ऐसे में, यह जानना दिलचस्प है कि भारत में रेपो रेट की शुरुआत कब हुई, किस वर्ष ब्याज दरें सबसे अधिक रहीं और कब सबसे निचले स्तर पर पहुंचीं।
रेपो रेट की शुरुआत कब हुई? (Repo Rate History In India)
रेपो रेट की अवधारणा भारत में 1992 में पेश की गई थी। उस समय, डॉ. मनमोहन सिंह देश के वित्त मंत्री थे और भारतीय अर्थव्यवस्था एक महत्वपूर्ण सुधार के दौर से गुजर रही थी। वित्तीय नियमों को उदार बनाने और बाजार के अनुकूल बनाने के प्रयासों के तहत, RBI ने रेपो रेट जैसे नए उपकरणों को अपनाया।
हालांकि, भारतीय रिजर्व बैंक ने अपनी मौद्रिक नीति में रेपो रेट का नियमित रूप से उपयोग वर्ष 2000 से शुरू किया। उस समय, प्रारंभिक रेपो रेट 6% निर्धारित की गई थी।
रेपो रेट का ऐतिहासिक सफर:
- 2000: RBI ने रेपो रेट का नियमित उपयोग शुरू किया, प्रारंभिक दर 6% थी।
- 2004: आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के उद्देश्य से रेपो रेट को घटाकर 4.5% कर दिया गया। यह दर लगभग 2006 तक स्थिर रही।
- 2006: बढ़ती मुद्रास्फीति के दबाव के कारण RBI ने रेपो रेट को बढ़ाकर 7.75% कर दिया, जो 2008 तक अपरिवर्तित रही। बाद में इसे घटाकर 6.5% किया गया।
- 2008: वैश्विक वित्तीय संकट के प्रभाव को देखते हुए, RBI ने घरेलू अर्थव्यवस्था को सहारा देने के लिए रेपो रेट में कटौती की शुरुआत की।
- 2013: मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के प्रयास में RBI ने रेपो रेट को बढ़ाकर 8% कर दिया, और यह दर 2015 तक बनी रही।
- 2015: देश की आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए, RBI ने रेपो रेट को घटाकर 7.25% कर दिया। आने वाले वर्षों में इस दर में धीरे-धीरे और कटौती की गई।
- 2016: रेपो रेट को और कम करके 6.5% किया गया।
- 2017: आर्थिक विकास को गति देने और ऋण को सस्ता बनाने के उद्देश्य से रेपो रेट को 6% तक घटा दिया गया।
- 2018: मुद्रास्फीति के बढ़ते संकेतों के कारण RBI ने रेपो रेट में मामूली वृद्धि की और इसे 6.25% कर दिया, जो 2019 तक स्थिर रही।
- 2020: कोविड-19 महामारी के कारण अर्थव्यवस्था में आई मंदी को देखते हुए, RBI ने त्वरित और बड़े नीतिगत फैसले लिए। मार्च 2020 में रेपो रेट को घटाकर 4.4% किया गया और मई 2020 में इसे और कम करके 4% कर दिया गया।
- अक्टूबर 2020: RBI ने रेपो रेट में एक और कटौती करते हुए इसे 3.35% के ऐतिहासिक निचले स्तर पर पहुंचा दिया।
- हालिया घटनाक्रम (अप्रैल 2025): RBI ने लगातार दूसरी बार रेपो रेट में कटौती की, इसे 6.25% से घटाकर 6.00% कर दिया गया है।
भारत में उच्चतम और निम्नतम रेपो दरें:
- सर्वाधिक रेपो रेट: 2013 से 2015 तक 8% रही।
- न्यूनतम रेपो रेट: अक्टूबर 2020 में 3.35% दर्ज की गई।
रेपो रेट में बदलाव का अर्थव्यवस्था पर प्रभाव:
जब RBI रेपो रेट घटाता है:
- बैंकों के लिए RBI से उधार लेना सस्ता हो जाता है।
- बैंक अपने ग्राहकों के लिए होम लोन, पर्सनल लोन, एजुकेशन लोन आदि पर ब्याज दरें कम करते हैं, जिससे EMI कम होती है।
- ऋण सस्ता होने से लोग अधिक उधार लेते हैं, जिससे बाजार में मांग बढ़ती है।
- उद्योग और व्यवसायों को सस्ता ऋण मिलता है, जिससे वे निवेश बढ़ाते हैं और रोजगार के अवसर पैदा होते हैं।
- हालांकि, बैंकों द्वारा बचत खातों और सावधि जमा (FD) पर दी जाने वाली ब्याज दरें भी कम हो जाती हैं।
- कुल मिलाकर, रेपो रेट में कटौती खर्च और निवेश को बढ़ावा देती है, जिससे GDP विकास को समर्थन मिलता है। यह कदम आमतौर पर मंदी से जूझ रही अर्थव्यवस्था को सहारा देने के लिए उठाया जाता है। RBI Repo Rate Cut 2025
जब RBI रेपो रेट बढ़ाता है:
- बैंकों के लिए RBI से उधार लेना महंगा हो जाता है।
- बैंक अपने ग्राहकों के लिए सभी प्रकार के ऋणों पर ब्याज दरें बढ़ाते हैं।
- ऋण महंगा होने से खर्च कम हो जाता है और मांग घटने लगती है, जिससे बाजार में वस्तुओं और सेवाओं की कीमतें स्थिर या कम हो सकती हैं।
- हालांकि, FD और बचत खातों पर मिलने वाली ब्याज दरें बढ़ जाती हैं।
- रेपो रेट बढ़ने का नकारात्मक प्रभाव शेयर बाजार पर भी पड़ सकता है, जिससे गिरावट देखी जा सकती है।
- इसके विपरीत, उच्च रेपो रेट विदेशी निवेशकों को भारत में निवेश करने के लिए आकर्षित कर सकता है, जिससे रुपया मजबूत हो सकता है। RBI आमतौर पर रेपो रेट तब बढ़ाता है जब उसे मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने की आवश्यकता महसूस होती है।
संक्षेप में, रेपो रेट भारतीय अर्थव्यवस्था को संतुलित करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। RBI समय-समय पर आर्थिक परिस्थितियों और मुद्रास्फीति के दबावों के आधार पर रेपो रेट में बदलाव करता रहता है, जिसका सीधा प्रभाव आम आदमी और देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ता है। RBI Repo Rate Cut 2025
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