सऊदी अरब में भारत और पाकिस्तान के इतने नागरिकों को दी मौत की सजा

सऊदी अरब में भारत और पाकिस्तान के इतने नागरिकों को दी मौत की सजा

Saudi Arab mein India aur Pakistan ke nagrikon ko maut ki saza  | सऊदी अरब ने 2024 में फांसी की सजा देने के सारे पुराने रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। इस साल अब तक 274 लोगों को मौत की सजा दी जा चुकी है, जिनमें से 101 विदेशी नागरिक शामिल हैं। एमनेस्टी इंटरनेशनल, ह्यूमनराइट्स वॉच और अन्य मानवाधिकार संगठनों ने इस मामले पर गहरी चिंता जाहिर की है।

फांसी के बढ़ते आंकड़े

न्यूज एजेंसी एएफपी की रिपोर्ट के अनुसार, इस साल सऊदी अरब में मौत की सजा पाने वालों की संख्या 2022 और 2023 से तीन गुना है। 2022 और 2023 में जहां 34-34 विदेशी नागरिकों को मौत की सजा दी गई थी, वहीं 2024 में यह संख्या बढ़कर 101 तक पहुंच गई है।

एमनेस्टी इंटरनेशनल ने सितंबर में एक रिपोर्ट जारी कर बताया था कि सऊदी अरब में मौत की सजा देने के मामलों में पिछले तीन दशकों का रिकॉर्ड टूट चुका है। एजेंसी ने इसे “गंभीर मानवाधिकार उल्लंघन” की श्रेणी में रखा है और इसे रोकने की अपील की है।

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विदेशी नागरिकों की हिस्सेदारी

सऊदी अरब में मौत की सजा पाने वालों में बड़ी संख्या में विदेशी नागरिक शामिल हैं। इस साल फांसी की सजा पाने वाले विदेशी नागरिकों में पाकिस्तान के 21, यमन के 20, सीरिया के 14, नाइजीरिया के 10, मिस्र के 9, जॉर्डन के 8 और इथियोपिया के 7 नागरिक शामिल हैं। भारत, सूडान और अफगानिस्तान के भी तीन-तीन नागरिकों को मौत की सजा दी गई। इसके अलावा श्रीलंका, इरिट्रिया और फिलिपींस से एक-एक व्यक्ति शामिल है।

अपराधों की विविधता

सऊदी अरब में मौत की सजा विभिन्न अपराधों के लिए दी जाती है। इनमें हत्या, मादक पदार्थों की तस्करी, आतंकवाद और अन्य गंभीर अपराध शामिल हैं। हालांकि, कई मानवाधिकार संगठन दावा करते हैं कि इनमें से कुछ मामलों में सुनवाई प्रक्रिया में पारदर्शिता और निष्पक्षता का अभाव था।

पिछले रिकॉर्ड और सऊदी अरब की स्थिति

2024 से पहले, 2022 में सऊदी अरब ने 196 लोगों को मौत की सजा दी थी, जो उस समय का एक उच्चतम आंकड़ा था। इससे पहले, 1995 में 192 लोगों को फांसी की सजा दी गई थी।

हालांकि, 2024 के आंकड़े इन दोनों वर्षों से कहीं अधिक हैं, और यह सऊदी सरकार की न्यायिक प्रणाली पर सवाल खड़े करते हैं।

मानवाधिकार संगठनों की आलोचना

सऊदी अरब में मौत की सजा के बढ़ते आंकड़ों पर मानवाधिकार संगठन लगातार अपनी चिंता जाहिर कर रहे हैं।

ह्यूमनराइट्स वॉच ने अपने एक बयान में कहा कि “2024 के पहले नौ महीनों में ही 200 लोगों को मौत की सजा दी गई। यह न केवल न्यायिक प्रक्रिया की सख्ती को दिखाता है, बल्कि इस बात पर भी सवाल उठाता है कि क्या सऊदी अरब मानवाधिकारों का पालन कर रहा है।”

एमनेस्टी इंटरनेशनल ने सऊदी सरकार से फांसी की सजा पर तत्काल रोक लगाने की मांग की है। उनका कहना है कि इस बढ़ते चलन से मानवाधिकारों का गहरा उल्लंघन हो रहा है।

अन्य देश और सऊदी अरब की तुलना

सऊदी अरब मौत की सजा देने के मामले में विश्व में सबसे आगे है। इसके बाद ईरान और चीन का स्थान आता है।

एमनेस्टी इंटरनेशनल के आंकड़ों के अनुसार, 2024 में सऊदी अरब ने पिछले तीन दशकों का रिकॉर्ड तोड़ा है। हालांकि, ईरान और चीन में भी मौत की सजा के मामलों में कमी नहीं आई है।

सऊदी अरब की न्याय प्रणाली पर सवाल

सऊदी अरब की न्याय प्रणाली शरिया कानून पर आधारित है, जिसमें अपराधियों को कड़ी सजा देने का प्रावधान है। लेकिन कई मानवाधिकार संगठन आरोप लगाते हैं कि सुनवाई की प्रक्रिया में कई बार निष्पक्षता और पारदर्शिता का अभाव होता है।

सऊदी अरब सरकार का दावा है कि मौत की सजा से अपराधों को रोकने में मदद मिलती है। लेकिन मानवाधिकार संगठन कहते हैं कि यह तरीका न केवल अमानवीय है, बल्कि यह न्यायिक प्रणाली की खामियों को भी उजागर करता है।

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वैश्विक प्रतिक्रिया और समाधान की मांग

सऊदी अरब के इस रवैये पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आलोचना हो रही है। कई देशों ने सऊदी सरकार से मौत की सजा को रोकने और अपनी न्यायिक प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी बनाने की अपील की है।

मानवाधिकार संगठनों का मानना है कि सऊदी अरब को मौत की सजा के विकल्पों पर विचार करना चाहिए। वे इसे एक अनैतिक और अमानवीय प्रथा मानते हैं और चाहते हैं कि इसे खत्म किया जाए।

सऊदी अरब में मौत की सजा के मामलों में तेजी से वृद्धि ने एक बार फिर मानवाधिकार और न्याय के मुद्दे को केंद्र में ला दिया है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय और मानवाधिकार संगठन इसे रोकने की मांग कर रहे हैं।

सऊदी अरब को यह समझने की जरूरत है कि कड़ी सजा देने से अपराधों को हमेशा रोका नहीं जा सकता। इसके बजाय, एक अधिक समावेशी और निष्पक्ष न्याय प्रणाली स्थापित करना और मानवाधिकारों का सम्मान करना समय की जरूरत है।


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