एक देश एक चुनाव: मोदी कैबिनेट की मंजूरी
One Nation One Election | हाल ही में, केंद्रीय कैबिनेट ने ‘एक देश-एक चुनाव’ के प्रस्ताव को मंजूरी दी है। इस निर्णय ने भारत में राजनीतिक और लोकतांत्रिक प्रक्रिया को लेकर व्यापक बहस छेड़ दी है। यह प्रस्ताव अगले हफ्ते संसद में पेश किया जा सकता है। सरकार इस पर सभी राजनीतिक दलों के साथ आम सहमति बनाना चाहती है, इसलिए इसे चर्चा के लिए जॉइंट पार्लियामेंट्री कमेटी (JPC) के पास भेजा जाएगा। इस प्रस्ताव का उद्देश्य भारत में चुनाव प्रक्रिया को अधिक संगठित, सस्ता और प्रभावी बनाना है। आइए इस विषय को विस्तार से समझें।
वन नेशन-वन इलेक्शन: प्रस्ताव और प्रक्रिया
वन नेशन-वन इलेक्शन का मुख्य उद्देश्य देशभर में लोकसभा और विधानसभा चुनावों को एक साथ कराना है। वर्तमान में, भारत में लोकसभा और विधानसभा चुनाव अलग-अलग समय पर होते हैं, जिससे प्रशासनिक संसाधनों, जनशक्ति और धन का बड़ा हिस्सा खर्च होता है।
कैबिनेट की बैठक में केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने घोषणा की थी कि पहले चरण में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एकसाथ कराए जाएंगे। इसके बाद, 100 दिनों के भीतर स्थानीय निकाय चुनाव भी संपन्न होंगे। यदि यह प्रस्ताव पारित होता है, तो 2029 तक देश में ‘एक देश-एक चुनाव’ का ढांचा लागू हो जाएगा।
वन नेशन-वन इलेक्शन के मुख्य बिंदु
कोविंद पैनल की रिपोर्ट के अनुसार, इस योजना को लागू करने के लिए कई अहम कदम उठाने होंगे:
- राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल घटाना या बढ़ाना: कई राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल कम करना होगा। वहीं, जिन राज्यों में चुनाव हाल ही में हुए हैं, उनका कार्यकाल बढ़ाया जा सकता है।
- दिसंबर 2026 तक 25 राज्यों में विधानसभा चुनाव: यह कदम 2029 से लोकसभा और विधानसभा चुनावों को एक साथ कराने में सहायक होगा।
- चुनाव आयोग की भूमिका: एक सिंगल वोटर लिस्ट और वोटर आईडी कार्ड तैयार किए जाएंगे।
- हंग असेंबली की स्थिति: यदि किसी विधानसभा में पूर्ण बहुमत न मिले या अविश्वास प्रस्ताव पास हो, तो वहां नए चुनाव कराए जाएंगे।
- सुरक्षा और उपकरण: चुनाव के दौरान जनशक्ति, उपकरण और सुरक्षा बलों की एडवांस प्लानिंग की जाएगी।
इतिहास: एक साथ चुनावों की परंपरा
आजादी के बाद 1952, 1957, 1962 और 1967 में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ हुए थे। लेकिन 1968 और 1969 में कई विधानसभाएं समय से पहले भंग कर दी गईं। इसके बाद 1970 में लोकसभा भी भंग हो गई, जिससे ‘एक देश-एक चुनाव’ की परंपरा टूट गई।
वन नेशन-वन इलेक्शन की आवश्यकता क्यों?
