चने की फसल में लगने वाले रोग और उनके नियंत्रण के उपाय

चने की फसल में लगने वाले रोग और उनके नियंत्रण के उपाय

Chana ki fasal mein rog niyantran | चना भारत में मुख्य रूप से उगाई जाने वाली एक महत्वपूर्ण दलहनी फसल है। यह प्रोटीन और पोषण का प्रमुख स्रोत होने के साथ-साथ मिट्टी की उर्वरता बनाए रखने में भी सहायक है। हालांकि, चने की फसल विभिन्न रोगों से प्रभावित होती है, जो फसल उत्पादन को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकते हैं। इस लेख में हम चने की फसल में लगने वाले प्रमुख रोग, उनके लक्षण, कारण और नियंत्रण के उपायों पर चर्चा करेंगे। Chana ki fasal mein rog niyantran

1. उखटा (Wilt Disease)

लक्षण:
  • पौधे की पत्तियां पीली और मुरझाई हुई दिखती हैं।
  • जड़ें काली और सड़न से प्रभावित हो जाती हैं।
  • पौधा धीरे-धीरे सूख जाता है और पूरी फसल खराब हो सकती है।
कारण:
  • यह रोग फ़्यूसैरियम ऑक्सीस्पोरम फंगस के कारण होता है।
  • संक्रमित मिट्टी और बीजों से रोग फैलता है।
नियंत्रण:
  • रोगरोधी चने की किस्मों जैसे GNG-1958, Pusa-1108 का उपयोग करें।
  • खेत में जल निकासी की उचित व्यवस्था रखें।
  • बीजों को बोने से पहले कार्बेन्डाज़िम या थायरम (2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज) से उपचारित करें।
  • तीन से चार साल तक फसल चक्र अपनाएं।
2. जड़ सड़न (Root Rot)
लक्षण:
  • जड़ें गहरे भूरे या काली हो जाती हैं।
  • पौधा ऊपर से मुरझाने लगता है और बाद में सूख जाता है।
कारण:

यह राइजोक्टोनिया बैटाटिकॉला फंगस से होता है।

अधिक नमी और जलभराव से रोग बढ़ता है।

नियंत्रण:
  • जल निकासी का उचित प्रबंधन करें।
  • बीज उपचार के लिए कार्बेन्डाज़िम का उपयोग करें।
  • संक्रमित पौधों को तुरंत हटाकर नष्ट करें।

 

3. अल्टरनेरिया ब्लाइट (Alternaria Blight)

लक्षण:
  • पत्तियों और तनों पर भूरे या काले धब्बे पड़ जाते हैं।
  • धब्बों के किनारे पीले होते हैं।
  • रोग के बढ़ने पर पत्तियां झड़ने लगती हैं।
कारण:
  • यह अल्टरनेरिया टेनुइस नामक फंगस के कारण होता है।
  • ठंडी और नमी वाली जलवायु में यह तेजी से फैलता है।
नियंत्रण:
  • रोग प्रतिरोधी किस्में उगाएं।
  • फसल पर मैन्कोज़ेब (2 ग्राम प्रति लीटर पानी) का छिड़काव करें।
  • खेत में साफ-सफाई रखें और संक्रमित पौधों को नष्ट करें।

 

4. एस्कोकाइटा ब्लाइट (Ascochyta Blight)

लक्षण:

  • पत्तियों, तनों और फली पर गहरे भूरे धब्बे बनते हैं।
  • धब्बों के केंद्र में सफेद भाग दिख सकता है।
  • रोग से फसल की उत्पादकता कम हो जाती है।
कारण:
  • यह एस्कोकाइटा रैबाई फंगस के कारण होता है।
  • ठंडी और नम परिस्थितियों में यह अधिक सक्रिय होता है।
नियंत्रण:
  • रोग प्रतिरोधी किस्में लगाएं।
  • प्रभावित भाग को नष्ट करें।
  • फसल पर क्लोरोथालोनिल या कैप्टान का छिड़काव करें।

 

5. चूर्णी फफूंदी (Powdery Mildew)

