सुसनेर नगर में सन् 1942 में लगी थी संघ की पहली शाखा,
सुसनेर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपनी स्थापना के 100 वर्ष पूर्ण कर रहा है। इसी कड़ी में यदि सुसनेर नगर के संघ के इतिहास की बात करें तो यह यात्रा बेहद प्रेरणादायी और समाजहित से ओत-प्रोत रही है। नगर में संघ की गतिविधियाँ कई दशकों से निरंतर संचालित हो रही हैं।
सुसनेर नगर में सन् 1942 में लगी थी संघ की पहली शाखा,
सुसनेर- बालचन्दजी विश्वकर्मा आगर में सुसनेर से सिलाई का काम करने गए थे। यहां पर वे बसंतीलालजी परमार एवं अन्य कार्यकर्ताओं के सम्पर्क में आए। धीरे-धीरे मित्रता बढ़ती गई और सुसनेर में शखा शुरू करने की योजना बनी। सन् 1942 में आगर से बसंतीलालजी परमार सुसनेर गए प्रचारक विष्णुपंत खाम्बेटे भौ साथ थे। बंकटलाल मास्टर साहब के घर तरुणों की बैठक हुई। उसी दिन सायं शिवबाग मेला मैदान पर शाखा प्रारंभ हुई। कुछ दिनों पश्चात् कचहरी भवन के मैदान की सफाई कर वहां शाखा प्रारंभ की। बाबा साहब मूल्ये के प्रचारक के नाते सुसनेर आने के पहले तक बसंतीलालजी एवं बालचंदजी विश्वकर्मा शाखा की चिंता करते थे। सुसनेर प्रवास उनको पैदल ही करना पड़ता था। यहां भागीरथ भट्ट रामगोपाल शर्मा, रामरतनजी सूरजमलजी जैन, औंकारलालजी जैन आदि शाखा के प्रारंभिक प्रमुख स्वयंसेवक थे।
संघ दृष्टि से मालवा का नागपुर कहा जाने वाला आगर मालवा जिला, राष्ट्रिय स्वयंसेवक संघ का गढ़ कहा जाता हैं,
आगर मालवा जिले में संघ, राष्ट्रिय स्वयंसेवक संघ की स्थापना के 15 वर्ष के भीतर हि संघ कार्य आगर पहुंच गया था। कई संघ के प्रचारक और निस्वार्थ संघ के स्वयंसेवकों के तप और तपस्या से खड़ा हुआ था संघ का काम इसलिए कहा जाता था मालवा का नागपुर संघ का गढ़ आगर जिला ।
जिला आगर मालवा में संघ 1938 में आगया था, 1938 में जिले में लगी थी, पहली शाखा ।
आगर में संघ शाखा विस्तार योजना के अंतर्गत श्री दिगम्बरराव तिजारे एवं भैयाजी कस्तूरे सन् 1938 में आगरआए थे। साधन एवं धन के अभाव के कारण उनको पैदल ही प्रवास पर आना पड़ा था। गणेशदत्तजी इन्द्र जो कांग्रेस के नेता थे उनसे सम्पर्क किया, संघ की जानकारी देकर शाखा प्रारंभ करने के लिए सहयोग हेतु, निवेदन किया। इंद्रजी ने कहा कहां बालू में से तेल निकालने का प्रयत्न कर रहे हो। इन्द्रजी द्वारा हतोत्साहित एवं निराश करने पर भी तिजारेजी ने हिम्मत नहीं हारी और दिनभर सम्पर्क कर शाम को रावले के मैदान में लगभग 125 नवयुवक एकत्र कर लिए और उनसे शाखा प्रारंभ कर दी। इंद्रजी को भी आमंत्रित किया। नवयुवकों का समूह और उत्साह देखकर वे भी आश्चर्यचकित और आनंदित हो गए। रामचंद्र पागे नाम के एक विद्यार्थी को शाखा चलाने की जिम्मेदारी सौंपी गई। शाखा को ध्वज नहीं दिया गया था। अतः हनुमानजी का चित्र रखकर उसे ही ध्वज का प्रतीक मानकर प्रणाम करते थे।
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