धनखड़ का इस्तीफा: कांग्रेस की चाल या बीजेपी की रणनीति? जानिये उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफे की असली कहानी

धनखड़ का इस्तीफा: कांग्रेस की चाल या बीजेपी की रणनीति? जानिये उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफे की असली कहानी

Dhankhar Resignation Real Story | 21 जुलाई 2025 को उपराष्ट्रपति और राज्यसभा सभापति जगदीप धनखड़ के अचानक इस्तीफे ने भारतीय राजनीति में हलचल मचा दी है। आधिकारिक तौर पर धनखड़ ने स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए इस्तीफा दिया, लेकिन इस कदम ने सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और विपक्षी दलों, खासकर कांग्रेस, के बीच एक नया सियासी तूफान खड़ा कर दिया है। विपक्ष जहां इसे केंद्र सरकार पर हमले के अवसर के रूप में देख रहा है, वहीं बीजेपी इसे स्वास्थ्य से जुड़ा व्यक्तिगत फैसला बता रही है। लेकिन, संसद के मॉनसून सत्र के पहले दिन की घटनाओं और विपक्ष की रणनीति ने इस इस्तीफे को एक रहस्यमयी सियासी ड्रामे में बदल दिया है। आइए, इस पूरे प्रकरण की गहराई से पड़ताल करें और जानें कि धनखड़ के इस्तीफे के पीछे की असली कहानी क्या है। Dhankhar Resignation Real Story

धनखड़ का इस्तीफा: स्वास्थ्य या सियासत?

जगदीप धनखड़ ने 21 जुलाई 2025 को देर शाम राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को अपना इस्तीफा सौंपा, जिसमें उन्होंने लिखा, “स्वास्थ्य को प्राथमिकता देने और चिकित्सीय सलाह का पालन करने के लिए, मैं भारत के उपराष्ट्रपति के पद से तत्काल प्रभाव से इस्तीफा देता हूं।” यह इस्तीफा संविधान के अनुच्छेद 67(a) के तहत प्रभावी हुआ, और राष्ट्रपति ने इसे 22 जुलाई को स्वीकार कर लिया।

हालांकि, धनखड़ का स्वास्थ्य कारणों का हवाला देना विपक्ष को विश्वास में नहीं ले सका। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने कहा, “धनखड़ का इस्तीफा पूरी तरह अप्रत्याशित और रहस्यमय है। मैंने उनसे शाम 7:30 बजे फोन पर बात की थी, और वह सामान्य लग रहे थे।” रमेश ने यह भी दावा किया कि धनखड़ ने दिन में कई बैठकों में हिस्सा लिया और कोई स्वास्थ्य समस्या का संकेत नहीं दिया।

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, जिनके धनखड़ के साथ राज्यपाल के रूप में तनावपूर्ण रिश्ते रहे, ने भी कहा, “धनखड़ पूरी तरह स्वस्थ हैं। उनके इस्तीफे के पीछे कुछ और कारण हैं।” यह बयान इस ओर इशारा करता है कि धनखड़ का इस्तीफा शायद सियासी दबावों का परिणाम हो सकता है।

कांग्रेस की रणनीति: अवसर में संकट

कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल, जैसे राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी), समाजवादी पार्टी (एसपी), और आम आदमी पार्टी (आप), इस इस्तीफे को बीजेपी के खिलाफ एक बड़े सियासी हथियार के रूप में देख रहे हैं। विपक्ष का दावा है कि धनखड़ को बीजेपी ने इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया, क्योंकि उनकी निष्पक्षता और संवैधानिक भूमिका सरकार के लिए असहज हो रही थी।

महाभियोग प्रस्ताव और जस्टिस वर्मा विवाद

इस्तीफे के पीछे का एक प्रमुख कारण जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव को माना जा रहा है। 21 जुलाई को, 50 से अधिक विपक्षी सांसदों ने जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग नोटिस दिया, जिसे धनखड़ ने स्वीकार कर लिया और राज्यसभा के महासचिव को आगे की कार्रवाई के लिए निर्देश दिए। इस नोटिस का आधार जस्टिस वर्मा के आधिकारिक निवास पर भारी मात्रा में नकदी की बरामदगी थी।

