कबूतर को दाना डालने पर हो सकती है जेल, लोगों के लिए कैसे बन रहे खतरा, कोर्ट ने दिया सख्त फैसला
Court bans feeding pigeons here why | मुंबई में कबूतरों को दाना डालना अब न केवल गैरकानूनी है, बल्कि इसके लिए आपको जेल भी हो सकती है। बॉम्बे हाईकोर्ट ने 30 जुलाई 2025 को एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कबूतरों को दाना डालने को सार्वजनिक उपद्रव और स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा करार दिया है। कोर्ट ने बृहन्मुंबई महानगरपालिका (BMC) को निर्देश दिया है कि ऐसे लोगों के खिलाफ प्राथमिकी (FIR) दर्ज की जाए जो कबूतरखानों या सार्वजनिक स्थानों पर कबूतरों को दाना डालते हैं। यह फैसला कबूतरों की बढ़ती आबादी और इससे होने वाले स्वास्थ्य जोखिमों को देखते हुए लिया गया है। आइए, इस मुद्दे को विस्तार से समझते हैं।
बॉम्बे हाईकोर्ट का सख्त रुख
बॉम्बे हाईकोर्ट की बेंच, जिसमें जस्टिस जी.एस. कुलकर्णी और जस्टिस आरिफ डॉक्टर शामिल थे, ने पशु प्रेमियों द्वारा दायर एक याचिका की सुनवाई के दौरान यह सख्त फैसला सुनाया। याचिका में पशु अधिकार कार्यकर्ता पल्लवी पाटिल, स्नेहा विसारिया और सविता महाजन ने BMC द्वारा कबूतरखानों को तोड़े जाने के खिलाफ आवाज उठाई थी। उनका तर्क था कि कबूतरखानों को ध्वस्त करना पशु क्रूरता निवारण अधिनियम (Prevention of Cruelty to Animals Act) का उल्लंघन है। हालांकि, कोर्ट ने इस याचिका को खारिज करते हुए कहा कि मानव स्वास्थ्य की सुरक्षा सर्वोपरि है और कबूतरों की अनियंत्रित भीड़ से होने वाले नुकसान को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
कोर्ट ने कहा, “कबूतरों को दाना डालने से न केवल सार्वजनिक उपद्रव पैदा होता है, बल्कि यह सभी आयु वर्ग के लोगों के लिए गंभीर स्वास्थ्य जोखिम भी पैदा करता है। यह कानून के प्रति घोर अवहेलना है कि लोग BMC के निर्देशों और कोर्ट के पिछले आदेशों को नजरअंदाज कर कबूतरों को दाना डाल रहे हैं।” कोर्ट ने BMC को आदेश दिया कि दादर (पश्चिम) और अन्य कबूतरखानों में दाना डालने वालों के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता (Bhartiya Nyaya Sanhita) के तहत कार्रवाई की जाए, जिसमें बीमारियां फैलाने और मानव जीवन को खतरे में डालने जैसे अपराध शामिल हैं।
कबूतरों से स्वास्थ्य को खतरा
कबूतरों को दाना डालने से उनकी आबादी में अनियंत्रित वृद्धि होती है, जिसके परिणामस्वरूप उनकी बीट (मल) और पंखों से कई गंभीर बीमारियां फैलने का खतरा बढ़ जाता है। चिकित्सा विशेषज्ञों के अनुसार, कबूतरों की बीट और पंखों में मौजूद बैक्टीरिया, फंगी, वायरस और परजीवी सांस के जरिए मानव शरीर में प्रवेश कर सकते हैं। इससे होने वाली प्रमुख बीमारियां इस प्रकार हैं:
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हिस्टोप्लास्मोसिस: कबूतरों की सूखी बीट में मौजूद हिस्टोप्लाज्मा कैप्सूलटम फंगस सांस के जरिए फेफड़ों में पहुंच सकता है। यह हल्के फ्लू जैसे लक्षणों से लेकर गंभीर श्वसन समस्याओं का कारण बन सकता है।
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क्रिप्टोकोकोसिस: यह एक फंगल इंफेक्शन है जो कमजोर इम्यून सिस्टम वाले लोगों, जैसे डायबिटीज रोगियों या बुजुर्गों में गंभीर हो सकता है। यह कबूतरों की बीट से फैलता है।
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सिटाकोसिस (पैरट फीवर): यह जीवाणु संक्रमण कबूतरों की बीट से दूषित धूल के सांस में जाने से फैलता है। इससे अस्थमा और हाइपरसेंसिटिविटी न्यूमोनाइटिस जैसी समस्याएं हो सकती हैं।
