हिंदुओं की घट रही संख्या, पश्चिम बंगाल और पूर्वोत्तर राज्यों में बढ़ रही मुस्लिम-ईसाई आबादी
भारत में धार्मिक जनसंख्या के आंकड़ों के अनुसार, 2001 से 2011 के बीच हिंदू आबादी का प्रतिशत 80.46% से घटकर 79.8% हो गया, जबकि मुस्लिम आबादी का प्रतिशत 13.43% से बढ़कर 14.23% हो गया।
Indias Religious Diversity | भारत की धार्मिक जनसंख्या में बदलाव एक संवेदनशील और जटिल मुद्दा है, जो सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक परिदृश्य को प्रभावित कर रहा है। 2001 से 2011 की जनगणना के आँकड़ों के अनुसार, राष्ट्रीय स्तर पर हिंदू जनसंख्या का अनुपात 80.46% से घटकर 79.8% हो गया, जबकि मुस्लिम जनसंख्या 13.43% से बढ़कर 14.23% और ईसाई जनसंख्या में भी मामूली वृद्धि दर्ज की गई। यह बदलाव राष्ट्रीय स्तर पर भले ही मामूली दिखे, लेकिन पश्चिम बंगाल और पूर्वोत्तर राज्यों जैसे असम, मेघालय, मिजोरम, और नागालैंड में यह बदलाव अधिक स्पष्ट और गहन है। यह लेख 2001-2011 के जनगणना आँकड़ों, पश्चिम बंगाल और पूर्वोत्तर राज्यों में धार्मिक जनसंख्या के बदलते स्वरूप, इसके कारणों, और सामाजिक-राजनीतिक प्रभावों का विश्लेषण करता है। साथ ही, यह उन रुझानों पर भी प्रकाश डालता है, जो स्थानीय स्तर पर जनसंख्या संतुलन और सांस्कृतिक पहचान को प्रभावित कर रहे हैं। Indias Religious Diversity |
राष्ट्रीय स्तर पर धार्मिक जनसंख्या में बदलाव
2011 की जनगणना के आँकड़ों के अनुसार, भारत की कुल जनसंख्या 121.09 करोड़ थी, जिसमें हिंदुओं की हिस्सेदारी 79.8% (96.63 करोड़), मुस्लिमों की 14.2% (17.22 करोड़), और ईसाइयों की 2.3% (2.78 करोड़) थी। सिख (1.7%), बौद्ध (0.7%), जैन (0.4%), और अन्य धर्मों की हिस्सेदारी 0.7% थी। 2001 की तुलना में हिंदू जनसंख्या का अनुपात 0.66% कम हुआ, जबकि मुस्लिम जनसंख्या में 0.8% की वृद्धि हुई। ईसाई, सिख, बौद्ध, और जैन समुदायों की जनसंख्या वृद्धि दर में भी कमी देखी गई, लेकिन मुस्लिम और ईसाई समुदायों में वृद्धि राष्ट्रीय औसत (17.7%) से अधिक रही।
हालांकि, यह बदलाव राष्ट्रीय स्तर पर मामूली प्रतीत होता है, लेकिन जिला स्तर पर विश्लेषण करने पर यह अधिक स्पष्ट हो जाता है। भारत के 640 जिलों में से 468 (73%) जिलों में हिंदू जनसंख्या का अनुपात घटा, जबकि 513 जिलों में मुस्लिम और 439 जिलों में ईसाई जनसंख्या में वृद्धि दर्ज की गई। इनमें से 227 जिलों में हिंदू जनसंख्या में 0.7% से अधिक की गिरावट देखी गई, जो राष्ट्रीय औसत से कहीं अधिक है।
पश्चिम बंगाल: मुस्लिम जनसंख्या में तेज वृद्धि
पश्चिम बंगाल में मुस्लिम जनसंख्या में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है, खासकर मुर्शिदाबाद, मालदा, उत्तर दिनाजपुर, और उत्तर व दक्षिण 24 परगना जैसे जिलों में। 2011 की जनगणना के अनुसार, पश्चिम बंगाल की कुल जनसंख्या 9.1 करोड़ थी, जिसमें मुस्लिमों की हिस्सेदारी 27% (लगभग 2.46 करोड़) थी। यह 2001 की तुलना में 1.8% की वृद्धि दर्शाता है। इन जिलों में मुस्लिम जनसंख्या की वृद्धि दर हिंदुओं से कहीं अधिक रही, जिसके परिणामस्वरूप हिंदू जनसंख्या का अनुपात 70.54% तक कम हो गया।
