आरोपियों के मकान पर अब नहीं चलेगा बुलडोजर, बनेगी गाइडलाइन!

Hearing on Bulldozer Action | सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी: ‘आरोपी हो या दोषी, बिना कानूनी प्रक्रिया के प्रॉपर्टी पर बुलडोजर नहीं चलाया जा सकता’

Hearing on Bulldozer Action | सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को देशभर में आरोपियों के खिलाफ चल रहे बुलडोजर एक्शन पर महत्वपूर्ण सुनवाई हुई। यह मामला विशेष रूप से भाजपा शासित राज्यों में मुसलमानों के खिलाफ कथित रूप से हो रहे भेदभावपूर्ण व्यवहार से जुड़ा है। जमीयत-उलेमा-ए-हिंद द्वारा दायर की गई याचिका में आरोप लगाया गया है कि राज्य सरकारें अल्पसंख्यक समुदायों को निशाना बनाकर उनके घरों और संपत्तियों पर बुलडोजर चलवा रही हैं, और यह कार्यवाही बिना किसी कानूनी प्रक्रिया के हो रही है।

सुप्रीम कोर्ट की बेंच, जिसमें जस्टिस वी. रामासुब्रमणियन और जस्टिस बी.आर. गवई शामिल थे, ने इस मामले में सुनवाई की और कुछ महत्वपूर्ण टिप्पणियां कीं। कोर्ट ने राज्य सरकारों की इस कार्रवाई पर गंभीर सवाल उठाए। बेंच ने कहा, “अगर कोई व्यक्ति सिर्फ आरोपी है, तो उसकी प्रॉपर्टी [Property] गिराने की कार्रवाई कैसे की जा सकती है?” बेंच ने आगे कहा, “यहां तक कि अगर कोई दोषी भी साबित हो जाता है, तब भी कानून के अनुसार प्रॉपर्टी पर इस तरह की कार्रवाई नहीं की जा सकती।”

जमीयत-उलेमा-ए-हिंद की याचिका और आरोप

जमीयत-उलेमा-ए-हिंद की ओर से दायर की गई याचिका में आरोप लगाया गया है कि भाजपा शासित राज्यों में मुस्लिम समुदाय के खिलाफ [Bulldozer Action] का उपयोग उन्हें डराने और उत्पीड़न करने के लिए किया जा रहा है। याचिका में कहा गया है कि राज्य सरकारें कानून के नियमों का पालन किए बिना, मुस्लिम समुदाय के घरों और संपत्तियों पर बुलडोजर चलाने की कार्रवाई कर रही हैं।

याचिकाकर्ता के वकील फारूक रशीद ने अदालत में दलील दी कि यह कार्रवाई न केवल भेदभावपूर्ण है, बल्कि संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) का भी उल्लंघन है। उन्होंने अदालत से अनुरोध किया कि इस प्रकार की कार्यवाही को तुरंत रोका जाए और सभी राज्य सरकारों के लिए एक स्पष्ट [Guideline] जारी की जाए, जिससे किसी भी समुदाय को इस तरह के भेदभाव का शिकार न होना पड़े।

Hearing on Bulldozer Action
Hearing on Bulldozer Action

केंद्र सरकार की प्रतिक्रिया और दलीलें

इस मुद्दे पर केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपनी प्रतिक्रिया दर्ज कराई। सरकार का दावा है कि किसी भी आरोपी की प्रॉपर्टी इसलिए नहीं गिराई गई क्योंकि उसने अपराध किया था। बल्कि, यह कार्रवाई म्युनिसिपल एक्ट [Municipal Act] के तहत अवैध कब्जों को हटाने के लिए की गई थी। केंद्र सरकार के वकील ने यह भी स्पष्ट किया कि इस प्रकार की कार्रवाई में किसी विशेष समुदाय या व्यक्ति को निशाना नहीं बनाया गया है। उन्होंने तर्क दिया कि बुलडोजर कार्रवाई [Bulldozer Action] पूरी तरह से कानूनी प्रक्रिया के तहत की जा रही है और इसका उद्देश्य केवल अवैध निर्माण को हटाना है।

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सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी

सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने इस मामले में केंद्र सरकार की दलीलों पर गहन विचार-विमर्श किया। अदालत ने कहा, “हम यहां अवैध अतिक्रमण [Encroachment] के बारे में बात नहीं कर रहे हैं। सवाल यह है कि क्या बिना कानूनी प्रक्रिया के किसी आरोपी की प्रॉपर्टी को ध्वस्त किया जा सकता है।”

बेंच ने इस बात पर जोर दिया कि अगर कोई व्यक्ति आरोपी है, तो उसकी प्रॉपर्टी को गिराने की कार्रवाई कैसे की जा सकती है? और अगर कोई व्यक्ति दोषी भी साबित हो जाता है, तब भी बिना कानूनी प्रक्रिया के इस प्रकार की कार्रवाई नहीं की जा सकती। अदालत ने कहा कि इस मामले से जुड़ी सभी पार्टियों से सुझाव लिए जाएंगे और इस प्रकार की कार्रवाई के खिलाफ पूरे देश के लिए एक व्यापक [Guideline] जारी की जा सकती है।

आगे की सुनवाई और संभावित परिणाम

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की अगली सुनवाई 17 सितंबर को तय की है। इस सुनवाई में अदालत जमीयत-उलेमा-ए-हिंद की याचिका पर विस्तार से विचार करेगी और सरकारों से उनकी नीतियों और प्रक्रियाओं के बारे में स्पष्टीकरण मांगेगी। इस केस के परिणामस्वरूप, यह संभव है कि अदालत देशभर में बुलडोजर कार्रवाई [Bulldozer Action] के लिए एक स्पष्ट और सख्त गाइडलाइन जारी करे, जिससे भविष्य में इस तरह की विवादास्पद कार्यवाहियों को रोका जा सके।

सुप्रीम कोर्ट की इस सख्त टिप्पणी से यह स्पष्ट हो गया है कि अदालत इस मुद्दे को बेहद गंभीरता से ले रही है। अदालत के विचार से यह मामला सिर्फ अवैध अतिक्रमण को हटाने का नहीं है, बल्कि यह कानूनी प्रक्रियाओं का पालन और संविधान के मूल सिद्धांतों की रक्षा का भी है। अदालत का यह कदम यह सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण हो सकता है कि भविष्य में किसी भी समुदाय को इस तरह की कार्यवाही का शिकार न होना पड़े, और सभी नागरिकों को समानता और न्याय का अधिकार मिले।

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