भारत रूसी तेल का सबसे बड़ा खरीदार कैसे बना और ट्रंप की धमकी ने क्यों चौंकाया?

भारत रूसी तेल का सबसे बड़ा खरीदार कैसे बना और ट्रंप की धमकी ने क्यों चौंकाया?

India Russia oil trade | भारत ने पिछले कुछ वर्षों में रूसी कच्चे तेल के आयात में अभूतपूर्व वृद्धि दर्ज की है, जिससे वह रूस का सबसे बड़ा तेल खरीदार बन गया। यह स्थिति 2022 में यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के बाद उत्पन्न हुई, जब पश्चिमी देशों ने रूसी तेल पर प्रतिबंध लगाए या अपनी खरीदारी कम की। भारत ने इस अवसर को भुनाया और सस्ते दामों पर रूसी तेल खरीदकर अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा किया। इसने न केवल भारत की अर्थव्यवस्था को राहत दी, बल्कि मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने में भी मदद की। हालांकि, हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत के इस कदम को निशाना बनाया और 25% टैरिफ के साथ-साथ “जुर्माना” शुल्क लगाने की धमकी दी, जिसने भारत को सकते में डाल दिया। यह लेख भारत के रूसी तेल आयात की कहानी, इसके आर्थिक लाभ, और ट्रंप की प्रतिक्रिया के पीछे के कारणों का विश्लेषण करता है। India Russia oil trade


रूसी तेल की ओर भारत का रुख: एक रणनीतिक कदम

भारत और रूस का व्यापारिक संबंध दशकों पुराना है, जो सोवियत संघ के समय से चला आ रहा है। रूस के पास तेल और गैस के विशाल भंडार हैं, जबकि भारत अपनी ऊर्जा जरूरतों का लगभग 85% आयात पर निर्भर करता है। फरवरी 2022 में यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के बाद, पश्चिमी देशों—विशेष रूप से अमेरिका और यूरोप—ने रूस की अर्थव्यवस्था को कमजोर करने के लिए उसके तेल और गैस पर प्रतिबंध लगाए। इससे रूसी तेल की वैश्विक मांग में कमी आई, और कीमतें ब्रेंट क्रूड की तुलना में 4-5 डॉलर प्रति बैरल तक कम हो गईं।

भारत ने इस स्थिति को एक अवसर के रूप में देखा। 2022 की शुरुआत में, भारत के कच्चे तेल आयात में रूस की हिस्सेदारी केवल 0.2% थी। लेकिन जैसे-जैसे रूस ने अपने तेल की बिक्री के लिए नए बाजार तलाशे, भारत ने सस्ते दामों पर खरीदारी शुरू की। मई 2023 तक, रूस भारत को प्रतिदिन 2 मिलियन बैरल से अधिक तेल की आपूर्ति करने लगा, जो भारत के कुल तेल आयात का लगभग 45% था। यह हिस्सेदारी किसी भी अन्य देश—यहां तक कि पारंपरिक आपूर्तिकर्ता जैसे सऊदी अरब और इराक—से कहीं अधिक थी।

भारत ने रूसी तेल को छूट पर खरीदा, जिससे उसे 2022-2024 के बीच अनुमानित 11-25 अरब डॉलर की बचत हुई। इस तेल का एक हिस्सा घरेलू खपत के लिए रिफाइन किया गया, जबकि शेष को डीजल, पेट्रोल, और अन्य पेट्रोलियम उत्पादों के रूप में निर्यात किया गया। आश्चर्यजनक रूप से, इनमें से कुछ उत्पाद यूरोप को भी भेजे गए, जो रूसी तेल पर प्रतिबंध लगाने के बावजूद अप्रत्यक्ष रूप से भारतीय रिफाइंड उत्पादों का आयात कर रहा था।


आर्थिक लाभ: भारत के लिए वरदान

रूसी तेल की खरीद ने भारत की अर्थव्यवस्था को कई तरह से लाभ पहुंचाया:

