सुप्रीम कोर्ट का मध्यप्रदेश सरकार पर कड़ा रुख: ओबीसी आरक्षण के 13% होल्ड पदों पर नियुक्ति में देरी क्यों? मुख्य सचिव से मांगा हलफनामा
OBC Reservation Crisis in Madhya Pradesh | मध्यप्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के लिए 27% आरक्षण को लागू करने को लेकर चल रही कानूनी जंग ने एक बार फिर सुर्खियां बटोरी हैं। 4 जुलाई 2025 को सुप्रीम कोर्ट में इस मामले पर सुनवाई हुई, जिसमें जस्टिस पी.एस. नरसिंहा और जस्टिस आर. महादेवन की बेंच ने मध्यप्रदेश सरकार से कड़े सवाल पूछे। कोर्ट ने सरकार से पूछा कि जब 13% पद होल्ड पर हैं, तो इन पर नियुक्तियों में क्या दिक्कत है? इसके साथ ही, सुप्रीम कोर्ट ने मध्यप्रदेश के मुख्य सचिव से इस मामले पर हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है। यह मामला न केवल मध्यप्रदेश की राजनीति और प्रशासन के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि राज्य के लाखों ओबीसी युवाओं के भविष्य से भी जुड़ा हुआ है, जो सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में अपने हक की प्रतीक्षा कर रहे हैं। OBC Reservation Crisis in Madhya Pradesh
पृष्ठभूमि: 27% ओबीसी आरक्षण का इतिहास
मध्यप्रदेश में ओबीसी आरक्षण का मुद्दा 2019 से चर्चा में है, जब तत्कालीन कमलनाथ के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने 8 मार्च 2019 को एक अध्यादेश पारित कर ओबीसी आरक्षण को 14% से बढ़ाकर 27% करने का फैसला किया था। बाद में, जुलाई 2019 में मध्यप्रदेश विधानसभा ने इस अध्यादेश को कानून में बदल दिया। इस कानून के तहत, ओबीसी वर्ग के लिए सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में 27% आरक्षण लागू होना था। हालांकि, इस फैसले को लागू करने में कई कानूनी और प्रशासनिक अड़चनें सामने आईं।
2019 से पहले, मध्यप्रदेश में आरक्षण की संरचना इस प्रकार थी:
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अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC): 14%
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अनुसूचित जनजाति (ST): 20%
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अनुसूचित जाति (SC): 16%
यह कुल मिलाकर 50% था, जो सुप्रीम कोर्ट के 1992 के ऐतिहासिक इंद्रा साहनी बनाम भारत सरकार मामले में तय की गई 50% की अधिकतम आरक्षण सीमा के अनुरूप था। लेकिन 27% ओबीसी आरक्षण लागू होने के बाद, कुल आरक्षण 63% हो गया, जिसमें 10% आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) के लिए भी शामिल था। इस बढ़ोतरी ने सुप्रीम कोर्ट के 50% आरक्षण सीमा के नियम का उल्लंघन किया, जिसके कारण यह मामला विवादों में आ गया।
कानूनी लड़ाई: हाई कोर्ट का स्टे और 87:13 फॉर्मूला
मार्च 2019 में, मध्यप्रदेश हाई कोर्ट ने एक याचिका के आधार पर 27% ओबीसी आरक्षण के कार्यान्वयन पर रोक लगा दी थी। यह याचिका एक एमबीबीएस छात्र ने दायर की थी, जिसने तर्क दिया कि मेडिकल प्रवेश परीक्षाओं में बढ़ा हुआ आरक्षण सामान्य वर्ग के उम्मीदवारों के लिए नुकसानदायक है। हाई कोर्ट के इस स्टे के कारण, कई भर्ती प्रक्रियाएं रुक गईं, जिससे ओबीसी उम्मीदवारों में असंतोष बढ़ा।
इस समस्या का समाधान करने के लिए, मध्यप्रदेश सरकार ने 2022 में 87:13 फॉर्मूले की शुरुआत की। इस फॉर्मूले के तहत, 87% सीटें मौजूदा आरक्षण नीति (14% ओबीसी, 20% एसटी, 16% एससी) के आधार पर भरी जाती हैं, जबकि शेष 13% सीटें (27% आरक्षण का अतिरिक्त हिस्सा) होल्ड पर रखी जाती हैं, जब तक कि सुप्रीम कोर्ट का अंतिम फैसला नहीं आ जाता। इस फॉर्मूले को हाई कोर्ट ने 2023 में मंजूरी दी थी, और जनवरी 2025 में इस फॉर्मूले को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया गया।
हालांकि, ओबीसी समुदाय का तर्क है कि यह फॉर्मूला उनके हक को पूरी तरह लागू नहीं करता, क्योंकि 13% सीटें होल्ड पर होने के कारण हजारों उम्मीदवारों की नियुक्तियां अटकी हुई हैं। ओबीसी महासभा के वकील वरुण ठाकुर ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी कि मध्यप्रदेश की 51% आबादी ओबीसी वर्ग से है, फिर भी उन्हें केवल 14% आरक्षण का लाभ मिल रहा है।
सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई: सरकार से सवाल और हलफनामा
4 जुलाई 2025 को सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाई में, जस्टिस पी.एस. नरसिंहा और जस्टिस आर. महादेवन की बेंच ने मध्यप्रदेश सरकार से स्पष्ट जवाब मांगा। कोर्ट ने सवाल उठाया कि जब 13% पद होल्ड पर हैं, तो इन पर नियुक्तियों में देरी क्यों हो रही है? कोर्ट ने यह भी कहा कि 27% ओबीसी आरक्षण पर कोई कानूनी रोक नहीं है, फिर भी सरकार इसे लागू करने में नाकाम रही है। कोर्ट ने मध्यप्रदेश के मुख्य सचिव को इस मामले पर हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया, ताकि सरकार का पक्ष और देरी के कारणों को स्पष्ट किया जा सके।
इस सुनवाई में ओबीसी महासभा ने तर्क दिया कि सरकार जानबूझकर 27% आरक्षण लागू नहीं कर रही है, जिससे ओबीसी समुदाय के हजारों युवाओं का भविष्य अधर में लटका हुआ है। मध्यप्रदेश के नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने भी कोर्ट की सुनवाई के बाद टिप्पणी की, “आज सुप्रीम कोर्ट में यह साबित हो गया कि मध्यप्रदेश सरकार ओबीसी वर्ग को उसका हक नहीं देना चाहती।” उन्होंने सरकार पर ओबीसी समुदाय के प्रति उदासीनता का आरोप लगाया।
राजनीतिक विवाद: कांग्रेस बनाम बीजेपी
यह मुद्दा मध्यप्रदेश में न केवल कानूनी, बल्कि राजनीतिक रूप से भी गर्म है। कांग्रेस पार्टी ने बीजेपी सरकार पर आरोप लगाया है कि वह 2019 में पारित 27% ओबीसी आरक्षण कानून को जानबूझकर लागू नहीं कर रही है। पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने कहा, “बीजेपी सरकार हर कदम पर ओबीसी विरोधी रवैया अपना रही है। मेरे कार्यकाल में लागू किया गया 27% आरक्षण पिछले पitalia
पांच साल से लटका रही है।” बीजेपी नेताओं का कहना है कि कमलनाथ सरकार ने 50% की सीमा को तोड़कर 27% आरक्षण लागू किया, जिसके कारण कानूनी जटिलताएं पैदा हुईं। मुख्यमंत्री मोहन यादव ने दावा किया कि उनकी सरकार 27% आरक्षण के पक्ष में है और सुप्रीम कोर्ट में जल्द सुनवाई के लिए याचिका दायर कर रही है।
सुप्रीम कोर्ट का 50% आरक्षण नियम और चुनौतियां
सुप्रीम कोर्ट का 1992 का इंद्रा साहनी फैसला आरक्षण की अधिकतम सीमा 50% निर्धारित करता है, जिसे असाधारण परमुख्य सचिव से हलफनामा मांगा गया है। यह हलफनामा सरकार के इरादों और देरी के कारणों को स्पष्ट करेगा, जिससे इस मामले में अगली सुनवाई की दिशा तय होगी।
ओबीसी समुदाय की उम्मीदें और भविष्य
मध्यप्रदेश में ओबीसी आरक्षण का मुद्दा न केवल सामाजिक, बल्कि राजनीतिक और कानूनी दृष्टिकोण से भी अहम है। सुप्रीम कोर्ट का अंतिम फैसला न केवल मध्यप्रदेश, बल्कि अन्य राज्यों में भी आरक्षण नीतियों को प्रभावित कर सकता है। ओबीसी समुदाय को उम्मीद है कि कोर्ट का फैसला उनके पक्ष में होगा और 27% आरक्षण पूरी तरह लागू होगा। तब तक, हजारों उम्मीदवारों का भविष्य 13% होल्ड सीटों के साथ अधर में लटका हुआ है। OBC Reservation Crisis in Madhya Pradesh
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मैं इंदर सिंह चौधरी वर्ष 2005 से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय हूं। मैंने मास कम्यूनिकेशन में स्नातकोत्तर (M.A.) किया है। वर्ष 2007 से 2012 तक मैं दैनिक भास्कर, उज्जैन में कार्यरत रहा, जहाँ पत्रकारिता के विभिन्न पहलुओं का व्यावहारिक अनुभव प्राप्त किया।
वर्ष 2013 से 2023 तक मैंने अपना मीडिया हाउस ‘Hi Media’ संचालित किया, जो उज्जैन में एक विश्वसनीय नाम बना। डिजिटल पत्रकारिता के युग में, मैंने सितंबर 2023 में पुनः दैनिक भास्कर से जुड़ते हुए साथ ही https://mpnewsbrief.com/ नाम से एक न्यूज़ पोर्टल शुरू किया है। इस पोर्टल के माध्यम से मैं करेंट अफेयर्स, स्वास्थ्य, ज्योतिष, कृषि और धर्म जैसे विषयों पर सामग्री प्रकाशित करता हूं। फ़िलहाल मैं अकेले ही इस पोर्टल का संचालन कर रहा हूं, इसलिए सामग्री सीमित हो सकती है, लेकिन गुणवत्ता से कोई समझौता नहीं होता।