सूत्रों के मुताबिक, बीजेपी इस मुद्दे को भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी लड़ाई के रूप में पेश करना चाहती थी और चाहती थी कि यह प्रस्ताव लोकसभा में पहले आए। लेकिन धनखड़ द्वारा राज्यसभा में इसे तुरंत स्वीकार करने से सरकार की रणनीति पर असर पड़ा। विपक्ष का दावा है कि धनखड़ की इस स्वतंत्रता ने बीजेपी को नाराज कर दिया।

कांग्रेस ने जस्टिस वर्मा के साथ-साथ जस्टिस यादव के खिलाफ भी महाभियोग प्रस्ताव लाने की योजना बनाई थी। धनखड़ ने इन प्रस्तावों पर विचार करने का आश्वासन दिया था, लेकिन कोई ठोस कदम नहीं उठाया। यह अनिर्णय भी बीजेपी के लिए असहज स्थिति पैदा कर सकता था।

टीएमसी की नाराजगी और विपक्षी एकता में दरार

तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने इस पूरे प्रकरण में कांग्रेस पर दोहरा खेल खेलने का आरोप लगाया है। टीएमसी का दावा है कि जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव में दो कांग्रेस सांसदों के दस्तखत दोहराए गए, जिसके कारण प्रस्ताव खारिज हो गया। टीएमसी इसे जानबूझकर की गई साजिश मानती है, ताकि धनखड़ को बचाया जा सके।

22 जुलाई को दिल्ली में विपक्षी गठबंधन INDIA की बैठक हुई, लेकिन टीएमसी ने इसमें हिस्सा नहीं लिया, भले ही उनके सांसद दिल्ली में मौजूद थे। यह धनखड़ के प्रति टीएमसी की पुरानी नाराजगी को दर्शाता है, जो उनके पश्चिम बंगाल के राज्यपाल कार्यकाल से चली आ रही है। Dhankhar Resignation Real Story

बीजेपी की प्रतिक्रिया: सफाई और बचाव

बीजेपी ने धनखड़ के इस्तीफे को पूरी तरह स्वास्थ्य से जुड़ा मामला बताया है और विपक्ष के आरोपों को “दोगलापन” करार दिया है। बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने कहा, “विपक्ष ने पिछले साल धनखड़ के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया था। अब वे उनके समर्थन में बोल रहे हैं। यह उनकी सियासी अवसरवादिता को दर्शाता है।”

21 जुलाई को राज्यसभा में एक घटना ने भी सुर्खियां बटोरीं, जब बीजेपी नेता और सदन के नेता जे.पी. नड्डा ने कहा, “केवल वही रिकॉर्ड में जाएगा जो मैं कहूंगा।” विपक्ष ने इसे धनखड़ का अपमान बताया, हालांकि नड्डा ने स्पष्ट किया कि उनका इशारा विपक्षी सांसदों की ओर था।

इसके अलावा, संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू और नड्डा की 4:30 बजे की बिजनेस एडवाइजरी कमेटी (बीएसी) की बैठक में अनुपस्थिति ने भी धनखड़ को नाराज किया। जयराम रमेश ने दावा किया कि दोनों मंत्रियों ने धनखड़ को उनकी अनुपस्थिति की पूर्व सूचना नहीं दी, जिसे धनखड़ ने अपमान के रूप में लिया।

बीजेपी ने इन आरोपों का खंडन करते हुए कहा कि दोनों मंत्रियों ने पहले ही धनखड़ को अपनी व्यस्तता की जानकारी दे दी थी। नड्डा ने कहा, “हम संसदीय कार्यों में व्यस्त थे और उपराष्ट्रपति कार्यालय को सूचित कर चुके थे।”

सियासी निहितार्थ

धनखड़ का इस्तीफा बीजेपी और विपक्ष दोनों के लिए महत्वपूर्ण सियासी निहितार्थ रखता है।

