नई दिल्ली। 78वें स्वतंत्रता दिवस (Independence Day) के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने लाल किले से 11वीं बार तिरंगा फहराया। अपने संबोधन में उन्होंने देश में सेक्युलर कोड (Secular Code) लागू करने की बात कही, जो कि उनके भाषण का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था। आइए जानते हैं, सेक्युलर कोड और कम्युनल कोड (Communal Code) क्या हैं और इनका समाज पर क्या प्रभाव हो सकता है।
#सेक्युलर कोड (Secular Code):
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस सेक्युलर कोड की बात की, वह एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें धर्म (Religion) और राज्य के मामलों को अलग रखा जाता है। इस कोड के तहत कानून और नीतियों का निर्धारण धर्म से परे, निष्पक्षता और समानता के आधार पर किया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि सभी नागरिकों को बिना किसी धार्मिक भेदभाव के समान अधिकार और अवसर प्राप्त हों। भारत के संविधान (Constitution) में भी इस तरह की धर्म-निरपेक्षता का उल्लेख मिलता है, जिसमें राज्य को सभी धर्मों के प्रति समान व्यवहार करने का निर्देश दिया गया है।
#कम्युनल कोड (Communal Code):इसके विपरीत, कम्युनल कोड एक ऐसी प्रणाली को संदर्भित करता है, जिसमें समाज में धर्म, जाति या संप्रदाय (Community) के आधार पर कानून और नीतियों का निर्माण होता है। यह कोड विशेष धार्मिक या जातीय समूहों के हितों को प्राथमिकता देता है, जिससे समाज में विभाजन और तनाव उत्पन्न हो सकता है। कम्युनल कोड का लक्ष्य किसी विशेष समुदाय की धार्मिक या सांस्कृतिक मान्यताओं को कानून में समाहित करना हो सकता है, जिससे अन्य समुदायों के साथ संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
प्रधानमंत्री मोदी के इस बयान ने एक बार फिर से देश में धर्म-निरपेक्षता और धर्म के आधार पर विभाजन के मुद्दों पर बहस छेड़ दी है। सेक्युलर कोड का समर्थन करने वाले इसे सभी नागरिकों के लिए समानता की दिशा में एक कदम मानते हैं, जबकि कम्युनल कोड का समर्थन करने वाले इसे अपने धार्मिक और सांस्कृतिक अधिकारों की सुरक्षा के रूप में देखते हैं।
इस स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री द्वारा उठाए गए इस मुद्दे ने समाज में गहरी सोच और चर्चा का अवसर प्रदान किया है। अब यह देखना होगा कि इस दिशा में सरकार क्या कदम उठाती है और देश में इसके क्या परिणाम होते हैं।