इस बदलाव के पीछे कई कारक हैं:
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उच्च प्रजनन दर: मुस्लिम समुदाय में प्रजनन दर (2.3) हिंदू समुदाय (1.9) से अधिक रही है, हालांकि हाल के वर्षों में यह अंतर कम हुआ है।
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ऐतिहासिक और भौगोलिक कारक: बंगाल का विभाजन (1947) और बांग्लादेश से निकटता ने मुस्लिम जनसंख्या को प्रभावित किया है। खेती और व्यापार के अवसरों ने भी मुस्लिम समुदाय को इन क्षेत्रों में बसने के लिए प्रेरित किया।
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प्रवासन: कुछ विश्लेषकों और स्थानीय लोगों का मानना है कि बांग्लादेश से अवैध प्रवासन ने पश्चिम बंगाल के कुछ जिलों में जनसंख्या संतुलन को प्रभावित किया है।
ये बदलाव केवल आँकड़ों तक सीमित नहीं हैं। स्थानीय स्तर पर, बाजारों, स्कूलों की छुट्टियों, और स्थानीय राजनीति में भी बदलाव देखा जा सकता है। उदाहरण के लिए, मुस्लिम-बहुल क्षेत्रों में दुकानों के प्रकार, सांस्कृतिक आयोजनों, और स्थानीय प्रशासन में मुस्लिम समुदाय की बढ़ती भागीदारी स्पष्ट है।
असम: सीमापार प्रवासन और जनसंख्या परिवर्तन
असम में भी मुस्लिम जनसंख्या में तेज वृद्धि देखी गई है, खासकर बांग्लादेश से सटे जिलों जैसे धुबरी, बारपेटा, गोलपारा, और मोरीगांव में। 2001 में असम में मुस्लिम जनसंख्या 30.9% थी, जो 2011 में बढ़कर 34.2% हो गई। इसके विपरीत, हिंदू जनसंख्या का अनुपात घटकर 61.5% हो गया।
स्थानीय लोगों और कुछ राजनीतिक नेताओं का दावा है कि बांग्लादेश से अवैध प्रवासन इस बदलाव का प्रमुख कारण है। असम के उप-मुख्य मंत्री डॉ. नुमल मोमिन ने हाल ही में कहा कि स्वतंत्रता के समय असम में कोई भी जिला मुस्लिम-बहुल नहीं था, लेकिन 2025 तक 15 जिले मुस्लिम-बहुल हो गए हैं। यह मुद्दा असम में नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन्स (NRC) और अवैध प्रवासियों की पहचान के लिए सत्यापन अभियानों का आधार बना है।
हालांकि, जनगणना आँकड़े सीधे तौर पर प्रवासन या धर्म-परिवर्तन के बारे में जानकारी नहीं देते, लेकिन स्थानीय समुदायों का मानना है कि क्रॉस-बॉर्डर मूवमेंट ने जनसंख्या संतुलन को प्रभावित किया है। यह बदलाव स्थानीय संसाधनों, भूमि स्वामित्व, और राजनीतिक प्रतिनिधित्व पर भी असर डाल रहा है।
पूर्वोत्तर राज्यों में ईसाई जनसंख्या की उछाल
पूर्वोत्तर भारत में, विशेष रूप से नागालैंड, मिजोरम, मेघालय, और अरुणाचल प्रदेश में, ईसाई जनसंख्या में तेज वृद्धि देखी गई है। 2011 की जनगणना के अनुसार, इन राज्यों में ईसाई जनसंख्या 2001 की तुलना में 15.5% की दर से बढ़ी। 238 जिलों में ईसाई जनसंख्या में 50% से अधिक की वृद्धि दर्ज की गई, जो मुख्य रूप से जनजातीय क्षेत्रों में केंद्रित है।
इस वृद्धि के प्रमुख कारण हैं:
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मिशनरी गतिविधियाँ: ईसाई मिशनरियों ने दशकों से इन क्षेत्रों में शिक्षा, स्वास्थ्य, और कल्याणकारी योजनाओं के माध्यम से प्रभाव बढ़ाया है।
