दीपावली पर यक्ष पूजन: एक प्राचीन परंपरा का महत्व
दीपावली भारत के प्रमुख त्योहारों में से एक है, जो न केवल हिंदू धर्म के अनुयायियों के लिए बल्कि भारत की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर को मानने वाले सभी लोगों के लिए खास महत्व रखता है। इस दिन देवी लक्ष्मी, भगवान गणेश और कई अन्य देवताओं की पूजा की जाती है। लेकिन इसके अलावा, दीपावली पर यक्ष पूजन की भी एक विशेष परंपरा है, जो धन, समृद्धि और सुरक्षा के लिए यक्ष देवताओं का आह्वान करती है।
यक्ष: दिव्य प्रकृति के रक्षक
हिंदू धर्म में यक्षों का महत्व बहुत पुराना है। यह देवता दिव्य शक्तियों के रूप में माने जाते हैं, जो प्राकृतिक संसाधनों और धन के संरक्षक होते हैं। माना जाता है कि ये यक्ष कुबेर देवता के सहायक होते हैं, जो धन और संपत्ति के देवता माने जाते हैं। यक्ष देवता विशेष रूप से हिंदू और जैन धर्म में पूजनीय हैं। इनकी पूजा करने से जीवन में सुख-समृद्धि और परिवार में सुरक्षा की कामना की जाती है। दीपावली पर यक्ष पूजन का विशेष महत्व है क्योंकि इसे जीवन में शांति, उन्नति और स्थिरता का प्रतीक माना जाता है।
दीपावली पर यक्ष पूजन का महत्व
दीपावली को ‘प्रकाश का त्योहार’ माना जाता है, जो अंधकार पर प्रकाश की विजय और बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। इस दिन देवी लक्ष्मी की विशेष पूजा की जाती है ताकि घर-परिवार में समृद्धि बनी रहे। इसी क्रम में यक्ष पूजन भी होता है। यक्ष देवता प्रकृति, संपत्ति और रक्षण का प्रतीक माने जाते हैं। मान्यता है कि दीपावली के दिन यक्ष देवताओं का आह्वान करने से वे प्रसन्न होकर परिवार में सुख, शांति, समृद्धि और धन का वरदान देते हैं।
यक्षों की पूजा विधि
यक्ष पूजन के लिए सबसे पहले शुभ मुहूर्त का चयन किया जाता है। पूजा स्थल को शुद्ध किया जाता है और वहां दीप जलाए जाते हैं। रंगोली बनाई जाती है और विशेष रूप से कुबेर यक्ष की पूजा की जाती है। इसके लिए चावल, फूल, हल्दी, कुंकुम, फल, मिठाई और दीपक का उपयोग किया जाता है। पूजा के दौरान यक्षों का आह्वान किया जाता है और उन्हें भोग अर्पित किया जाता है। कुबेर यक्ष की प्रतिमा के समक्ष एक विशेष मंत्र का उच्चारण होता है:
“ॐ यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धनधान्याधिपतये।
धनधान्यसमृद्धिं मे देहि दापय स्वाहा॥”
माना जाता है कि इस मंत्र के माध्यम से यक्ष देवता की कृपा प्राप्त होती है और घर में सुख-शांति और समृद्धि का निवास होता है।
यक्ष पूजन की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
यक्ष पूजन की परंपरा का उल्लेख महाभारत और पुराणों जैसे प्राचीन ग्रंथों में मिलता है। यक्ष देवता न केवल कुबेर के सहायक माने जाते हैं बल्कि विभिन्न क्षेत्रों में प्रकृति, धन और धरोहर के रक्षक के रूप में इनका पूजन किया जाता है। महाभारत में पांडवों के वनवास के दौरान यक्षों के रक्षक होने का उल्लेख मिलता है। इसके अलावा, यक्षों की पूजा से संबंधित कई कथाएँ भी हैं, जो दर्शाती हैं कि इनकी पूजा प्राचीन काल से चली आ रही है।
कुबेर यक्ष की पूजा का विशेष महत्व
यक्षों में कुबेर यक्ष का स्थान विशेष है, जिन्हें धन और वैभव का प्रतीक माना जाता है। कुबेर यक्ष का विशेष पूजन दीपावली पर लक्ष्मी पूजन के साथ ही किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि कुबेर यक्ष की पूजा से घर में आर्थिक स्थिरता आती है और परिवार में धन-संपत्ति का वास होता है। व्यापारी वर्ग भी इस दिन अपनी दुकानों और प्रतिष्ठानों पर कुबेर यक्ष की पूजा कर नए व्यापारिक वर्ष की शुरुआत करते हैं। इसके माध्यम से वे व्यापार में उन्नति और समृद्धि की कामना करते हैं।
यक्ष पूजन के सांस्कृतिक पहलू
यक्ष पूजन का महत्व धार्मिक दृष्टिकोण से ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी है। यह परंपरा हमें हमारे प्राचीन धर्म, संस्कृति और आस्थाओं से जोड़ती है। भारत के विभिन्न हिस्सों में यक्ष पूजन की विविध परंपराएं देखने को मिलती हैं, जैसे कि महाराष्ट्र में “भैरव पूजा” और उत्तर भारत में “कुबेर पूजन”। यह समाज में शांति, समृद्धि और भौतिक सुरक्षा का संदेश देता है।
आधुनिक समाज में यक्ष पूजन की प्रासंगिकता
वर्तमान समय में, जब लोग अपनी परंपराओं से दूर होते जा रहे हैं, यक्ष पूजन जैसे धार्मिक अनुष्ठान हमें अपनी सांस्कृतिक जड़ों की याद दिलाते हैं। आधुनिक समाज में भी यक्ष पूजन का महत्व कम नहीं हुआ है, बल्कि यह नई पीढ़ी में धार्मिक आस्था और परंपराओं के प्रति जागरूकता को बढ़ावा देता है। सोशल मीडिया और अन्य ऑनलाइन माध्यमों के माध्यम से यक्ष पूजन और अन्य परंपराओं के बारे में जानकारी तेजी से फैल रही है। इससे लोगों में इस प्राचीन परंपरा के प्रति रुचि बढ़ रही है।
दीपावली का पर्व न केवल प्रकाश और खुशियों का त्योहार है, बल्कि यह धार्मिक और सांस्कृतिक आस्थाओं का प्रतीक भी है। यक्ष पूजन की परंपरा हमें हमारे पूर्वजों द्वारा स्थापित आस्थाओं और धार्मिक रीतियों से जोड़ती है। यह पूजा न केवल धन-समृद्धि की कामना करती है बल्कि हमारे घरों और परिवारों में सुख-शांति और स्थिरता का वरदान भी देती है। यक्ष पूजन का महत्व हमें यह सिखाता है कि पुरानी परंपराओं को अपनाकर हम अपने जीवन में सकारात्मकता और संतुलन ला सकते हैं।
इस दीपावली, यदि हम यक्ष पूजन को अपनी पूजा विधि में शामिल करें, तो यह न केवल हमारे पूर्वजों की धरोहर का सम्मान होगा बल्कि हमारे जीवन में खुशहाली और समृद्धि भी लेकर आएगा।
[maxbutton id=”3″]
[maxbutton id=”4″]
यह खबर भी पढ़ें –
धन और समृद्धि के लिए लक्ष्मी और कुबेर की पूजा: कौनसी पूजा है अधिक प्रभावी?
दीपावली पर्व: रोशनी, परंपराओं और नई ऊर्जा का पांच दिवसीय महोत्सव