अब रेलवे स्टेशनों पर फेशियल रिकॉग्निशन तकनीक: सुरक्षा बढ़ाने के साथ गोपनीयता की चिंता, जानें फायदे और नुकसान
Railway stations facial recognition security privacy pros cons | भारतीय रेलवे ने देश के सात सबसे व्यस्त रेलवे स्टेशनों—नई दिल्ली, मुंबई सेंट्रल, चेन्नई सेंट्रल, हावड़ा, सिकंदराबाद, दानापुर, और छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस (CST)—पर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) आधारित फेशियल रिकॉग्निशन तकनीक (FRT) लागू की है। यह कदम रेलवे स्टेशनों को ‘स्मार्ट स्टेशन’ बनाने और सुरक्षा व यात्री अनुभव को बेहतर करने की दिशा में उठाया गया है। यह तकनीक विश्व के 100 से अधिक देशों में हवाई अड्डों, सार्वजनिक परिवहन, और निगरानी प्रणालियों में पहले से उपयोग हो रही है। भारत में भी डिजी यात्रा पहल के तहत हवाई अड्डों पर इसका उपयोग हो रहा है। हालांकि, यह तकनीक जहां एक ओर सुरक्षा बढ़ाने और अपराध नियंत्रण में मददगार है, वहीं गोपनीयता और डेटा सुरक्षा को लेकर चिंताएं भी पैदा कर रही है। आइए, इस तकनीक, इसके फायदों, नुकसानों, और भारत में इसके उपयोग के बारे में विस्तार से जानते हैं। Railway stations facial recognition security privacy pros cons
फेशियल रिकॉग्निशन तकनीक (FRT) क्या है?
फेशियल रिकॉग्निशन तकनीक एक बायोमेट्रिक प्रणाली है, जो चेहरे की विशेषताओं—जैसे आंखों, नाक, मुंह, और चेहरे की संरचना—का विश्लेषण करके किसी व्यक्ति की पहचान करती है। यह तकनीक डिजिटल छवियों या वीडियो फ्रेम को स्कैन करती है और AI व मशीन लर्निंग एल्गोरिदम के माध्यम से डेटाबेस में मौजूद जानकारी से मिलान करती है। यह प्रणाली रीयल-टाइम में चेहरों को पहचान सकती है, जो इसे सुरक्षा, निगरानी, और पहचान सत्यापन के लिए प्रभावी बनाती है। कॉम्पैरटेक की 2024 की रिपोर्ट के अनुसार, विश्व के 40% देशों में कार्यस्थलों और 24% देशों में सार्वजनिक परिवहन, जैसे बसों और ट्रेनों, में FRT का उपयोग हो रहा है। Railway stations facial recognition security privacy pros cons
भारत में रेलवे स्टेशनों पर FRT क्यों लागू की जा रही है?
भारतीय रेलवे ने सात प्रमुख स्टेशनों पर FRT लागू करने का फैसला सुरक्षा बढ़ाने, अपराध नियंत्रण, और यात्री सुविधाओं को बेहतर बनाने के लिए किया है। ये स्टेशन देश के सबसे व्यस्त और भीड़भाड़ वाले स्टेशन हैं, जहां रोजाना लाखों यात्री आते-जाते हैं। उदाहरण के लिए, नई दिल्ली रेलवे स्टेशन प्रतिदिन 5 लाख से अधिक यात्रियों को संभालता है, और मुंबई का CST 3 मिलियन से अधिक।
मुख्य उद्देश्य:
- सुरक्षा बढ़ाना: रेलवे स्टेशन चोरी, आतंकवादी गतिविधियों, और मानव तस्करी जैसे अपराधों के लिए संवेदनशील होते हैं। FRT संदिग्ध व्यक्तियों और अपराधी डेटाबेस में दर्ज लोगों की तुरंत पहचान कर सकती है।
- टिकट चेकिंग और बोर्डिंग में तेजी: FRT का उपयोग टिकट चेकिंग और पहचान सत्यापन को तेज करने के लिए किया जा सकता है, जिससे यात्रियों को लंबी कतारों से बचाया जा सकता है।
- भीड़ प्रबंधन: यह तकनीक यात्री प्रवाह को ट्रैक करने और स्टेशन प्रबंधन को बेहतर बनाने में मदद करती है।
- महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा: सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि FRT का उपयोग विशेष रूप से महिलाओं के खिलाफ अपराधों पर अंकुश लगाने और लापता बच्चों की खोज में किया जाएगा।
भारतीय रेलवे ने इस तकनीक को निरभया फंड के तहत लागू किया है, जिसका उद्देश्य महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करना है। Railway stations facial recognition security privacy pros cons
FRT के फायदे
फेशियल रिकॉग्निशन तकनीक रेलवे स्टेशनों पर कई तरह से लाभकारी हो सकती है:
- तेज और सटीक पहचान: यह तकनीक अपराधियों, वांछित व्यक्तियों, या संदिग्धों को तुरंत पहचान सकती है, जिससे रीयल-टाइम में कार्रवाई संभव होती है। उदाहरण के लिए, दिल्ली पुलिस ने 2019 में FRT की मदद से लगभग 3,000 लापता बच्चों की पहचान की थी।
- यात्री सुविधा: टिकट चेकिंग और बोर्डिंग प्रक्रिया को तेज करके यह तकनीक यात्रियों के समय की बचत करती है। यह डिजी यात्रा जैसे हवाई अड्डों पर पहले से लागू है, जहां यात्री बिना कागजी टिकट के बोर्डिंग कर सकते हैं।
- अपराध नियंत्रण: संदिग्ध गतिविधियों को शुरुआती चरण में पहचानकर चोरी, आतंकवाद, और मानव तस्करी जैसे अपराधों को रोका जा सकता है।
- भीड़ प्रबंधन और स्टेशन प्रबंधन: FRT यात्री प्रवाह को मॉनिटर करने में मदद करती है, जिससे स्टेशन पर भीड़ को नियंत्रित करने और संसाधनों के बेहतर उपयोग की योजना बनाई जा सकती है।
- लापता व्यक्तियों की खोज: यह तकनीक लापता बच्चों और व्यक्तियों को खोजने में प्रभावी है, जैसा कि चेन्नई और नेपाल में इसके उपयोग से देखा गया है।
FRT के नुकसान और चिंताएं
हालांकि FRT के कई फायदे हैं, लेकिन इसके नुकसान और गोपनीयता से जुड़ी चिंताएं भी कम नहीं हैं:
- गोपनीयता का उल्लंघन: FRT यात्रियों की निजी जानकारी, जैसे चेहरों की डिजिटल छवियां, संग्रहित करती है। भारत में डेटा संरक्षण कानून की अनुपस्थिति में, इस डेटा के दुरुपयोग की आशंका बनी रहती है। डिजिटल राइट्स कैंपेनर्स ने इसे गोपनीयता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन बताया है।
- गलत पहचान: यह तकनीक 100% सटीक नहीं है। खराब रोशनी, चेहरे पर मेकअप, मास्क, या तकनीकी त्रुटियों के कारण निर्दोष लोगों की गलत पहचान हो सकती है। उदाहरण के लिए, दिल्ली पुलिस द्वारा FRT का उपयोग लापता बच्चों की खोज में केवल 1% सफल रहा और यह लिंग भेद करने में भी असमर्थ था।
- डेटा हैकिंग का जोखिम: डेटाबेस में संग्रहित चेहरों की जानकारी अगर हैक हो जाए या गलत हाथों में पड़ जाए, तो यह गंभीर गोपनीयता उल्लंघन का कारण बन सकता है।
- उच्च लागत: FRT सिस्टम को लागू करने और मेंटेन करने की लागत बहुत अधिक है, जो अंततः करदाताओं पर बोझ डाल सकती है।
- जातीय और नस्लीय पक्षपात: वैश्विक स्तर पर FRT में जातीय और नस्लीय पक्षपात की समस्याएं देखी गई हैं, जिसके कारण कुछ समुदायों को अनुचित रूप से निशाना बनाया जा सकता है।
- नैतिक और कानूनी मुद्दे: भारत में मजबूत डेटा संरक्षण कानून की कमी के कारण, FRT का उपयोग नैतिक और कानूनी सवाल उठाता है। उदाहरण के लिए, 2020 में किसान आंदोलन के दौरान FRT का उपयोग कर 1,000 से अधिक किसानों को गिरफ्तार किया गया, जिसे मानवाधिकार संगठनों ने आलोचना की। Railway stations facial recognition security privacy pros cons
क्या आधार डेटाबेस का उपयोग होगा?