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सांस्कृतिक स्वीकार्यता: कई जनजातीय समुदायों ने ईसाई धर्म को अपनी सांस्कृतिक पहचान के साथ जोड़ लिया है, जिससे यह अब बाहरी धर्म नहीं, बल्कि स्वदेशी पहचान का हिस्सा बन गया है।
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प्रजनन दर और सामाजिक कारक: जनजातीय क्षेत्रों में उच्च प्रजनन दर और सामाजिक-आर्थिक सुधारों ने भी इस वृद्धि में योगदान दिया है।
नागालैंड (87.9% ईसाई), मिजोरम (87.2%), और मेघालय (74.6%) में ईसाई अब बहुसंख्यक हैं, और यह बदलाव स्थानीय संस्कृति, त्योहारों, और शैक्षिक संस्थानों में स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।
बदलाव के कारण: प्रजनन दर, प्रवासन, और धर्म-परिवर्तन
धार्मिक जनसंख्या में बदलाव के कई कारण हैं:
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प्रजनन दर (Fertility Rate): मुस्लिम समुदाय में प्रजनन दर (2.3) हिंदू समुदाय (1.9) से अधिक रही है, हालांकि NFHS-5 (2019-21) के अनुसार यह अंतर कम हो रहा है। ईसाई समुदायों में भी जनजातीय क्षेत्रों में उच्च प्रजनन दर देखी गई है।
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प्रवासन: पश्चिम बंगाल और असम में बांग्लादेश से कथित अवैध प्रवासन ने मुस्लिम जनसंख्या को बढ़ाया है। यह मुद्दा विशेष रूप से असम में राजनीतिक और सामाजिक बहस का केंद्र रहा है।
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धर्म-परिवर्तन: पूर्वोत्तर राज्यों में ईसाई मिशनरियों की गतिविधियों ने जनजातीय समुदायों में धर्म-परिवर्तन को बढ़ावा दिया है। यह परिवर्तन शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं से प्रेरित है, जिसे कुछ लोग सकारात्मक और कुछ लोग सांस्कृतिक हस्तक्षेप के रूप में देखते हैं।
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शहरीकरण और शिक्षा: उच्च शिक्षा और शहरीकरण ने हिंदू समुदाय में प्रजनन दर को कम किया है, जबकि मुस्लिम और जनजातीय समुदायों में यह प्रभाव कम रहा है।
सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव
जनसंख्या में धार्मिक बदलाव के प्रभाव केवल आँकड़ों तक सीमित नहीं हैं। ये बदलाव स्थानीय स्तर पर सामाजिक संरचना, सांस्कृतिक पहचान, और राजनीति को प्रभावित कर रहे हैं:
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पश्चिम बंगाल: मुस्लिम-बहुल जिलों में स्थानीय राजनीति में मुस्लिम समुदाय की बढ़ती भागीदारी देखी जा रही है। यह त्योहारों, स्कूलों की छुट्टियों, और सामुदायिक आयोजनों में भी परिलक्षित होता है।
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असम: जनसंख्या संतुलन में बदलाव ने अवैध प्रवासन और NRC जैसे मुद्दों को और जटिल बना दिया है। स्थानीय समुदायों में भूमि और संसाधनों को लेकर तनाव बढ़ा है।
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पूर्वोत्तर: ईसाई जनसंख्या की वृद्धि ने स्थानीय संस्कृति को प्रभावित किया है, जहाँ पारंपरिक जनजातीय रीति-रिवाजों के साथ ईसाई प्रथाएँ समन्वित हो रही हैं। यह सांस्कृतिक पहचान के सवालों को भी जन्म दे रहा है।