- 1. समय और संसाधनों की बचत:
- बार-बार चुनाव कराने से प्रशासनिक तंत्र पर भारी दबाव पड़ता है। सुरक्षा बलों, शिक्षकों और सरकारी कर्मचारियों को बार-बार चुनाव ड्यूटी पर लगाया जाता है, जिससे उनकी नियमित जिम्मेदारियों पर असर पड़ता है। एक साथ चुनाव होने से समय और संसाधनों की बचत होगी।
- 2. आर्थिक व्यय में कमी:
- हर चुनाव में भारी धनराशि खर्च होती है। अगर लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ कराए जाएं, तो यह खर्च काफी हद तक कम हो सकता है।
- 3. नीतिगत स्थिरता:
- बार-बार चुनावों के कारण सरकारें दीर्घकालिक योजनाएं लागू करने में हिचकिचाती हैं। एक साथ चुनाव होने से सरकारें पांच वर्षों तक बिना किसी रुकावट के योजनाएं लागू कर सकेंगी।
- 4. मतदाता की सुविधा:
- बार-बार चुनावों में भाग लेने के कारण मतदाता अक्सर थकान महसूस करते हैं। एक साथ चुनाव होने से मतदाता एक ही बार में अपने प्रतिनिधियों का चुनाव कर सकते हैं।
कोविंद पैनल की सिफारिशें
पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में गठित पैनल ने 14 मार्च 2024 को अपनी रिपोर्ट सौंपी। इसमें कुछ मुख्य सुझाव दिए गए:
- सभी राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल 2029 तक बढ़ाया जाए।
- लोकसभा और विधानसभा चुनाव पहले चरण में कराए जाएं।
- स्थानीय निकाय चुनाव दूसरे चरण में 100 दिनों के भीतर संपन्न हों।
- एकल वोटर लिस्ट और वोटर आईडी कार्ड का प्रावधान हो।
- उपकरणों, जनशक्ति और सुरक्षा बलों की एडवांस प्लानिंग की जाए।
चुनौतियां और आलोचनाएं
- 1. संवैधानिक बाधाएं:
- भारतीय संविधान में केंद्र और राज्यों के लिए अलग-अलग चुनाव की व्यवस्था है। इस प्रस्ताव को लागू करने के लिए कई संवैधानिक संशोधन करने होंगे।
- 2. राज्यों का विरोध:
- कई राज्य सरकारें इसे अपने अधिकारों का हनन मानती हैं। उनका कहना है कि यह संघीय ढांचे के खिलाफ है।
- 3. हंग असेंबली की स्थिति:
- यदि किसी विधानसभा में बहुमत न मिले या सरकार गिर जाए, तो दोबारा चुनाव कराने में समस्या हो सकती है।
- 4. राजनीतिक दलों की सहमति:
- यह प्रस्ताव तभी सफल होगा जब सभी राजनीतिक दल इसके पक्ष में सहमत होंगे।
अंतरराष्ट्रीय अनुभव
दुनिया के कई देशों में एक साथ चुनाव कराने की परंपरा है। उदाहरण के लिए, अमेरिका में राष्ट्रपति और कांग्रेस के चुनाव एक साथ होते हैं। इससे चुनाव प्रक्रिया सुचारु और कम खर्चीली बनती है। भारत भी इस मॉडल को अपनाकर चुनाव प्रक्रिया को अधिक संगठित बना सकता है।
वन नेशन-वन इलेक्शन एक महत्वाकांक्षी और दूरदर्शी कदम है। इसके लागू होने से चुनाव प्रक्रिया में पारदर्शिता, संसाधनों की बचत और नीतिगत स्थिरता आएगी। हालांकि, इसे लागू करने में संवैधानिक और प्रशासनिक बाधाएं होंगी, जिन्हें पार करना जरूरी है। सरकार को चाहिए कि वह सभी पक्षों की राय लेकर इस प्रस्ताव को आगे बढ़ाए।
यह न केवल भारत की लोकतांत्रिक प्रक्रिया को मजबूत करेगा, बल्कि जनता के विश्वास को भी बढ़ाएगा। यदि यह प्रस्ताव सफलतापूर्वक लागू होता है, तो यह भारतीय राजनीति में एक नई दिशा और मजबूती प्रदान करेगा।
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