मॉनसून सत्र : ₹200 करोड़ की बर्बादी? विपक्ष का हंगामा और ‘ऑपरेशन सिंदूर’ की चर्चा में उलझा संसद
Parliament Monsoon Session Analysis | 21 जुलाई 2025 को शुरू हुआ संसद का मॉनसून सत्र पहले ही दिन हंगामे की भेंट चढ़ गया। 32 दिनों तक चलने वाले इस सत्र में 21 कार्यकारी दिन होंगे, जिसमें संसद के दोनों सदनों को 126 घंटे काम करना है। लेकिन विपक्ष के लगातार व्यवधानों के कारण पहले दिन की कार्यवाही ठप हो गई। लोकसभा में प्रश्न काल के दौरान हंगामा हुआ, जिसके चलते कार्यवाही पहले 12 बजे तक और फिर 2 बजे तक स्थगित कर दी गई। यह सत्र जनता के टैक्स के पैसे से चलता है, और अनुमान है कि इस बार ₹200 करोड़ से अधिक खर्च होगा। #ParliamentDisruption जैसे हैशटैग सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं, जो इस मुद्दे की गंभीरता को दर्शाते हैं। Parliament Monsoon Session Analysis
संसद सत्र का आर्थिक बोझ
लोकसभा के पूर्व महासचिव PDT आचार्य के अनुसार, संसद का एक मिनट चलाने में ₹2.5 लाख का खर्च आता है। इस हिसाब से, 21 दिनों के सत्र में 126 घंटे यानी 7560 मिनट की कार्यवाही पर कुल ₹189 करोड़ खर्च होंगे। यह राशि सांसदों की तनख्वाह, बिजली-पानी के बिल, और अन्य प्रशासनिक खर्चों को मिलाकर बनती है। इसके अतिरिक्त, प्रत्येक सांसद को प्रति दिन ₹2500 का भत्ता भी मिलता है, जो इस खर्च को और बढ़ाता है।
हालांकि, यह राशि अब और बढ़ चुकी होगी, क्योंकि पिछले कुछ वर्षों में मुद्रास्फीति और प्रशासनिक खर्चों में वृद्धि हुई है। अगर हम अनुमानित ₹3 लाख प्रति मिनट भी मानें, तो यह खर्च ₹227 करोड़ तक जा सकता है। ऐसे में, अगर संसद की कार्यवाही बार-बार रुकी, तो यह जनता के पैसे की भारी बर्बादी होगी। Parliament Monsoon Session Analysis
विपक्ष का हंगामा: क्या है इस बार का मुद्दा?
इस मॉनसून सत्र में विपक्ष ने कई मुद्दों को लेकर हंगामा शुरू किया। बिहार में चुनाव आयोग की पुनरीक्षण प्रक्रिया, ‘ऑपरेशन सिंदूर’, और हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बयान को लेकर विपक्ष सरकार पर हमलावर है। सरकार ने सर्वदलीय बैठक में स्पष्ट किया था कि वह इन सभी मुद्दों पर चर्चा के लिए तैयार है। इसके बावजूद, पहले दिन की कार्यवाही पूरी तरह बाधित रही।
विपक्ष की मांग थी कि बिहार में मतदाता सूची के पुनरीक्षण और हाल के एअर इंडिया हादसे पर भी चर्चा हो। सरकार ने इन मांगों को मान लिया था, लेकिन विपक्ष ने तख्तियां लहराकर और नारेबाजी करके कार्यवाही को रोक दिया। यह रवैया न केवल संसद के समय को बर्बाद करता है, बल्कि जनता के महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा को भी प्रभावित करता है।
पहले भी बर्बाद हुए हैं सत्र
यह कोई नई बात नहीं है कि संसद सत्र शुरू होने से पहले ही विवादों में घिर जाता है। विपक्ष ने पहले भी कई बार आधारहीन मुद्दों को उठाकर संसद को ठप किया है। कुछ उदाहरण:
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2023 बजट सत्र: विपक्ष ने अडानी समूह के खिलाफ हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट को मुद्दा बनाया और पूरा सत्र हंगामे की भेंट चढ़ गया।
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2023 शीत सत्र: BBC की एक प्रोपेगेंडा डाक्यूमेंट्री और एप्पल फोन नोटिफिकेशन को लेकर विवाद खड़ा किया गया। हालांकि, एप्पल की सफाई के बाद यह मुद्दा ठंडा पड़ गया।
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2021 मॉनसून सत्र: पेगासस स्नूपिंग के आरोपों ने संसद को हंगामे की भेंट चढ़ा दिया। बाद में यह आरोप झूठे साबित हुए, लेकिन जनता का पैसा बर्बाद हो गया।
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2021 राफेल विवाद: राहुल गांधी ने राफेल विमान खरीद में कथित घोटाले का मुद्दा उठाया, जो सुप्रीम कोर्ट में भी टिक नहीं पाया।
इन सभी मामलों में, संसद का कीमती समय तख्तियों, नारेबाजी, और डेडलॉक में बर्बाद हुआ। इससे न केवल जनता का पैसा बर्बाद हुआ, बल्कि नए कानूनों, नीतियों, और जनता के सवालों पर चर्चा भी प्रभावित हुई।
क्यों चिंताजनक है यह प्रवृत्ति?