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साल्मोनेलोसिस: कबूतरों की बीट में मौजूद साल्मोनेला बैक्टीरिया पेट संबंधी गंभीर बीमारियों का कारण बन सकता है।
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हाइपरसेंसिटिविटी न्यूमोनाइटिस (HP): यह एक गंभीर फेफड़ों की बीमारी है जो कबूतरों की बीट और पंखों से निकलने वाले फंगल बीजाणुओं के लंबे समय तक संपर्क में रहने से होती है। मुंबई में इस बीमारी के मामले बढ़ रहे हैं, और इसका सीधा संबंध कबूतरों की बीट से है। हिंदुजा हॉस्पिटल के अध्ययनों ने इसकी पुष्टि की है।
डॉ. लैंसलॉट पिंटो, कंसल्टेंट पल्मोनोलॉजिस्ट, हिंदुजा हॉस्पिटल, ने कहा, “मुंबई में हाइपरसेंसिटिविटी न्यूमोनाइटिस के मरीजों की संख्या में पांच गुना वृद्धि देखी गई है। कई मामलों में मरीजों ने कबूतरों के संपर्क में होने की बात स्वीकारी है।” यह बीमारी फेफड़ों में स्थायी क्षति का कारण बन सकती है, जिसके लिए मरीज को 24/7 ऑक्सीजन सपोर्ट या लंग ट्रांसप्लांट की जरूरत पड़ सकती है।
पर्यावरण और संपत्ति को नुकसान
कबूतरों की अनियंत्रित आबादी न केवल स्वास्थ्य के लिए खतरा है, बल्कि यह पर्यावरण और संपत्ति को भी नुकसान पहुंचा रही है। उनकी बीट से ऐतिहासिक इमारतें, जैसे छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस, और आवासीय भवनों की दीवारें खराब हो रही हैं। यह बीट बालकनियों, एयर कंडीशनिंग यूनिट्स, और खिड़कियों पर जमा हो जाती है, जिससे सफाई का खर्च बढ़ता है।
दादर के कबूतरखाने जैसे क्षेत्रों में कबूतरों की भीड़ के कारण ट्रैफिक जाम और अस्वच्छ परिस्थितियां पैदा हो रही हैं। कोर्ट ने समाचार पत्रों में प्रकाशित तस्वीरों का हवाला देते हुए कहा कि लोग नाक पर रुमाल रखकर इन क्षेत्रों से गुजर रहे हैं, जो अस्वच्छता और बदबू का स्पष्ट संकेत है।
कोर्ट के आदेश और BMC की जिम्मेदारी
बॉम्बे हाईकोर्ट ने BMC को कई सख्त निर्देश दिए हैं ताकि कबूतरों को दाना डालने की प्रथा को रोका जा सके:
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FIR दर्ज करना: कोर्ट ने BMC को उन लोगों के खिलाफ FIR दर्ज करने की अनुमति दी है जो कबूतरखानों या सार्वजनिक स्थानों पर दाना डालते हैं। यह कार्रवाई भारतीय न्याय संहिता के तहत होगी, जिसमें बीमारियां फैलाने और सार्वजनिक उपद्रव जैसे अपराध शामिल हैं।
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CCTV और बीट मार्शल: BMC को निर्देश दिया गया है कि वह कबूतरखानों में विशेष CCTV कैमरे लगाए और बीट मार्शल तैनात करे ताकि दाना डालने वालों की पहचान की जा सके।
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पुलिस सहायता: कोर्ट ने पुलिस को निर्देश दिया है कि वह BMC अधिकारियों की मदद करे और कानून-व्यवस्था बनाए रखे।
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जागरूकता अभियान: BMC को एक महीने का जागरूकता अभियान चलाने का आदेश दिया गया है ताकि लोगों को कबूतरों को दाना डालने के स्वास्थ्य जोखिमों के बारे में बताया जा सके।
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि उसने 3 जुलाई 2025 को पुराने कबूतरखानों को तोड़ने पर रोक लगाई थी, लेकिन दाना डालने की अनुमति नहीं दी थी। इसके बावजूद, कई लोग इन स्थानों पर दाना डालना जारी रखे हुए थे, जिसे कोर्ट ने कानून की अवहेलना माना।
मामला क्या है?