लक्षण:
  • पत्तियों पर सफेद चूर्ण जैसा पदार्थ दिखाई देता है।
  • पत्तियां पीली होकर गिरने लगती हैं।
  • रोगग्रस्त पौधे कमजोर हो जाते हैं और उपज कम हो जाती है।
कारण:
  • यह एरीसाइफ पॉलीगनी नामक फंगस से होता है।
  • गर्म और सूखी जलवायु में यह तेजी से फैलता है।
नियंत्रण:
  • सल्फर पाउडर का छिड़काव करें।
  • फसल पर डाइनोकैप या वेटेबल सल्फर (2 ग्राम प्रति लीटर पानी) का छिड़काव करें।
  • फसल चक्र अपनाकर रोग के चक्र को तोड़ें।

 

6. कालापन (Black Root Rot)

लक्षण:
  • जड़ें काली पड़ जाती हैं और पौधे मुरझा जाते हैं।
  • यह रोग उखटा रोग से मिलता-जुलता है।
कारण:
  • यह थीलाविया बेसिकोल फंगस से होता है।
  • जलभराव और अत्यधिक नमी इस रोग को बढ़ावा देते हैं।
नियंत्रण:
  • जल निकासी का ध्यान रखें।
  • रोगरोधी किस्में लगाएं।
  • बीजों को फफूंदनाशकों से उपचारित करें।

 

7. पत्ती धब्बा रोग (Leaf Spot)
लक्षण:
  • पत्तियों पर गहरे भूरे या काले धब्बे पड़ते हैं। रोगग्रस्त पत्तियां समय से पहले गिरने लगती हैं।
कारण:
  • यह फंगस और बैक्टीरिया दोनों के कारण हो सकता है। नमी और खराब वायुप्रवाह इस रोग को बढ़ावा देते हैं।
  • नियंत्रण: पत्तियों पर कॉपर ऑक्सीक्लोराइड का छिड़काव करें। फसल चक्र अपनाएं और खेत में साफ-सफाई बनाए रखें।

8. पतन रोग (Collar Rot)

लक्षण:

  • तने का निचला भाग सड़ने लगता है। पौधा ऊपर से सूखने लगता है और मर जाता है।
कारण:
  • यह स्क्लेरोटिनिया स्क्लेरोशियम नामक फंगस से होता है। अधिक नमी और खराब जल निकासी इस रोग के मुख्य कारण हैं।
नियंत्रण:
  • फसल पर थायरम या कार्बेन्डाज़िम का उपयोग करें। खेत में पानी का जमाव न होने दें। फसल के अवशेषों को जलाकर मिट्टी को साफ रखें। Chana ki fasal mein rog niyantran

रोग नियंत्रण के लिए सामान्य उपाय:

  • 1. फसल चक्र: हर साल एक ही फसल न लगाएं। चने के स्थान पर गेहूं, मक्का या अन्य फसलें लगाएं।
  • 2. संतुलित उर्वरक उपयोग: जैविक खाद और नाइट्रोजन, फॉस्फोरस एवं पोटाश का संतुलित उपयोग करें।
  • 3. साफ-सफाई: खेत में खरपतवार और पुराने पौधों के अवशेष न छोड़ें।
  • 4. बीज का उपचार: बीज बोने से पहले उसे फफूंदनाशकों से उपचारित करना अनिवार्य है।
  • 5. सिंचाई प्रबंधन: आवश्यकता से अधिक पानी न दें और जल निकासी की सही व्यवस्था रखें।

चना की फसल को विभिन्न रोगों से बचाने के लिए उचित प्रबंधन और रोग-निरोधक उपाय अपनाना आवश्यक है। समय पर फसल की निगरानी और सही कदम उठाकर किसान अपनी फसल को रोगों से बचा सकते हैं और उत्पादन में सुधार कर सकते हैं। रोग-प्रतिरोधी किस्मों का चयन, जैविक खाद का उपयोग, और फसल चक्र जैसी तकनीकों से चने की खेती को सुरक्षित और लाभदायक बनाया जा सकता है।

आपके लिए उपयोगी सुझाव: यदि आप चने की खेती कर रहे हैं, तो स्थानीय कृषि वैज्ञानिकों से परामर्श अवश्य लें और समय-समय पर आधुनिक तकनीकों को अपनाएं। Chana ki fasal mein rog niyantran


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