भगवान श्रीकृष्ण के अपमान मामले में लापरवाही बर्दाश्त नहीं, ​तमिलनाडु पुलिस पता भी नहीं लगा पाई: हाई कोर्ट ने लगाई क्लास, कहा- हिंदू देवी-देवताओं का अपमान नहीं कर सकते

भगवान श्रीकृष्ण के अपमान मामले में लापरवाही बर्दाश्त नहीं, ​तमिलनाडु पुलिस पता भी नहीं लगा पाई: हाई कोर्ट ने लगाई क्लास, कहा- हिंदू देवी-देवताओं का अपमान नहीं कर सकते

Madras High Court Order | मद्रास हाई कोर्ट ने तमिलनाडु पुलिस को भगवान श्रीकृष्ण के अपमान से जुड़े एक मामले में लापरवाही बरतने के लिए कड़ी फटकार लगाई है। अगस्त 2022 में फेसबुक पर भगवान श्रीकृष्ण की तस्वीर के साथ अपमानजनक कैप्शन पोस्ट करने के मामले में तमिलनाडु पुलिस ने यह कहते हुए जांच बंद कर दी थी कि ‘आरोपित’ का पता नहीं चल सका। हाई कोर्ट ने इस रवैये को गैर-जिम्मेदाराना करार देते हुए पुलिस को तीन महीने के भीतर दोबारा जांच पूरी कर नई रिपोर्ट दाखिल करने का आदेश दिया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मतलब हिंदू देवी-देवताओं का अपमान करना नहीं है, क्योंकि इससे धार्मिक भावनाएं आहत हो सकती हैं और सामाजिक अशांति फैल सकती है। Madras High Court Order

अगस्त 2022 में सतीश कुमार नामक एक फेसबुक यूजर ने भगवान श्रीकृष्ण द्वारा गोपियों के वस्त्र ले जाने की एक प्रतीकात्मक कथा से जुड़ी तस्वीर के साथ आपत्तिजनक और अभद्र कैप्शन पोस्ट किया था। पोस्ट में भगवान श्रीकृष्ण के बारे में अपमानजनक टिप्पणी की गई थी, जिसमें कहा गया था कि “कृष्ण जन्माष्टमी उनका त्योहार है, जिन्होंने नहाती हुई महिलाओं के कपड़े चुरा लिए थे।” इस पोस्ट से हिंदू समुदाय की धार्मिक भावनाएं आहत हुईं, जिसके बाद पी. परमेसिवन नामक व्यक्ति ने तूतीकोरिन पुलिस में शिकायत दर्ज की। शिकायत में कहा गया कि यह पोस्ट जानबूझकर हिंदू देवी-देवताओं का अपमान करने और कानून-व्यवस्था बिगाड़ने के इरादे से की गई थी।

पुलिस ने इस मामले में जांच शुरू की, लेकिन फरवरी 2025 में तूतीकोरिन पुलिस ने निचली अदालत में ‘निगेटिव फाइनल रिपोर्ट’ दाखिल कर दी, जिसमें दावा किया गया कि फेसबुक यूजर की पहचान नहीं हो सकी। पुलिस ने कहा कि उन्होंने फेसबुक की मूल कंपनी मेटा से यूजर की जानकारी मांगी थी, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला। इसके आधार पर निचली अदालत ने मामले को बंद कर दिया। शिकायतकर्ता ने इस फैसले को मद्रास हाई कोर्ट में चुनौती दी, जिसके बाद हाई कोर्ट ने मामले की गंभीरता को देखते हुए कड़ा रुख अपनाया।


मद्रास हाई कोर्ट का सख्त रुख

मद्रास हाई कोर्ट के जस्टिस के. मुरली शंकर ने 4 अगस्त 2025 को अपने आदेश में तमिलनाडु पुलिस और निचली अदालत के रवैये पर तीखी टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा कि पुलिस ने इस मामले में गंभीरता नहीं दिखाई और जल्दबाजी में ‘निगेटिव फाइनल रिपोर्ट’ दाखिल कर दी। कोर्ट ने इसे लापरवाही का स्पष्ट उदाहरण बताया और कहा कि पुलिस ने जांच को सिर्फ मेटा से जानकारी मांगने तक सीमित रखा, जबकि फेसबुक पेज पर पहले से मौजूद निजी जानकारी के आधार पर यूजर की पहचान की जा सकती थी।

