आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी बिरसा मुंडा: मध्यप्रदेश में क्यों खास है उनका जन्मदिवस?

आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी बिरसा मुंडा: मध्यप्रदेश में क्यों खास है उनका जन्मदिवस?

Birsa Munda Jayanti | भारत की स्वतंत्रता और सामाजिक न्याय के इतिहास में बिरसा मुंडा का नाम विशेष सम्मान के साथ लिया जाता है। 15 नवंबर को उनके जन्मदिवस को देशभर में आदिवासी गौरव दिवस के रूप में मनाया जाता है, विशेषकर मध्यप्रदेश में, जहां आदिवासी समुदाय उनके संघर्ष और बलिदान की गहरी प्रेरणा लेते हैं। बिरसा मुंडा ने ब्रिटिश शासन के अत्याचारों के खिलाफ अपनी जमीन, संस्कृति और जनजातीय अधिकारों की रक्षा के लिए साहसिक विद्रोह किया था। उनके आदर्शों को सम्मान देने के लिए मध्यप्रदेश सरकार ने इस दिन को राजकीय पर्व के रूप में मान्यता दी है। Birsa Munda Jayanti

बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1875 को झारखंड के खूंटी जिले के उलीहातू गांव में एक गरीब आदिवासी परिवार में हुआ था। वे मुंडा जनजाति से संबंधित थे, जो झारखंड, बिहार, ओडिशा, पश्चिम बंगाल और मध्यप्रदेश जैसे राज्यों में फैली हुई है। उनके माता-पिता गरीब और मेहनतकश किसान थे, जिनके पास बहुत कम संसाधन थे, लेकिन बिरसा मुंडा ने अपनी मेहनत और समर्पण से जनजातीय समुदायों में एक प्रेरणा की मिसाल कायम की।Birsa Munda Jayanti

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बिरसा मुंडा का देश के लिए योगदान

बिरसा मुंडा का योगदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और सामाजिक न्याय में बेहद महत्वपूर्ण था। ब्रिटिश शासनकाल में आदिवासी समाज पर अत्याचार और शोषण की घटनाएं बढ़ गई थीं। स्थानीय जमींदारों और ब्रिटिश अधिकारियों ने जनजातीय समुदायों की जमीनों पर कब्जा कर लिया था और उन्हें जबरन बंधुआ मजदूरी करने के लिए मजबूर किया था। ऐसे समय में, बिरसा मुंडा ने न केवल अपने समुदाय को संगठित किया, बल्कि उन्हें इन शोषणकारी ताकतों के खिलाफ संघर्ष करने के लिए प्रेरित भी किया। Birsa Munda Jayanti

बिरसा मुंडा की मुहिम उलगुलान

उनकी सबसे प्रसिद्ध मुहिम “उलगुलान” (अर्थात, विद्रोह) के नाम से जानी जाती है। इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य ब्रिटिश शासकों द्वारा किए गए अत्याचारों का विरोध करना और अपने लोगों की जमीन, संस्कृति और अधिकारों की रक्षा करना था। बिरसा ने अपने समुदाय को शिक्षा का महत्व समझाया और जनजातीय रीति-रिवाजों और परंपराओं को बचाने का आह्वान किया। Birsa Munda Jayanti

उनकी शिक्षाओं ने जनजातीय लोगों में आत्मसम्मान की भावना का विकास किया और उन्हें एक नई दिशा दी। उन्होंने आदिवासी समुदाय के लिए स्वतंत्रता और अधिकारों के लिए संघर्ष किया। उनका आंदोलन अंग्रेजों के लिए एक बड़ी चुनौती बन गया और उन्होंने जनजातीय समुदाय को संगठित करने के प्रयास को कुचलने की कोशिश की। अंततः बिरसा मुंडा को गिरफ्तार किया गया और 9 जून 1900 को, केवल 25 वर्ष की आयु में जेल में उनकी मृत्यु हो गई। Birsa Munda Jayanti

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मध्यप्रदेश में बिरसा मुंडा जयंती का महत्व

मध्यप्रदेश में बिरसा मुंडा जयंती को आदिवासी गौरव दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह दिन आदिवासी समुदाय की ताकत, उसकी संस्कृति और उसकी परंपराओं का सम्मान करने का प्रतीक है। राज्य सरकार ने इसे एक राजकीय पर्व के रूप में मान्यता दी है ताकि बिरसा मुंडा के बलिदान और उनके योगदान को आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाया जा सके। Birsa Munda Jayanti

मध्यप्रदेश में इस दिन को खास तौर पर इसलिए भी महत्व दिया जाता है क्योंकि यहां की जनजातीय आबादी बड़ी संख्या में है। बिरसा मुंडा का जीवन और उनकी शिक्षाएं आदिवासी समुदायों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। इस अवसर पर विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों, रैलियों और प्रदर्शनों का आयोजन किया जाता है जिसमें बिरसा मुंडा की विरासत का प्रचार किया जाता है। Birsa Munda Jayanti

सरकार इस दिन को विशेष सम्मान के रूप में मनाते हुए आदिवासी समुदाय के लिए विभिन्न योजनाओं की घोषणा करती है और उनके अधिकारों के संरक्षण का आश्वासन देती है। साथ ही, यह दिन मध्यप्रदेश के अन्य लोगों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बनता है, जो समता, सम्मान और सामाजिक न्याय के महत्व को समझते हैं। Birsa Munda Jayanti

बिरसा मुंडा का योगदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अनमोल है। उनके साहस, नेतृत्व और त्याग को भुलाया नहीं जा सकता। मध्यप्रदेश और अन्य राज्यों में बिरसा मुंडा जयंती के माध्यम से उनके योगदान को सम्मानित किया जाता है और उनकी शिक्षाओं को बढ़ावा दिया जाता है। Birsa Munda Jayanti


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