंड के वीरों की वीरता को विस्तार से जानें। Kargil Vijay Diwas

1999 की सर्दियों में, जब पाकिस्तानी सेना और आतंकवादियों ने कारगिल की ऊंची पहाड़ियों पर चोरी-छिपे कब्जा कर लिया था, तब भारत ने ‘ऑपरेशन विजय’ शुरू कर उनकी इस साजिश को नाकाम किया। यह युद्ध मई से जुलाई 1999 तक करीब 60 दिनों तक चला, जिसमें भारतीय सेना ने दुर्गम पहाड़ियों, कठिन मौसम और भारी गोलीबारी के बीच दुश्मन को खदेड़ा। 26 जुलाई 1999 को आखिरी चोटी पर तिरंगा फहराया गया, और भारत ने अपनी संप्रभुता की रक्षा की। लेकिन इस जीत की कीमत थी 527 वीर जवानों की शहादत, जिनमें से सबसे ज्यादा उत्तराखंड के थे। Kargil Vijay Diwas

उत्तराखंड: शहादत का गढ़

कारगिल युद्ध में कुल 527 भारतीय जवान शहीद हुए, जिनमें से 75 उत्तराखंड के थे। यह संख्या किसी भी अन्य राज्य से कहीं अधिक है। इस छोटे से पहाड़ी राज्य ने अपने हर जिले से वीर बेटों को खोया, जिनकी वीरता और बलिदान ने देश के इतिहास में स्वर्णिम अध्याय जोड़ा। उत्तराखंड की सैन्य परंपरा हमेशा से गौरवशाली रही है, और इस युद्ध में गढ़वाल राइफल्स और कुमाऊं रेजिमेंट ने इसे और मजबूत किया।

  • गढ़वाल राइफल्स: इस रेजिमेंट के 47 जवान शहीद हुए, जिनमें 41 उत्तराखंड के थे। इन जवानों ने तोलोलिंग, टाइगर हिल और द्रास जैसे कठिन मोर्चों पर दुश्मन से लोहा लिया। इनमें से कई जवान बेहद कम उम्र के थे, फिर भी उन्होंने असाधारण साहस का परिचय दिया।

  • कुमाऊं रेजिमेंट: इस रेजिमेंट के 16 जवान शहीद हुए, जिन्होंने अपनी जान की परवाह किए बिना दुश्मन के ठिकानों पर हमला बोला।

उत्तराखंड की 15 प्रतिशत आबादी पूर्व सैनिकों या उनके परिवारों की है, जो इस राज्य की सैन्य विरासत को दर्शाता है। कारगिल युद्ध में शहीद हुए उत्तराखंड के जवानों में से कई के परिवार आज भी उनकी वीरता पर गर्व करते हैं, हालांकि उनके जाने का दर्द कभी कम नहीं होता।

हिमाचल प्रदेश: वीरता की दूसरी मिसाल

उत्तराखंड के बाद हिमाचल प्रदेश ने सबसे ज्यादा 52 जवानों की शहादत दी। इस राज्य के सैनिकों ने भी कारगिल की चोटियों पर अदम्य साहस दिखाया। हिमाचल के दो वीर सपूतों को परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया:

  • कैप्टन विक्रम बत्रा: ‘शेरशाह’ के नाम से मशहूर कैप्टन बत्रा ने टाइगर हिल पर कब्जा करने में अहम भूमिका निभाई। उनकी वीरता के लिए उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। उनका नारा, “ये दिल मांगे मोर,” आज भी हर भारतीय के दिल में गूंजता है।

  • राइफलमैन संजय कुमार: जीवित रहते हुए परमवीर चक्र पाने वाले संजय कुमार ने अकेले दुश्मन के बंकर पर हमला कर उसे नष्ट किया। उनकी बहादुरी ने युद्ध का रुख मोड़ा।