भारत का आधार डेटाबेस, जिसमें 1.3 अरब से अधिक नागरिकों की तस्वीरें, उंगलियों के निशान, और आंखों की पुतलियों का डेटा शामिल है, FRT के लिए एक शक्तिशाली संसाधन हो सकता है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) ने ऑटोमेटेड फेशियल रिकॉग्निशन सिस्टम (AFRS) लागू करने की योजना बनाई है, जो आधार डेटा के साथ मिलान करके अपराधियों और लापता व्यक्तियों की पहचान कर सकता है।
हालांकि, आधार अधिनियम, 2016 के तहत, आधार डेटा का उपयोग केवल सरकारी योजनाओं के प्रमाणीकरण के लिए किया जा सकता है, न कि सामान्य निगरानी के लिए। यूनीक आइडेंटिफिकेशन अथॉरिटी ऑफ इंडिया (UIDAI) ने स्पष्ट किया है कि FRT के लिए आधार डेटा का उपयोग विशेष अनुमति और कानूनी प्रक्रिया के बिना नहीं हो सकता। फिर भी, दिल्ली पुलिस और अन्य राज्य पुलिस बलों ने सीमित दायरे में आधार डेटा के साथ FRT का उपयोग किया है, खासकर लापता बच्चों की खोज में। Railway stations facial recognition security privacy pros cons
भारत में FRT का उपयोग कहां-कहां हो रहा है?
भारत में FRT का उपयोग विभिन्न क्षेत्रों में बढ़ रहा है:
- हवाई अड्डे: दिल्ली, बेंगलुरु, और हैदराबाद जैसे हवाई अड्डों पर डिजी यात्रा पहल के तहत FRT का उपयोग यात्री पहचान और बोर्डिंग को तेज करने के लिए हो रहा है। यह यात्रियों को बिना कागजी टिकट के प्रवेश और बोर्डिंग की सुविधा देता है।
- पुलिस निगरानी: दिल्ली और चेन्नई पुलिस ने FRT का उपयोग लापता बच्चों, अपराधियों, और संदिग्धों की पहचान के लिए शुरू किया है। 2019 में दिल्ली पुलिस ने FRT के जरिए 3,000 लापता बच्चों को खोजा।
- सार्वजनिक स्थान: दिल्ली और चेन्नई में ट्रैफिक सिग्नल, शॉपिंग मॉल, और अन्य सार्वजनिक स्थानों पर FRT का उपयोग निगरानी के लिए हो रहा है।
- शैक्षिक संस्थान: कुछ स्कूलों और कॉलेजों में FRT का उपयोग अटेंडेंस ट्रैक करने और गैरहाजिर छात्रों की पहचान के लिए किया जा रहा है।
- बैंकिंग: कुछ बैंकों ने ग्राहक सत्यापन और सुरक्षा के लिए FRT का उपयोग शुरू किया है।
चीन में FRT का व्यापक उपयोग
चीन FRT का उपयोग बड़े पैमाने पर कर रहा है और इसे निगरानी का एक शक्तिशाली उपकरण बना चुका है। 2018 तक चीन में 170 मिलियन सीसीटीवी कैमरे थे, और 2020 तक इसे बढ़ाकर 400 मिलियन करने की योजना थी।
- शार्प आइज़ परियोजना: यह एक राष्ट्रीय निगरानी नेटवर्क है, जो चौराहों, सड़कों, शॉपिंग मॉल, और सार्वजनिक स्थानों पर FRT-सक्षम कैमरों का उपयोग करता है। यह ट्रैफिक नियम उल्लंघन, संदिग्ध गतिविधियों, और सामाजिक व्यवहार को ट्रैक करता है।
- रेलवे और हवाई अड्डे: बीजिंग और वुहान जैसे शहरों में रेलवे स्टेशनों पर FRT का उपयोग टिकट चेकिंग और सुरक्षा के लिए 2010 के दशक से हो रहा है। यात्री अपनी आईडी और चेहरे के स्कैन से प्लेटफॉर्म तक पहुंच सकते हैं।