  1. मुद्रास्फीति पर नियंत्रण: सस्ता तेल आयात करने से भारत को वैश्विक ऊर्जा बाजार में अस्थिरता के दौरान मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने में मदद मिली। यह विशेष रूप से महत्वपूर्ण था, क्योंकि 2022 में वैश्विक तेल की कीमतें यूक्रेन संकट के कारण आसमान छू रही थीं।
  2. विदेशी मुद्रा भंडार की सुरक्षा: कम कीमत पर तेल खरीदने से भारत को विदेशी मुद्रा खर्च में कमी आई, जिससे रुपये की स्थिरता बनी रही। इससे भारत का चालू खाता घाटा भी नियंत्रित रहा।
  3. निर्यात में वृद्धि: भारतीय रिफाइनरियों ने रूसी तेल को प्रोसेस कर डीजल और अन्य उत्पादों का निर्यात किया, जिससे निर्यात आय में वृद्धि हुई। यह भारत के व्यापार संतुलन के लिए भी लाभकारी रहा।
  4. ऊर्जा सुरक्षा: रूस से लगातार तेल आपूर्ति ने भारत की ऊर्जा सुरक्षा को मजबूत किया, जिससे वह मध्य पूर्व जैसे अस्थिर क्षेत्रों पर निर्भरता कम कर सका।

भारत ने इस दौरान रूसी तेल की खरीद के लिए भुगतान में रुपये का उपयोग भी शुरू किया, जिससे डॉलर पर निर्भरता कम हुई और दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ावा मिला।


ट्रंप की धमकी: एक अप्रत्याशित झटका

भारत को उम्मीद थी कि डोनाल्ड ट्रंप, जो अक्सर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ करते रहे हैं, रूसी तेल के मुद्दे पर नरम रुख अपनाएंगे। ट्रंप ने अपने पिछले कार्यकाल में भारत के साथ सकारात्मक संबंध बनाए रखे थे, और भारत को लगता था कि वे बाइडेन प्रशासन की तुलना में रूस के प्रति अधिक उदार होंगे। लेकिन ट्रंप का हालिया बयान और 25% टैरिफ के साथ “जुर्माना” शुल्क की धमकी ने भारत को चौंका दिया।

ट्रंप की नाराजगी के पीछे कई कारण हैं:

  1. रूस को आर्थिक समर्थन: ट्रंप का मानना है कि भारत और चीन जैसे देश रूसी तेल खरीदकर रूस की अर्थव्यवस्था को मजबूत कर रहे हैं, जिससे वह यूक्रेन के खिलाफ युद्ध जारी रखने में सक्षम है। ट्रंप ने रूस को युद्ध रोकने के लिए 50 दिनों का अल्टीमेटम दिया था, और वह रूसी तेल की खरीद को युद्ध के लिए वित्तीय सहायता के रूप में देखते हैं।
  2. अमेरिका-भारत व्यापार घाटा: ट्रंप ने स्पष्ट किया है कि वह अमेरिका के भारत के साथ 44 अरब डॉलर के व्यापार घाटे को कम करना चाहते हैं। रूसी तेल का मुद्दा उनके लिए भारत पर दबाव बनाने का एक जरिया बन गया है। वे चाहते हैं कि भारत अमेरिकी तेल या प्राकृतिक गैस का आयात शुरू करे।
  3. भूराजनीतिक रणनीति: ट्रंप की धमकी को भारत को अमेरिकी खेमे में और करीब लाने की रणनीति के रूप में भी देखा जा सकता है। वह भारत को रूस और चीन जैसे देशों से दूरी बनाने के लिए प्रेरित करना चाहते हैं।

ट्रंप ने सोशल मीडिया पर भारत और रूस के संबंधों को लेकर अपमानजनक टिप्पणियां भी कीं, जैसे कि “भारत और रूस अपनी डेड अर्थव्यवस्थाओं को मिलकर गिरा सकते हैं, मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता।” इन बयानों ने भारत में राजनीतिक हलचल मचा दी, और विपक्ष ने इसे सियासी मुद्दा बनाना शुरू कर दिया।


