मंगल पांडे: ‘चर्बी कारतूस’ की चिंगारी ने 1857 में अंग्रेजों की नींद उड़ाई, 10 दिन पहले फाँसी देकर भी नहीं रोक पाए क्रांति की आग

मंगल पांडे: ‘चर्बी कारतूस’ की चिंगारी ने 1857 में अंग्रेजों की नींद उड़ाई, 10 दिन पहले फाँसी देकर भी नहीं रोक पाए क्रांति की आग

First Freedom Fighter MangalPandey | भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम (1857) के नायक मंगल पांडे की वीरता और बलिदान की गाथा आज भी हर भारतीय के दिल में देशभक्ति की लौ जलाती है। 29 मार्च 1857 को पश्चिम बंगाल के बैरकपुर छावनी में एक साधारण सिपाही ने “मारो फिरंगी को!” का नारा बुलंद कर अंग्रेजी हुकूमत की नींव हिला दी थी। मंगल पांडे ने नई एनफील्ड राइफल के ‘चर्बी वाले कारतूस’ को ठुकराकर विद्रोह की ऐसी चिंगारी सुलगाई, जो बैरकपुर से मेरठ, दिल्ली, कानपुर और लखनऊ तक फैल गई। अंग्रेजों ने डर के मारे तय तारीख से 10 दिन पहले यानी 8 अप्रैल 1857 को उन्हें फाँसी दे दी, लेकिन मंगल की शहादत ने पूरे देश में स्वतंत्रता की अलख जगा दी। First Freedom Fighter MangalPandey

First Freedom Fighter MangalPandey

19 जुलाई 2025 को मंगल पांडे की जयंती पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित की। पीएम मोदी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा:
“महान स्वतंत्रता सेनानी मंगल पांडे को उनकी जयंती पर कोटि-कोटि नमन। उनका साहस, पराक्रम और बलिदान भारत के स्वतंत्रता संग्राम की पहली चिंगारी बना। वे अंग्रेजी हुकूमत को चुनौती देने वाले प्रथम योद्धाओं में से एक थे। उनकी वीरता की कहानी देशवासियों को हमेशा प्रेरित करती रहेगी। #MangalPandey #1857Rebellion”

इस ट्वीट के जरिए पीएम ने न केवल मंगल पांडे की बहादुरी को याद किया, बल्कि देशवासियों को उनके बलिदान से प्रेरणा लेने का आह्वान भी किया। आइए, इस विस्तृत लेख में मंगल पांडे के जीवन, उनके विद्रोह की कहानी, ‘चर्बी वाले कारतूस’ के विवाद, अंग्रेजों के डर, और उनके बलिदान के बाद भारत में फैली क्रांति की आग के बारे में जानें।

मंगल पांडे: एक साधारण ब्राह्मण से क्रांतिकारी नायक तक

मंगल पांडे का जन्म 19 जुलाई 1827 को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के नगवा गाँव में एक साधारण ब्राह्मण परिवार में हुआ था। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि उनका जन्म अयोध्या के पास सुरुरपुर गाँव में हुआ, लेकिन उनका परिवार बलिया से ही संबंधित था। उनके पिता दिवाकर पांडे और माता अभय रानी साधारण जीवन जीते थे, और परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर थी। फिर भी, मंगल में बचपन से ही देशभक्ति और अन्याय के खिलाफ लड़ने का जज्बा था।

18 साल की उम्र में 1849 में मंगल पांडे ईस्ट इंडिया कंपनी की 34वीं बंगाल नेटिव इन्फैंट्री में सिपाही बन गए। उस समय कंपनी की सेना में भारतीय सिपाहियों की संख्या अधिक थी, लेकिन उन्हें हमेशा कमतर आंका जाता था। कम वेतन, भेदभाव और अंग्रेजी अफसरों की तानाशाही से सिपाही त्रस्त थे। मंगल पांडे भी इस अन्याय से अछूते नहीं रहे, और यही गुस्सा उनके विद्रोह का बीज बना।

‘चर्बी वाले कारतूस’: विद्रोह की चिंगारी

1857 का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम कोई आकस्मिक घटना नहीं थी। यह सालों से जमा हुए गुस्से का विस्फोट था। अंग्रेजों ने भारतीय रियासतों को हड़प लिया, किसानों पर भारी कर लगाए, और सिपाहियों के साथ बुरा बर्ताव किया। लेकिन विद्रोह की तात्कालिक वजह बनी नई एनफील्ड राइफल और उसके कारतूस।

1850 के दशक में अंग्रेजों ने भारतीय सिपाहियों को एनफील्ड राइफल दी, जिसके कारतूस में गाय और सुअर की चर्बी होने की अफवाह फैल गई। इन कारतूसों को मुँह से काटकर राइफल में लोड करना पड़ता था, जो हिंदू और मुस्लिम सिपाहियों की धार्मिक भावनाओं के खिलाफ था। यह अफवाह जंगल की आग की तरह फैली और सिपाहियों में आक्रोश बढ़ गया।

मंगल पांडे ने इस अन्याय को अपनी आवाज दी। 29 मार्च 1857 को बैरकपुर छावनी में उन्होंने कारतूस इस्तेमाल करने से इनकार कर दिया और अपने साथी सिपाहियों को अंग्रेजों के खिलाफ हथियार उठाने का आह्वान किया। “मारो फिरंगी को!” का उनका नारा उस दिन बैरकपुर की हवा में गूंजा। मंगल ने दो ब्रिटिश अफसरों—लेफ्टिनेंट बौघ और सार्जेंट-मेजर ह्यूसन—पर हमला किया। उन्होंने बौघ को घायल कर दिया और ह्यूसन को मार डाला। यह छोटी-सी घटना पूरे देश में क्रांति की शुरुआत बन गई।

