हिंगोट युद्ध: इंदौर के गौतमपुरा की प्राचीन परंपरा जो हर साल दीपावली के बाद जीवन में उत्साह का संचार करती है

हिंगोट युद्ध: इंदौर के गौतमपुरा की प्राचीन परंपरा जो हर साल दीपावली के बाद जीवन में उत्साह का संचार करती है

Hingot yudha goutampura | हर साल दीपावली के अगले दिन इंदौर के गौतमपुरा में हिंगोट युद्ध का आयोजन होता है, जो मध्यप्रदेश की एक अनोखी और जोखिम भरी परंपरा है। इस परंपरा की शुरुआत सालों पहले हुई थी और आज भी इसे पूरे उल्लास और जोश के साथ निभाया जाता है। इस अद्वितीय युद्ध में योद्धा एक-दूसरे पर जलते हुए हिंगोट (अग्निबाण) से आक्रमण करते हैं। हिंगोट युद्ध की ख्याति प्रदेश के कोने-कोने में फैली हुई है, और इसे देखने के लिए हजारों की संख्या में लोग गौतमपुरा पहुंचते हैं।

हिंगोट युद्ध: क्या है इसका ऐतिहासिक महत्व?

हिंगोट युद्ध का इतिहास सैकड़ों साल पुराना है। यह परंपरा किसी समय में राज्य के महाराजाओं और उनके सैनिकों के बीच युद्ध कौशल को परखने और अभ्यास में लाने के लिए की जाती थी। समय के साथ यह खेल के रूप में विकसित हुआ और ग्रामीण अंचल में इसे एक त्योहार के रूप में मनाया जाने लगा। दीपावली के तुरंत बाद गोवर्धन पूजा के दिन, गौतमपुरा और रूणजी गांव के बीच यह युद्ध होता है। इस युद्ध में भाग लेने वाले योद्धाओं को दो दलों में बांटा जाता है—तुर्रा और कलंगी। दोनों दलों के योद्धा परंपरागत वेशभूषा में सज-धज कर आते हैं, जिनमें कंधों पर हिंगोट से भरे झोले, एक हाथ में ढाल और दूसरे में जलती हुई बांस की कीमची होती है। Hingot yudha goutampura

युद्ध की शुरुआत: धार्मिक और परंपरागत आस्था से जुड़ा अनुष्ठान

हिंगोट युद्ध का प्रारंभ हमेशा धार्मिक आस्था के साथ किया जाता है। गौतमपुरा और रूणजी के योद्धा पहले बड़नगर रोड स्थित देवनारायण मंदिर में पूजा-अर्चना करते हैं और यहां से आशीर्वाद लेकर युद्धभूमि की ओर प्रस्थान करते हैं। यहां पहुंचकर योद्धा परंपरागत रूप से सजे-धजे हथियारों के साथ युद्ध के लिए तैयार होते हैं। युद्ध की शुरुआत लगभग शाम 4 बजे होती है, जब दोनों दलों के योद्धा मैदान में 200 फीट की दूरी पर आमने-सामने खड़े होते हैं। जैसे ही तुर्रा दल का योद्धा पहला जलता हुआ हिंगोट कलंगी दल की ओर फेंकता है, युद्ध का बिगुल बज जाता है। Hingot yudha goutampura

कैसे चलता है हिंगोट युद्ध का रोमांचक खेल?

हिंगोट युद्ध एक जोखिम भरा खेल है, जिसमें दोनों पक्षों के योद्धा एक-दूसरे पर जलते हुए हिंगोट फेंकते हैं। हिंगोट दरअसल एक तरह का बांस का बाण होता है, जिसमें बारूद भरकर आग लगा दी जाती है। इसे फेंकते ही यह हवा में जलता हुआ नजर आता है। योद्धा विशेष ढाल का प्रयोग करते हुए हिंगोट से बचने की कोशिश करते हैं, लेकिन कई बार आग के इस खेल में लोग घायल भी हो जाते हैं। यह खेल शाम से लेकर रात होने तक चलता रहता है। अंधेरा होते ही युद्ध को समाप्त कर दिया जाता है, और दर्शकों की भीड़ मैदान में उतरकर योद्धाओं का उत्साहवर्धन करती है। Hingot yudha goutampura

क्यों होता है हिंगोट युद्ध और क्या है इसका महत्व?

हिंगोट युद्ध महज एक खेल नहीं, बल्कि आस्था और परंपरा का प्रतीक भी है। दीपावली के अगले दिन होने वाला यह आयोजन दोनों गांवों के बीच भाईचारे और सामुदायिक संबंधों को प्रगाढ़ करता है। लोग इसे एक तरह से वीरता और साहस का प्रतीक मानते हैं, और इस परंपरा को निभाना अपना कर्तव्य समझते हैं। इस युद्ध के माध्यम से गांववासी अपने पूर्वजों की परंपरा को संजोए रखते हैं, और अगली पीढ़ी को भी इस विरासत से जोड़ते हैं। Hingot yudha goutampura

सुरक्षा प्रबंध: पुलिस बल और चिकित्सा सुविधा

हिंगोट युद्ध में जोखिम को देखते हुए यहां व्यापक स्तर पर सुरक्षा प्रबंध किए जाते हैं। पुलिस की विशेष टुकड़ियां तैनात होती हैं और चिकित्सा सुविधाएं भी उपलब्ध कराई जाती हैं। प्रशासन द्वारा आयोजन स्थल पर दर्शकों के लिए विशेष सुरक्षा घेरे बनाए जाते हैं ताकि किसी भी तरह की दुर्घटना को रोका जा सके। इसके साथ ही चिकित्सा टीम हर समय तैयार रहती है ताकि किसी भी घायल योद्धा का तुरंत इलाज किया जा सके। Hingot yudha goutampura

हिंगोट युद्ध की लोकप्रियता और पर्यटकों का आकर्षण

हिंगोट युद्ध का नजारा देखने के लिए न केवल आसपास के गांवों से लोग जुटते हैं, बल्कि दूर-दराज के क्षेत्रों से भी लोग बड़ी संख्या में आते हैं। यह आयोजन क्षेत्र के पर्यटन को बढ़ावा देता है, जिससे स्थानीय व्यापारियों को भी लाभ होता है। पर्यटक इस आयोजन के माध्यम से ग्रामीण संस्कृति और परंपराओं से परिचित होते हैं और यहां के लोगों की वीरता और साहस को महसूस करते हैं। Hingot yudha goutampura

हिंगोट युद्ध: परंपरा, साहस और भाईचारे का संगम

हिंगोट युद्ध एक अद्वितीय परंपरा है, जो आधुनिकता के इस युग में भी अपनी पुरानी जड़ों से जुड़ी हुई है। यह न केवल दो गांवों के लोगों के बीच के रिश्ते को मजबूत करता है, बल्कि नई पीढ़ी को भी अपने संस्कार और मूल्यों से जोड़ता है। हिंगोट युद्ध साहस, परंपरा और विश्वास का प्रतीक है और यह आयोजन हर वर्ष आने वाले समय में भी इसी जोश के साथ मनाया जाता रहेगा। Hingot yudha goutampura

इस तरह, हिंगोट युद्ध केवल एक खेल नहीं है बल्कि उस आदर्श को संजोता है जो एक दूसरे की रक्षा, वीरता और समुदाय की भावना को प्रस्तुत करता है।  Hingot yudha goutampura


Follow on WthasApp Channel

 

यह खबर भी पढ़ें – 

गोवर्धन पूजा: प्रकृति, आध्यात्म और भक्ति का अनुपम संगम

Leave a Comment