जस्टिस मुरली शंकर ने अपने आदेश में कहा, “हिंदू देवी-देवताओं को अपमानजनक तरीके से चित्रित करना लाखों-करोड़ों लोगों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने का जानबूझकर किया गया प्रयास है। इसे किसी भी तरह से उचित नहीं ठहराया जा सकता। यह न केवल धार्मिक शत्रुता को बढ़ावा दे सकता है, बल्कि सामाजिक अशांति और कानून-व्यवस्था के लिए खतरा भी पैदा कर सकता है।”

कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार असीमित नहीं है। यह धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने का लाइसेंस नहीं देता। कोर्ट ने कहा, “धार्मिक प्रतीकों और देवी-देवताओं के प्रति लोगों की गहरी आस्था को देखते हुए, उनका अपमान समाज के एक बड़े हिस्से को आहत कर सकता है। सरकार का यह दायित्व है कि वह सुनिश्चित करे कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दुरुपयोग धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के लिए न हो।” Madras High Court Order


भगवान श्रीकृष्ण की कथा का प्रतीकात्मक महत्व

हाई कोर्ट ने अपने आदेश में भगवान श्रीकृष्ण द्वारा गोपियों के वस्त्र ले जाने की कथा के प्रतीकात्मक महत्व को भी रेखांकित किया। कोर्ट ने कहा कि यह कथा केवल एक कहानी नहीं है, बल्कि इसमें गहरा आध्यात्मिक संदेश छिपा है। यह भगवान श्रीकृष्ण द्वारा गोपियों की भक्ति और सांसारिक मोह-माया से उनकी विरक्ति की परीक्षा लेने की प्रतीकात्मक कथा है। कोर्ट ने कहा, “इस कहानी का उद्देश्य भक्ति और आत्मिक साधना के महत्व को दर्शाना है। इसे गलत संदर्भ में प्रस्तुत कर अपमान करना धार्मिक भावनाओं के साथ खिलवाड़ है।”


पुलिस और निचली अदालत की लापरवाही

हाई कोर्ट ने न केवल पुलिस की जांच पर सवाल उठाए, बल्कि निचली अदालत के रवैये को भी गलत ठहराया। कोर्ट ने कहा कि मजिस्ट्रेट ने पुलिस की ‘निगेटिव फाइनल रिपोर्ट’ को बिना किसी गहन जांच के स्वीकार कर लिया, जो कानूनी रूप से सही नहीं था। मजिस्ट्रेट ने शिकायतकर्ता की आपत्तियों पर ध्यान नहीं दिया और मामले को जल्दबाजी में बंद कर दिया। कोर्ट ने इस फैसले को रद्द करते हुए पुलिस को आदेश दिया कि वह तीन महीने के भीतर इस मामले की गहन जांच कर नई रिपोर्ट दाखिल करे।


सामाजिक और कानूनी निहितार्थ

मद्रास हाई कोर्ट के इस फैसले ने धार्मिक भावनाओं के सम्मान और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बीच संतुलन के महत्व को रेखांकित किया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि धार्मिक प्रतीकों और विश्वासों का अपमान न केवल व्यक्तिगत भावनाओं को ठेस पहुंचाता है, बल्कि सामाजिक सौहार्द को भी नुकसान पहुंचा सकता है। इस मामले ने सोशल मीडिया पर धार्मिक सामग्री के दुरुपयोग और ऐसी सामग्री की जांच में पुलिस की जिम्मेदारी पर भी सवाल उठाए हैं।

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हाई कोर्ट के इस आदेश से यह संदेश स्पष्ट है कि धार्मिक भावनाओं को आहत करने वाले मामलों में लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी। यह फैसला न केवल तमिलनाडु पुलिस के लिए, बल्कि देश भर की कानून प्रवर्तन एजेंसियों के लिए एक मिसाल हो सकता है। Madras High Court Order

मद्रास हाईकोर्ट का यह फैसला धार्मिकभावनाओं के प्रति संवेदनशीलता और कानून-व्यवस्था बनाए रखने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। कोर्ट ने तमिलनाडु पुलिस को स्पष्ट संदेश दिया है कि धार्मिकअपमान के मामलों में लापरवाहीबर्दाश्त नहीं होगी। यह आदेशसोशल मीडिया पर धार्मिक सामग्री के दुरुपयोग के खिलाफ एक सख्त चेतावनी है और समाज में सौहार्द बनाए रखने की आवश्यकता को रेखांकित करता है। Madras High Court Order


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