संसद को सुचारू रूप से चलाना पक्ष और विपक्ष दोनों की साझा जिम्मेदारी है। लेकिन हाल के वर्षों में संसद के कामकाज में कमी आई है। एक रिपोर्ट के अनुसार:
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पहली लोकसभा (1952-57): साल में औसतन 135 दिन बैठी।
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17वीं लोकसभा (2019-24): साल में केवल 55 दिन बैठी।
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हंगामे का प्रभाव: 17वीं लोकसभा का लगभग 50% समय हंगामे और व्यवधानों में बर्बाद हुआ।
यह प्रवृत्ति इसलिए चिंताजनक है, क्योंकि इससे न केवल जनता का पैसा बर्बाद होता है, बल्कि महत्वपूर्ण विधेयकों, नीतियों, और जनता के मुद्दों पर चर्चा रुक जाती है। संसद का कम चलना व्यवस्था के अन्य हिस्सों, जैसे नौकरशाही और गैर-निर्वाचित संस्थानों, को अधिक प्रभावशाली बनाता है, जो लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं है।
जनता का विश्वास और समाधान
विपक्ष को संसद में हंगामे की बजाय तथ्यों और सबूतों के आधार पर सरकार से सवाल करना चाहिए। संसद में रचनात्मकचर्चा न केवल जनता का विश्वास बढ़ाएगी, बल्कि लोकतंत्र को भी मजबूत करेगी। कुछ संभावित समाधान:
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सर्वदलीय सहमति: सत्र शुरू होने से पहले सभी दलों को प्रमुख मुद्दों पर सहमति बनानी चाहिए।
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नियमों का सख्ती से पालन: हंगामा करने वालों पर स्पीकर को सख्त कार्रवाई करनी चाहिए।
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जनता को जागरूक करना: सोशल मीडिया पर #ParliamentDisruption जैसे ट्रेंड्स के जरिए जनता को संसद की बर्बादी के नुकसान के बारे में बताया जा सकता है।
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वैकल्पिक मंच: विपक्ष को संसद के बाहर प्रेस कॉन्फ्रेंस और सोशल मीडिया के जरिए अपनी बात रखने की रणनीति अपनानी चाहिए।
मॉनसून सत्र 2025 की शुरुआतनिराशाजनक रही है। ₹200 करोड़ से अधिक का खर्च और जनता के टैक्स के पैसे की बर्बादी का खतरामंडरा रहा है। विपक्ष को हंगामे की बजाय रचनात्मक चर्चा पर ध्यान देना चाहिए, ताकि संसद का समय और पैसा जनता के हित में उपयोग हो।इसमुद्दे पर जनता की नाराजगी को दर्शाते हैं। क्या इस बार संसद अपनी जिम्मेदारी निभा पाएगी, या फिर यह सत्र भी हंगामे की भेंट चढ़ जाएगा? यह सवाल हर भारतीय के मन में है। Parliament Monsoon Session Analysis
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मैं इंदर सिंह चौधरी वर्ष 2005 से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय हूं। मैंने मास कम्यूनिकेशन में स्नातकोत्तर (M.A.) किया है। वर्ष 2007 से 2012 तक मैं दैनिक भास्कर, उज्जैन में कार्यरत रहा, जहाँ पत्रकारिता के विभिन्न पहलुओं का व्यावहारिक अनुभव प्राप्त किया।
वर्ष 2013 से 2023 तक मैंने अपना मीडिया हाउस ‘Hi Media’ संचालित किया, जो उज्जैन में एक विश्वसनीय नाम बना। डिजिटल पत्रकारिता के युग में, मैंने सितंबर 2023 में पुनः दैनिक भास्कर से जुड़ते हुए साथ ही https://mpnewsbrief.com/ नाम से एक न्यूज़ पोर्टल शुरू किया है। इस पोर्टल के माध्यम से मैं करेंट अफेयर्स, स्वास्थ्य, ज्योतिष, कृषि और धर्म जैसे विषयों पर सामग्री प्रकाशित करता हूं। फ़िलहाल मैं अकेले ही इस पोर्टल का संचालन कर रहा हूं, इसलिए सामग्री सीमित हो सकती है, लेकिन गुणवत्ता से कोई समझौता नहीं होता।