मरने के बाद डीप फ्रीज मैं रखा शव, चिता पर जीवित हुआ शख्स, डॉक्टरों की लापरवाही या चमत्कार?

मरने के बाद डीप फ्रीज मैं रखा शव, चिता पर जीवित हुआ शख्स, डॉक्टरों की लापरवाही या चमत्कार?

Miracle news | राजस्थान के झुंझुनूं (Jhunjhunu) जिले से एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है, जिसने लोगों को आश्चर्यचकित कर दिया है। एक 47 वर्षीय व्यक्ति, जिसे डॉक्टरों ने मृत घोषित कर दिया था और जिसका शव दो घंटे तक अस्पताल के मुर्दाघर (Mortuary) के डीप फ्रिज में रखा गया था, वह चिता पर जीवित हो गया। यह घटना बगड़ (Bagar) कस्बे में मां सेवा संस्थान (Maa Seva Sansthan) के एक आश्रम में रहने वाले रोहिताश के साथ हुई।

डॉक्टरों ने मृत घोषित किया, लेकिन जीवन की हलचल ने सबको चौंकाया

गुरुवार की दोपहर, जब रोहिताश की तबीयत बिगड़ी, तो उसे झुंझुनूं के बीडीके अस्पताल (BDK Hospital) में भर्ती कराया गया। इलाज के दौरान, दोपहर करीब 1 बजे डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया। उसके शरीर को अस्पताल के मुर्दाघर में स्थानांतरित कर दिया गया, जहां यह दो घंटे तक डीप फ्रिज में रखा रहा।

शाम करीब 5 बजे, जब शव को अंतिम संस्कार के लिए पंच देव मंदिर (Panch Dev Mandir) के पास स्थित श्मशान घाट ले जाया गया, तो कुछ ऐसा हुआ जिसने वहां मौजूद हर व्यक्ति को हैरान कर दिया। जैसे ही रोहिताश के शव को चिता पर रखा गया, उसकी सांसें चलने लगीं और शरीर में हरकत हुई। यह दृश्य देखकर लोग भयभीत हो गए और तुरंत एंबुलेंस (Ambulance) बुलाकर उसे अस्पताल पहुंचाया गया।

जांच समिति का गठन

इस अप्रत्याशित घटना ने प्रशासनिक अधिकारियों को भी हिला दिया। जिला कलेक्टर राम अवतार मीणा ने मामले की जांच के लिए एक समिति का गठन किया। मुख्य चिकित्सा अधिकारी (Chief Medical Officer) से पूरी रिपोर्ट मांगी गई है। तहसीलदार (Tehsildar) महेंद्र मूंड और सामाजिक अधिकारिता विभाग के डिप्टी डायरेक्टर पवन पूनिया ने भी अस्पताल पहुंचकर स्थिति का जायजा लिया।

चमत्कार या चिकित्सा लापरवाही?

इस घटना ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं:

1. क्या डॉक्टरों ने सही तरीके से रोहिताश की मृत्यु की पुष्टि की थी?

2. दो घंटे तक डीप फ्रिज में रखने के बाद भी सांसों का लौट आना कैसे संभव हुआ?

3. क्या यह चिकित्सा जगत की लापरवाही का परिणाम था या कोई चमत्कार (Miracle)?

‘जाको राखे साइयां’: पुरानी कहावत को किया चरितार्थ

यह घटना भारतीय समाज में गहराई से जमी हुई कहावत, “जाको राखे साइयां, मार सके न कोय,” को सच साबित करती है। रोहिताश, जो बोलने और सुनने में असमर्थ है, इस घटना का जीवित उदाहरण बन गया है। उसकी स्थिति फिलहाल आईसीयू (ICU) में स्थिर बताई जा रही है।

आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के लिए चुनौती

चिकित्सा जगत के लिए यह घटना एक बड़ी चुनौती बन गई है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह घटना मेडिकल प्रक्रियाओं में सुधार की आवश्यकता पर जोर देती है। रोहिताश की सांसों का लौट आना चिकित्सा विज्ञान के सामने एक पहेली बन गया है। जांच समिति इस बात की जांच कर रही है कि क्या डॉक्टरों ने शव का सही तरीके से निरीक्षण किया था या यह मानवीय गलती का परिणाम है।

डीप फ्रिज में दो घंटे तक कैसे बची सांसें?

घटना का सबसे बड़ा सवाल यही है कि दो घंटे तक डीप फ्रिज में रखने के बावजूद रोहिताश की सांसें कैसे बचीं। विशेषज्ञों का मानना है कि यह घटना या तो किसी दुर्लभ मेडिकल कंडीशन (Medical Condition) का परिणाम हो सकती है या डॉक्टरों द्वारा मृत्यु का गलत निदान किया गया होगा।

स्थानीय लोग दहशत में, प्रशासन अलर्ट

झुंझुनूं के स्थानीय लोगों के बीच यह घटना चर्चा का विषय बन गई है। कुछ इसे चमत्कार मान रहे हैं, तो कुछ डॉक्टरों की लापरवाही। प्रशासन ने मामले की जांच के लिए विशेषज्ञों की एक टीम गठित की है, जो घटना के सभी पहलुओं पर अपनी रिपोर्ट देगी।

क्या कहती है विज्ञान और आस्था?

वैज्ञानिक दृष्टिकोण से, यह घटना संभवतः कैटोलेक्ट्री स्टेट (Cataleptic State) या पॉस्मॉर्टम एरर (Postmortem Error) हो सकती है, जिसमें व्यक्ति मृत प्रतीत होता है, लेकिन वास्तव में उसकी जीवन प्रणाली धीमी हो जाती है। दूसरी ओर, धार्मिक दृष्टिकोण से इसे चमत्कार के रूप में देखा जा रहा है।

अस्पताल प्रशासन पर सवाल

घटना के बाद बीडीके अस्पताल के डॉक्टरों पर सवाल उठने लगे हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि अस्पताल प्रशासन को इस मामले में जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए। डॉक्टरों और स्टाफ की लापरवाही के कारण एक व्यक्ति को मृत घोषित कर दिया गया।

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इस घटना ने झुंझुनूं और आसपास के इलाकों में हलचल मचा दी है। जांच समिति की रिपोर्ट आने के बाद ही सच्चाई का पता चलेगा। फिलहाल, रोहिताश की स्थिति स्थिर है, लेकिन यह घटना चिकित्सा और प्रशासन दोनों के लिए एक सबक है।

यह घटना हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि कभी-कभी जीवन और मृत्यु के बीच का अंतर समझ पाना कितना कठिन हो सकता है। शायद यही कारण है कि इसे चमत्कार और लापरवाही के बीच का मामला कहा जा रहा है।


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