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राजनीतिक बहस: धार्मिक जनसंख्या में बदलाव ने राजनीतिक दलों के बीच बहस को तेज किया है। कुछ दल इसे वोट बैंक की राजनीति से जोड़ते हैं, जबकि अन्य इसे प्राकृतिक जनसांख्यिकीय प्रक्रिया मानते हैं।
दीर्घकालिक रुझान और भविष्य की संभावनाएँ
ये बदलाव रातों-रात नहीं हुए हैं। 1951 से 2011 तक, मुस्लिम जनसंख्या का अनुपात 9.8% से बढ़कर 14.2% हो गया, जबकि हिंदू जनसंख्या 84.1% से घटकर 79.8% हो गई। यह रुझान दशकों से चला आ रहा है और भविष्य में भी जारी रह सकता है। प्यू रिसर्च सेंटर के अनुमान के अनुसार, 2050 तक भारत में मुस्लिम जनसंख्या 18-20% तक पहुँच सकती है, लेकिन हिंदुओं का बहुसंख्यक दर्जा बरकरार रहेगा।
हालांकि, स्थानीय स्तर पर, विशेष रूप से पश्चिम बंगाल और असम जैसे क्षेत्रों में, यह बदलाव अधिक तीव्र हो सकता है, जिससे कुछ जिलों में हिंदू अल्पसंख्यक हो सकते हैं। पूर्वोत्तर में ईसाई जनसंख्या का बढ़ना भी सांस्कृतिक और राजनीतिक परिदृश्य को बदल रहा है।
भारत की धार्मिकजनसंख्या में बदलाव एक जटिल प्रक्रिया है, जो प्रजनन दर, प्रवासन, धर्म-परिवर्तन, और सामाजिकआर्थिक कारकों का परिणाम है। पश्चिम बंगाल और असम में मुस्लिम जनसंख्या की वृद्धि और पूर्वोत्तर में ईसाई जनसंख्या की बढ़ोतरी ने स्थानीय स्तर पर जनसंख्या संतुलन, सांस्कृतिक पहचान, और राजनीति को प्रभावित किया है। ये बदलाव न केवल आँकड़ों में दिखते हैं, बल्कि स्थानीय समुदायों के दैनिक जीवन, सामाजिक संरचना, और राजनीतिक गतिशीलता में भी परिलक्षित होते हैं। Indias Religious Diversity |
2021 की जनगणना के आँकड़े उपलब्ध न होने के कारण, 2011 के आँकड़े ही नवीनतमजानकारी प्रदान करते हैं। भविष्य में नए आँकड़े इस रुझान को और स्पष्ट कर सकते हैं। भारत की विविधताउसकी ताकत है, लेकिन इस बदलते जनसांख्यिकीयपरिदृश्य में सामंजस्य और संतुलन बनाए रखना एक महत्वपूर्ण चुनौती होगी। Indias Religious Diversity |
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मैं इंदर सिंह चौधरी वर्ष 2005 से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय हूं। मैंने मास कम्यूनिकेशन में स्नातकोत्तर (M.A.) किया है। वर्ष 2007 से 2012 तक मैं दैनिक भास्कर, उज्जैन में कार्यरत रहा, जहाँ पत्रकारिता के विभिन्न पहलुओं का व्यावहारिक अनुभव प्राप्त किया।
वर्ष 2013 से 2023 तक मैंने अपना मीडिया हाउस ‘Hi Media’ संचालित किया, जो उज्जैन में एक विश्वसनीय नाम बना। डिजिटल पत्रकारिता के युग में, मैंने सितंबर 2023 में पुनः दैनिक भास्कर से जुड़ते हुए साथ ही https://mpnewsbrief.com/ नाम से एक न्यूज़ पोर्टल शुरू किया है। इस पोर्टल के माध्यम से मैं करेंट अफेयर्स, स्वास्थ्य, ज्योतिष, कृषि और धर्म जैसे विषयों पर सामग्री प्रकाशित करता हूं। फ़िलहाल मैं अकेले ही इस पोर्टल का संचालन कर रहा हूं, इसलिए सामग्री सीमित हो सकती है, लेकिन गुणवत्ता से कोई समझौता नहीं होता।