- अन्य क्षेत्र: FRT का उपयोग बैंकों, होटलों, और यहां तक कि सार्वजनिक शौचालयों में भी हो रहा है, ताकि नागरिकों की गतिविधियों पर नजर रखी जा सके।
चीन की यह व्यापक निगरानी प्रणाली गोपनीयता के उल्लंघन और नागरिक स्वतंत्रता पर अंकुश के लिए आलोचना का विषय रही है।
कानूनी और नैतिक पहलू
भारत में FRT का उपयोग कई कानूनी और नैतिक सवाल उठाता है:
- आधार अधिनियम, 2016: आधार डेटा का उपयोग सामान्य निगरानी के लिए नहीं किया जा सकता। FRT के लिए इसका उपयोग करने के लिए विशेष अनुमति और पारदर्शी प्रक्रिया की जरूरत है।
- सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000: यह गोपनीयता उल्लंघन के लिए सजा का प्रावधान करता है, लेकिन मजबूत डेटा संरक्षण कानून की कमी FRT के दुरुपयोग को रोकने में बाधा है।
- मानवाधिकार: डिजिटल राइट्स संगठनों का कहना है कि FRT गोपनीयता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है और बिना उचित नियमन के इसका उपयोग खतरनाक हो सकता है।
भारत के सात प्रमुख रेलवे स्टेशनों पर फेशियलरिकॉग्निशन तकनीक का लागू होना सुरक्षा और यात्रीसुविधाओं को बेहतरबनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह तकनीक अपराध नियंत्रण, लापता व्यक्तियों की खोज, और स्टेशन प्रबंधन में मददगार है। हालांकिगोपनीयता उल्लंघन, गलतपहचान, और डेटा सुरक्षा जैसे जोखिम इसे विवादास्पद बनाते हैं। सरकार को मजबूत डेटा संरक्षण कानून और पारदर्शी नीतियां लागू करने की जरूरत है, ताकि FRT के फायदों का उपयोग हो औरनुकसानों को कम किया जा सके। यात्रियों को भी इसतकनीक के बारे में जागरूक रहना चाहिए और अपनीगोपनीयता की रक्षा के लिए सतर्क रहना चाहिए। Railway stations facial recognition security privacy pros cons
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मैं इंदर सिंह चौधरी वर्ष 2005 से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय हूं। मैंने मास कम्यूनिकेशन में स्नातकोत्तर (M.A.) किया है। वर्ष 2007 से 2012 तक मैं दैनिक भास्कर, उज्जैन में कार्यरत रहा, जहाँ पत्रकारिता के विभिन्न पहलुओं का व्यावहारिक अनुभव प्राप्त किया।
वर्ष 2013 से 2023 तक मैंने अपना मीडिया हाउस ‘Hi Media’ संचालित किया, जो उज्जैन में एक विश्वसनीय नाम बना। डिजिटल पत्रकारिता के युग में, मैंने सितंबर 2023 में पुनः दैनिक भास्कर से जुड़ते हुए साथ ही https://mpnewsbrief.com/ नाम से एक न्यूज़ पोर्टल शुरू किया है। इस पोर्टल के माध्यम से मैं करेंट अफेयर्स, स्वास्थ्य, ज्योतिष, कृषि और धर्म जैसे विषयों पर सामग्री प्रकाशित करता हूं। फ़िलहाल मैं अकेले ही इस पोर्टल का संचालन कर रहा हूं, इसलिए सामग्री सीमित हो सकती है, लेकिन गुणवत्ता से कोई समझौता नहीं होता।