क्या आप भी छोटी मोटी बीमारी में मेडिकल से दवाईयां खरीद कर खाते हैं…तो…
Self-medication | भारत में स्वास्थ्य सुविधाओं की पहुंच और जागरूकता की कमी के कारण बड़ी संख्या में लोग स्व-चिकित्सा (Self-medication) का सहारा लेते हैं। इसमें खासतौर पर बिना डॉक्टर की सलाह के केमिस्ट से दवाइयां खरीदना शामिल है। बुखार जैसी सामान्य बीमारियों में पैरासिटामोल और ब्रूफेन जैसी दवाइयों का अत्यधिक उपयोग एक आम प्रथा बन गई है। पहले 100mg या 300mg की दवाइयां असरदार मानी जाती थीं, लेकिन आज 650mg या उससे अधिक की खुराक बाजार में आसानी से उपलब्ध है। सवाल यह उठता है कि ऐसा क्यों हो रहा है और क्या यह सही है या गलत।
दवाइयों का बढ़ता उपयोग और उसकी पृष्ठभूमि
1. पैरासिटामोल और उसकी भूमिका
पैरासिटामोल एक सामान्य एनाल्जेसिक और एंटीपायरेटिक दवा है, जो बुखार और हल्के दर्द को कम करने के लिए इस्तेमाल की जाती है। यह दवा 1950 के दशक में विकसित हुई और तब से विश्वभर में इसका उपयोग हो रहा है। शुरुआत में, 100mg या 300mg की खुराकें पर्याप्त मानी जाती थीं, लेकिन समय के साथ, लोगों की प्रतिरोधक क्षमता और दवा की प्रभावशीलता में बदलाव ने खुराक को बढ़ा दिया है। Self-medication
2. बढ़ती खुराक: 650mg का चलन
आज बाजार में 650mg की पैरासिटामोल गोलियां आम हो चुकी हैं। इसके पीछे कई कारण हैं:
- रोग प्रतिरोधकता का विकास: लंबे समय तक दवाओं के सेवन से रोगाणु इन दवाओं के प्रति प्रतिरोधी हो जाते हैं।
- तेज राहत की चाह: लोग तेजी से परिणाम चाहते हैं, इसलिए उच्च खुराक वाली दवाओं का उपयोग बढ़ा है।
- असुरक्षित स्व-चिकित्सा: बिना डॉक्टर की सलाह के लोग अपनी जरूरत से अधिक खुराक ले लेते हैं।
क्या उच्च खुराक सही है?
1. इसके फायदे
- तेज प्रभाव: उच्च खुराक तेजी से असर करती है, खासकर गंभीर बुखार और दर्द में।
- उपलब्धता: 650mg की गोलियां आसानी से उपलब्ध हैं और इनका उपयोग सस्ता और सरल है।
2. इसके नुकसान
- लिवर पर प्रभाव: पैरासिटामोल का अत्यधिक सेवन लिवर को नुकसान पहुंचा सकता है।
- दवा निर्भरता: लोग बार-बार उच्च खुराक का सेवन करने लगते हैं, जिससे उनकी प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होती है।
- साइड इफेक्ट्स: उल्टी, दस्त, सिरदर्द और पेट दर्द जैसे दुष्प्रभाव आम हो सकते हैं।
- अत्यधिक उपयोग का खतरा: लोग यह समझने में असफल होते हैं कि दवाइयों की अधिक खुराक जानलेवा हो सकती है।
स्व-चिकित्सा के पीछे के कारण
1. डॉक्टर की कमी
ग्रामीण क्षेत्रों में पर्याप्त डॉक्टर नहीं हैं, जिससे लोग मेडिकल स्टोर पर निर्भर हो जाते हैं।
2. चिकित्सा का खर्च
प्राइवेट डॉक्टर और अस्पताल महंगे होते हैं, जिससे लोग स्व-चिकित्सा को प्राथमिकता देते हैं।
3. विज्ञापन और ब्रांडिंग
दवाओं के विज्ञापन और फार्मास्युटिकल कंपनियों की ब्रांडिंग भी स्व-चिकित्सा को बढ़ावा देती है।
4. जागरूकता की कमी
लोग दवाओं के दुष्प्रभावों और सही उपयोग के प्रति जागरूक नहीं होते।
इस समस्या का समाधान कैसे हो सकता है?
1. जागरूकता अभियान
स्वास्थ्य विभाग और गैर-सरकारी संगठनों को लोगों को दवाओं के सुरक्षित उपयोग और स्व-चिकित्सा के खतरों के बारे में जागरूक करना चाहिए।
2. डॉक्टर की उपलब्धता बढ़ाना
सरकार को ग्रामीण और दूरदराज के क्षेत्रों में डॉक्टरों की नियुक्ति और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की संख्या बढ़ानी चाहिए।
3. कड़े नियम और कानून
दवाओं की बिक्री के लिए डॉक्टर की पर्ची अनिवार्य होनी चाहिए। इसके अलावा, फार्मासिस्ट को भी उचित प्रशिक्षण देना चाहिए।
4. लोगों को सही विकल्प प्रदान करना
सरकार और स्थानीय निकायों को सस्ती और सुलभ चिकित्सा सेवाएं उपलब्ध करानी चाहिए, ताकि लोग डॉक्टर के पास जाने से न बचें।
भारत में स्व-चिकित्सा और उच्च खुराक वाली दवाओं का उपयोग एक बड़ी चुनौती है। पैरासिटामोल और अन्य दवाओं की बढ़ती खुराक के पीछे लोगों की अनभिज्ञता, तेज राहत की चाह, और डॉक्टर की अनुपलब्धता जैसे कारण हैं। यह प्रथा न केवल स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है, बल्कि लंबे समय में चिकित्सा प्रणाली पर बोझ बढ़ा सकती है। Self-medication
समाधान के लिए जागरूकता, शिक्षा, और चिकित्सा सुविधाओं की सुधार की आवश्यकता है। यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि दवाओं का उपयोग केवल डॉक्टर की सलाह से ही हो, ताकि लोग सुरक्षित और स्वस्थ जीवन जी सकें। Self-medication
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