विपक्ष की रणनीति

कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल इस इस्तीफे को बीजेपी की “असहिष्णुता” को उजागर करने के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं। जयराम रमेश ने कहा, “धनखड़ ने हमेशा किसानों के कल्याण, सार्वजनिक जीवन में अहंकार के खिलाफ, और न्यायिक जवाबदेही की बात की। उनकी निष्पक्षता बीजेपी को पसंद नहीं आई।”

कांग्रेस पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक का उदाहरण देकर यह साबित करने की कोशिश कर रही है कि बीजेपी अपने भीतर असहमति को बर्दाश्त नहीं करती। विपक्ष का मानना है कि अगर धनखड़ अब सरकार के खिलाफ बोलते हैं, तो यह उनके लिए एक बड़ा हथियार हो सकता है।

बीजेपी की चुनौतियां

बीजेपी के लिए धनखड़ का इस्तीफा एक अप्रत्याशित झटका है, खासकर बिहार जैसे राज्यों में, जहां जाट समुदाय का प्रभाव है। बिहार बीजेपी के कुछ नेताओं ने नीतीश कुमार को अगले उपराष्ट्रपति के रूप में प्रस्तावित किया है, ताकि क्षेत्रीय और सामाजिक समीकरणों को संतुलित किया जा सके।

हालांकि, बीजेपी ने अभी तक धनखड़ के उत्तराधिकारी पर कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है। राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश नारायण सिंह, जो जनता दल (यूनाइटेड) के सांसद हैं, को संभावित उम्मीदवार माना जा रहा है।

अगला उपराष्ट्रपति: प्रक्रिया और संभावनाएं

संविधान के अनुच्छेद 66 के तहत, उपराष्ट्रपति का चुनाव लोकसभा और राज्यसभा के सदस्यों (निर्वाचित और नामित) से मिलकर बने इलेक्टोरल कॉलेज द्वारा किया जाता है। यह चुनाव आनुपातिक प्रत代表ीकरण प्रणाली के माध्यम से होता है।

धनखड़ के इस्तीफे के बाद, चुनाव आयोग को छह महीने के भीतर नए उपराष्ट्रपति का चुनाव कराना होगा। तब तक, राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश नारायण सिंह सदन की कार्यवाही संचालित करेंगे।

बीजेपी के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के पास इलेक्टोरल कॉलेज में बहुमत है, इसलिए अगला उपराष्ट्रपति संभवतः उनकी पसंद का होगा। बीजेपी एक गैर-विवादास्पद और मजबूत उम्मीदवार चुनने की कोशिश करेगी, ताकि इस प्रकरण से उत्पन्न विवाद को कम किया जा सके। Dhankhar Resignation Real Story

जगदीप धनखड़ का उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफाभारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्णमोड़ है। जहां विपक्ष इसे बीजेपी की कमजोरी के रूप में पेश कर रहा है, वहीं बीजेपी इसे स्वास्थ्य से जुड़ा व्यक्तिगत निर्णय बता रही है। जस्टिसवर्मा के खिलाफ महाभियोगप्रस्ताव, बीएसी बैठक में मंत्रियों की अनुपस्थिति, और धनखड़ की निष्पक्षता को लेकर सियासी खींचतान इस इस्तीफे के पीछे के प्रमुखकारण प्रतीत होते हैं।

आने वाले दिन इस बात का खुलासा करेंगे कि क्या धनखड़ का इस्तीफा वाकई स्वास्थ्यकारणों से था या इसके पीछे सियासी दबाव थे। फिलहाल, यह घटनाक्रम विपक्ष को बीजेपी पर हमला करने का एक बड़ा मौका दे रहा है, जबकिबीजेपी इसे नियंत्रित करने के लिए रणनीति बना रही है। यह सियासीड्रामा न केवल संसद के गलियारों में, बल्कि पूरे देश में चर्चा का विषय बना हुआ है। Dhankhar Resignation Real Story


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