यह विवाद तब शुरू हुआ जब पशु प्रेमियों ने BMC द्वारा कबूतरखानों को तोड़े जाने के खिलाफ याचिका दायर की। उनका दावा था कि यह कदम पशु क्रूरता निवारण अधिनियम का उल्लंघन करता है। हालांकि, कोर्ट ने इस तर्क को खारिज करते हुए कहा कि मानव स्वास्थ्य और जीवन की रक्षा संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकारों का हिस्सा है, और कबूतरों की अनियंत्रित भीड़ से इसे खतरा है।
कोर्ट ने एक मामले का भी जिक्र किया जिसमें एक वरिष्ठ वकील की मृत्यु कबूतरों की बीट के लंबे समय तक संपर्क के कारण होने वाली इंटरस्टीशियल लंग डिजीज से हुई थी। यह मामला इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है कि कबूतरों की बीट से गंभीर स्वास्थ्य जोखिम हैं।
वैश्विक परिप्रेक्ष्य और समाधान
दुनियाभर के शहरों, जैसे लंदन और बार्सिलोना, ने कबूतरों की आबादी को नियंत्रित करने के लिए कई उपाय अपनाए हैं। इनमें कबूतरों के लिए गर्भनिरोधक दाने (contraceptive grains) का उपयोग शामिल है, जो अंडे बनने से रोकते हैं। मुंबई में भी इस तरह के समाधानों पर विचार किया जा सकता है, लेकिन इसके लिए जनता का सहयोग जरूरी है।
विशेषज्ञों का सुझाव है कि कबूतरों को दाना डालने पर सख्त रोक, नियंत्रित फीडिंग जोन, और कचरा प्रबंधन में सुधार से उनकी आबादी को नियंत्रित किया जा सकता है। इसके अलावा, इमारतों में ढलान वाली सतहें और कबूतरों को रोकने वाले जाल लगाने से उनके घोंसले बनाने की समस्या को कम किया जा सकता है।
कबूतरों को दाना डालना भले ही परंपरा या धार्मिकभावना का हिस्सा हो, लेकिन इससे होने वाले स्वास्थ्य और पर्यावरणीयनुकसान को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता। बॉम्बे हाईकोर्ट का यह फैसला मानव स्वास्थ्य को प्राथमिकता देने और सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने की दिशा में एकमहत्वपूर्ण कदम है। अगर आप कबूतरों को दाना डालते हैं, तो अब समय है सावधान होने का। BMC के निर्देशों का पालन करें और अपने आसपास के लोगों के स्वास्थ्य की रक्षा में योगदान दें। Court bans feeding pigeons here why
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मैं इंदर सिंह चौधरी वर्ष 2005 से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय हूं। मैंने मास कम्यूनिकेशन में स्नातकोत्तर (M.A.) किया है। वर्ष 2007 से 2012 तक मैं दैनिक भास्कर, उज्जैन में कार्यरत रहा, जहाँ पत्रकारिता के विभिन्न पहलुओं का व्यावहारिक अनुभव प्राप्त किया।
वर्ष 2013 से 2023 तक मैंने अपना मीडिया हाउस ‘Hi Media’ संचालित किया, जो उज्जैन में एक विश्वसनीय नाम बना। डिजिटल पत्रकारिता के युग में, मैंने सितंबर 2023 में पुनः दैनिक भास्कर से जुड़ते हुए साथ ही https://mpnewsbrief.com/ नाम से एक न्यूज़ पोर्टल शुरू किया है। इस पोर्टल के माध्यम से मैं करेंट अफेयर्स, स्वास्थ्य, ज्योतिष, कृषि और धर्म जैसे विषयों पर सामग्री प्रकाशित करता हूं। फ़िलहाल मैं अकेले ही इस पोर्टल का संचालन कर रहा हूं, इसलिए सामग्री सीमित हो सकती है, लेकिन गुणवत्ता से कोई समझौता नहीं होता।