अन्य राज्यों का योगदान

उत्तराखंड और हिमाचल के बाद पंजाब, जम्मू-कश्मीर, और राजस्थान जैसे राज्यों ने भी कारगिल युद्ध में महत्वपूर्ण योगदान दिया। पंजाब के 40 से अधिक जवान शहीद हुए, जबकि जम्मू-कश्मीर के स्थानीय सैनिकों ने अपनी जमीन की रक्षा के लिए जान गंवाई। राजस्थान की रेजिमेंट्स ने भी कई चोटियों पर दुश्मन को परास्त किया।

युद्ध की कीमत: आर्थिक और मानवीय नुकसान

कारगिल युद्ध में भारत ने न केवल अपने वीर जवानों को खोया, बल्कि आर्थिक रूप से भी भारी कीमत चुकाई। अनुमान के मुताबिक, इस युद्ध में भारत ने 5,000 से 10,000 करोड़ रुपये खर्च किए। इसमें से करीब 2,000 करोड़ रुपये अकेले वायुसेना के ऑपरेशन ‘सफेद सागर’ में खर्च हुए, जिसमें मिराज-2000 और अन्य विमानों ने दुश्मन के ठिकानों पर बमबारी की।

पाकिस्तान को भी इस युद्ध में भारी नुकसान हुआ। अनुमानित तौर पर उसके 3,000 सैनिक और आतंकवादी मारे गए, हालांकि पाकिस्तान ने आधिकारिक तौर पर केवल 357 मौतों की पुष्टि की। इसके अलावा, पाकिस्तान की सैन्य और कूटनीतिक हार ने उसे अंतरराष्ट्रीय मंच पर बेनकाब किया।

शहीदों की याद में कारगिल विजय दिवस

हर साल 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन देश भर में शहीदों को श्रद्धांजलि दी जाती है। द्रास में कारगिल युद्ध स्मारक, जहां शहीदों के नाम अंकित हैं, एक तीर्थस्थल की तरह है। इस स्मारक पर हर साल हजारों लोग अपने वीर सैनिकों को याद करने पहुंचते हैं।

उत्तराखंड और हिमाचल जैसे राज्यों में स्थानीय स्तर पर भी शहीदों को सम्मान देने के लिए कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। उत्तराखंड के गांवों में शहीदों के परिवारों को सम्मानित किया जाता है, और उनकी कहानियां नई पीढ़ी को प्रेरित करती हैं।

शहादत का सम्मान: पुरस्कार और स्मरण

कारगिल युद्ध में भारतीय सेना के साहस को सम्मानित करने के लिए कई सैनिकों को वीरता पुरस्कारों से नवाजा गया। चार परमवीर चक्र, नौ महावीर चक्र, और 53 वीर चक्र सहित सैकड़ों अन्य पुरस्कार दिए गए। इनमें से अधिकांश पुरस्कार उत्तराखंड, हिमाचल, और पंजाब के जवानों को मिले, जिन्होंने असंभव परिस्थितियों में भी हार नहीं मानी। Kargil Vijay Diwas

एक प्रेरणा, एक सबक

कारगिलयुद्ध न केवल भारत की सैन्य शक्ति का प्रतीक है, बल्कि यह उन परिवारों की कुर्बानी को भी दर्शाता है, जिन्होंने अपनेबेटों, भाइयों और पिताओं को खोया। उत्तराखंड के 75 वीर जवानों की शहादत इस बात का प्रमाण है कि यह छोटा सा राज्य देश की रक्षा में सबसे आगे रहा है। उनकीकहानियां हमें यह सिखाती हैं कि देशभक्ति और बलिदान की कोई सीमा नहीं होती। कारगिल विजय दिवस हमें याद दिलाता है कि हमारीआजादी और सुरक्षा उन वीरों की देन है, जिन्होंने अपनीजान की परवाह किए बिना देश की रक्षा की। यह हमारा कर्तव्य है कि हम उनके बलिदान को कभी न भूलें और उनकी याद में एक बेहतर, एकजुट भारत का निर्माण करें। Kargil Vijay Diwas


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