भारत के लिए चुनौतियां

ट्रंप की धमकी भारत के लिए कई चुनौतियां खड़ी करती है:

  1. आर्थिक प्रभाव: 25% टैरिफ से भारत के निर्यात, विशेष रूप से अमेरिका को होने वाले निर्यात, प्रभावित हो सकते हैं। इससे भारत की आर्थिक वृद्धि पर असर पड़ सकता है, हालांकि विश्लेषक अभी भी भारत को दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था मानते हैं।
  2. रूसी तेल का विकल्प: रूसी तेल को पूरी तरह बदलना भारत के लिए महंगा और रसद की दृष्टि से जटिल होगा। केप्लर डेटा के अनुसार, हाल के हफ्तों में भारत ने रूसी तेल की खरीद थोड़ी कम की है, लेकिन इसे पूरी तरह बंद करना आसान नहीं है। सऊदी अरब या इराक जैसे देशों से तेल खरीदना अधिक महंगा होगा।
  3. राजनीतिक दबाव: ट्रंप की टिप्पणियों ने भारत में विपक्ष को सरकार पर हमला करने का मौका दिया है। साथ ही, भारत को अमेरिका और रूस के बीच संतुलन बनाना मुश्किल हो सकता है।
  4. अमेरिकी बाजार में पहुंच: ट्रंप भारत से अमेरिकी बाजार में कृषि, डेयरी, और अन्य उत्पादों के लिए अधिक पहुंच चाहते हैं। रूसी तेल का मुद्दा व्यापार वार्ताओं में एक दबाव बिंदु बन सकता है। India Russia oil trade

भारत की रणनीति: भविष्य की दिशा

भारत के सामने अब कई विकल्प हैं:

  1. विविधीकरण: भारत तेल आयात के लिए वैकल्पिक स्रोतों की तलाश कर सकता है, जैसे कि अमेरिका, कनाडा, या अफ्रीकी देश। हालांकि, ये स्रोत रूसी तेल की तुलना में महंगे होंगे।
  2. कूटनीति: भारत ट्रंप प्रशासन के साथ बातचीत कर रूसी तेल के मुद्दे पर समझौता तलाश सकता है। अमेरिकी तेल या गैस के आयात को बढ़ाकर भारत दबाव कम करने की कोशिश कर सकता है।
  3. रूस के साथ संबंध बनाए रखना: भारत के लिए रूस एक विश्वसनीय भागीदार रहा है, न केवल तेल के लिए, बल्कि रक्षा और अन्य क्षेत्रों में भी। भारत रूस के साथ अपने संबंधों को बनाए रखने की कोशिश करेगा, लेकिन अमेरिका के दबाव को देखते हुए संतुलन बनाना जरूरी होगा।
  4. स्वदेशी ऊर्जा: भारत नवीकरणीय ऊर्जा और स्वदेशी तेल उत्पादन पर ध्यान देकर आयात पर निर्भरता कम करने की दिशा में काम कर सकता है, हालांकि यह दीर्घकालिक समाधान है।

भारत का रूसी तेल का सबसे बड़ा खरीदार बनना एक रणनीतिक और आर्थिकनिर्णय था, जिसने उसे सस्ती ऊर्जा, मुद्रास्फीतिनियंत्रण, और विदेशीमुद्रा बचत जैसे लाभ दिए। लेकिन ट्रंप की अप्रत्याशित धमकी ने  भारत को एक जटिल स्थिति में डाल दिया है। भारत को अब अमेरिका के साथ व्यापार वार्ताओं, रूस के साथ संबंधों, और अपनी आर्थिक स्थिरता के बीच संतुलन बनाना होगा। यह स्थिति भारत की कूटनीतिक और आर्थिककुशलता की परीक्षा लेगी, क्योंकि वह वैश्विक मंच पर अपनी स्थिति को और मजबूत करने की कोशिश कर रहा है। India Russia oil trade


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