जानिए रक्षाबंधन के अवसर पर श्रवण कुमार की पूजा क्यों की जाती हैं क्या है महत्व
घर के बाहर बनाए गए श्रवण कुमार को फूल, हल्दी, चावल, जल और मिठाई अर्पित कर पूजा की जाती है। इसके बाद ही राखी बांधने का कार्यक्रम शुरू होता है।
सुसनेर। जानिए राखी पर हिंदू संस्कृति में रक्षाबंधन के पर्व पर सिर्फ भाई-बहन के बीच राखी बांधने की परंपरा ही नहीं है, बल्कि कई क्षेत्रों में इससे जुड़ी पुरानी लोकमान्यताएं और धार्मिक रीति-रिवाज़ भी आज तक निभाए जाते हैं।
श्रवण कुमार बनाने की परंपरा
कुछ इलाकों में रक्षाबंधन के दिन घर के बाहर मिट्टी, गोबर या रंगीन पाउडर से श्रवण कुमार का प्रतीकात्मक चित्र/प्रतिमा बनाई जाती है।
श्रवण कुमार का महत्व – रामायण काल में श्रवण कुमार अपनी वृद्ध, नेत्रहीन माता-पिता को कांवर में बैठाकर तीर्थ यात्रा करवाते थे। यह माता-पिता के प्रति सेवा, त्याग और भक्ति का प्रतीक है।
रक्षाबंधन पर इसे बनाने का कारण यह माना जाता है कि यह भाई-बहन के प्रेम के साथ-साथ माता-पिता के प्रति कर्तव्य और सेवा भाव की याद दिलाता है।
श्रवण पूजन – घर के बाहर बनाए गए श्रवण कुमार को फूल, हल्दी, चावल, जल और मिठाई अर्पित कर पूजा की जाती है। इसके बाद ही राखी बांधने का कार्यक्रम शुरू होता है।
यह परंपरा विशेष रूप से मध्यप्रदेश, राजस्थान और उत्तर भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी जीवित है। इसमें धार्मिक आस्था के साथ-साथ पारिवारिक मूल्यों को भी जोड़कर देखा जाता है।
आधुनिक दौर में जहां रक्षाबंधन का पर्व मुख्य रूप से भाई-बहन के रिश्ते के रूप में मनाया जाता है, वहीं हिंदू संस्कृति में सदियों से जुड़ी एक अनोखी परंपरा आज भी कई घरों में जीवित है—श्रवण कुमार पूजन। रक्षाबंधन के दिन बहनों द्वारा राखी बांधने से पहले घर के बाहर मिट्टी, गोबर या रंग-बिरंगे पाउडर से श्रवण कुमार का चित्र या प्रतिमा बनाकर उसका पूजन किया जाता है।
माता-पिता की सेवा भाव का प्रतीक
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, रामायण काल में श्रवण कुमार ने अपने वृद्ध और नेत्रहीन माता-पिता को कांवर में बैठाकर तीर्थ यात्रा करवाई थी। यह घटना माता-पिता के प्रति आदर्श सेवा, त्याग और भक्ति का प्रतीक मानी जाती है। रक्षाबंधन पर श्रवण पूजन करने के पीछे भाव यह है कि भाई-बहन के प्रेम के साथ-साथ परिवार के बुजुर्गों के प्रति सम्मान और सेवा भाव भी बना रहे।
पूजन की विधि
श्रवण का चित्र या प्रतिमा बनाकर उसे हल्दी, चावल, फूल, दीपक और मिठाई अर्पित की जाती है। पूजा के बाद जल अर्पण कर परंपरागत मंत्रोच्चार के साथ व्रत-नियम की प्रतिज्ञा ली जाती है। तभी राखी बांधने और उपहार देने की शुरुआत होती है।
ग्रामीण अंचलों, विशेषकर मध्यप्रदेश, राजस्थान और उत्तर भारत के कई गांवों में यह परंपरा आज भी घर-घर में देखी जा सकती है। बुजुर्ग बताते हैं कि इस रिवाज से नई पीढ़ी को त्याग, सेवा और संस्कारों का महत्व समझ में आता है।
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