मंगल पांडे का विद्रोह और अंग्रेजों की घबराहट

मंगल पांडे के विद्रोह ने बैरकपुर छावनी में हड़कंप मचा दिया। कुछ सिपाहियों ने उनका साथ दिया, लेकिन पूरी रेजिमेंट एकजुट नहीं हो सकी। मंगल ने अंग्रेजों के हाथों गिरफ्तारी से बचने के लिए अपनी बंदूक से खुद को गोली मारने की कोशिश की। उन्होंने बंदूक की नाल अपनी छाती पर रखी और पैर से ट्रिगर दबाया, लेकिन गोली उन्हें केवल घायल कर सकी। इसके बाद ब्रिटिश जनरल जॉन हर्सी ने स्थिति को नियंत्रित किया।

हर्सी ने सिपाहियों को धमकी दी कि जो मंगल को नहीं रोकेगा, उसे गोली मार दी जाएगी। आखिरकार, एक सिपाही ने मंगल को पकड़ लिया। उन्हें गिरफ्तार कर कोर्ट मार्शल में पेश किया गया। मंगल ने बिना डरे कबूल किया कि उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह किया। कोर्ट ने उन्हें फाँसी की सजा सुनाई और तारीख तय की 18 अप्रैल 1857।

10 दिन पहले फाँसी: अंग्रेजों का डर

अंग्रेजों ने तय तारीख से 10 दिन पहले, यानी 8 अप्रैल 1857 को, बैरकपुर में चुपके से मंगल पांडे को फाँसी दे दी। इसका कारण था उनका डर। मंगल पांडे की वीरता की खबरें बैरकपुर से बाहर निकलकर अन्य छावनियों तक पहुंच रही थीं। मेरठ, दिल्ली और लखनऊ में सिपाहियों में बेचैनी बढ़ रही थी। अंग्रेजों को डर था कि अगर मंगल को जिंदा रखा गया, तो उनका विद्रोह पूरे देश में आग की तरह फैल जाएगा। इसलिए, उन्होंने जल्दबाजी में फाँसी देकर विद्रोह को कुचलने की कोशिश की। लेकिन मंगल की शहादत ने उल्टा क्रांति को और भड़का दिया। First Freedom Fighter MangalPandey

1857 की क्रांति: मंगल की चिंगारी से ज्वाला

मंगल पांडे की फाँसी के बाद विद्रोह की आग और तेजी से फैली। 20 अप्रैल 1857 को हिमाचल प्रदेश के कसौली में सिपाहियों ने एक पुलिस चौकी जला दी। 10 मई 1857 को मेरठ में सिपाहियों ने ब्रिटिश अफसरों पर हमला किया और दिल्ली की ओर कूच किया। वहाँ उन्होंने मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर को अपना नेता घोषित किया। लखनऊ में 30 मई को चिनहट और इस्माइलगंज में सिपाहियों, किसानों और मजदूरों ने हथियार उठाए।

कानपुर में नाना साहब, झाँसी में रानी लक्ष्मीबाई, लखनऊ में बेगम हजरत महल और बिहार में कुंवर सिंह जैसे वीरों ने विद्रोह की कमान संभाली। यह विद्रोह भले ही 1858 तक दबा दिया गया, लेकिन इसने अंग्रेजी हुकूमत की कमजोरी उजागर कर दी। मंगल पांडे की चिंगारी ने पूरे भारत में स्वतंत्रता की ललक पैदा की।

अंग्रेजों का डर: कंपनी राज का अंत

अंग्रेजों को डर था कि मंगल पांडे का विद्रोह एक राष्ट्रव्यापी स्वतंत्रता आंदोलन में बदल जाएगा। उस समय ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में लाखों भारतीय सिपाही थे, और अगर वे एकजुट हो जाते, तो कंपनी का शासन खत्म हो सकता था। मंगल की शहादत के बाद हुए विद्रोह ने अंग्रेजों को मजबूर किया कि वे 1858 में ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन खत्म करें और ब्रिटिश क्राउन को भारत का सीधा शासन सौंप दें। यह मंगल पांडे की वीरता का ही परिणाम था कि ‘कंपनी राज’ का अंत हुआ। First Freedom Fighter MangalPandey

मंगल पांडे की विरासत और प्रेरणा

मंगल पांडे सिर्फ एक सिपाही नहीं, बल्कि भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की पहली चिंगारी थे। उनकी शहादत ने भारतीयों में आजादी की चाह जगाई, जो 1947 में पूरी हुई। उनकी याद में 1984 में भारत सरकार ने डाक टिकट जारी किया। 2005 में उनकी जिंदगी पर आधारित फिल्म ‘मंगल पांडे: द राइजिंग’ बनी, जिसमें आमिर खान ने उनकी भूमिका निभाई। यह फिल्म आज भी युवाओं को मंगल की वीरता से प्रेरित करती है। First Freedom Fighter MangalPandey

आज मंगलपांडे की जयंती पर हम उन्हेंसलाम करते हैं, जिन्होंने अपनी जान देकर देश में स्वतंत्रता की अलख जलाई। उनकीकहानी हर भारतीय को  यह सिखाती है कि एक साधारणइंसान भी अपने साहस से इतिहास बदल सकता है। #MangalPandey #FirstWarOfIndependence #JaiHind


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