माकपा के वरिष्ठ नेता सीताराम येचुरी का निधन: भारतीय राजनीति को बड़ा झटका

Sitaram Yechury passes away | माकपा के वरिष्ठ नेता सीताराम येचुरी का निधन: भारतीय राजनीति को बड़ा झटका

Sitaram Yechury passes away | भारतीय राजनीति के एक प्रमुख स्तंभ और मार्क्सवादी विचारधारा के प्रखर नेता, सीताराम येचुरी का निधन 72 वर्ष की आयु में हो गया। वे भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के महासचिव और पार्टी के संसदीय समूह के नेता के रूप में अपनी पहचान बना चुके थे। उनका निधन भारतीय वामपंथी राजनीति के लिए एक बड़ा नुकसान है। उन्होंने जीवनभर [सामाजिक न्याय](Social Justice), [आर्थिक समानता](Economic Equality) और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों के लिए संघर्ष किया।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

सीताराम येचुरी का जन्म 12 अगस्त 1952 को चेन्नई में एक तेलुगु भाषी ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता [इंडियन रेलवे](Indian Railway) में कार्यरत थे। येचुरी की प्रारंभिक शिक्षा [दिल्ली विश्वविद्यालय](Delhi University) के सेंट स्टीफन्स कॉलेज में हुई, जहां से उन्होंने अर्थशास्त्र में स्नातक किया। इसके बाद वे [जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय](Jawaharlal Nehru University) (जेएनयू) में आगे की पढ़ाई के लिए दाखिल हुए, जहां उनका राजनीतिक सफर शुरू हुआ। जेएनयू में रहते हुए, येचुरी को आपातकाल के दौरान गिरफ्तार किया गया था, जो उनके राजनीतिक जीवन की महत्वपूर्ण घटना रही।

राजनीतिक सफर

सीताराम येचुरी का राजनीति में प्रवेश 1974 में हुआ जब वे [जेएनयू छात्र संघ](JNU Student Union) के अध्यक्ष चुने गए। इस पद पर वे तीन बार लगातार चुने गए, जो उनके नेतृत्व क्षमता का प्रतीक था। इसके बाद 1984 में उन्हें [भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी)](Communist Party of India – Marxist) की केंद्रीय समिति में शामिल किया गया। उन्होंने धीरे-धीरे पार्टी के भीतर अपनी जगह बनाई और 2015 में वे पार्टी के महासचिव चुने गए।

राज्यसभा सदस्य के रूप में योगदान

सीताराम येचुरी को 2005 में पश्चिम बंगाल से [राज्यसभा](Rajya Sabha) के सदस्य के रूप में चुना गया। राज्यसभा में रहते हुए उन्होंने कई महत्वपूर्ण मुद्दे उठाए, जिनमें [कृषि सुधार](Agricultural Reforms), [मजदूर अधिकार](Labor Rights) और [श्रम कानूनों](Labor Laws) में बदलाव शामिल थे। सदन में उनके योगदान को देखते हुए उन्हें 2016 में ‘सर्वश्रेष्ठ सांसद’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियां

पिछले कुछ समय से सीताराम येचुरी का स्वास्थ्य ठीक नहीं चल रहा था। हाल ही में उनकी मोतियाबिंद की सर्जरी हुई थी और उसके बाद उन्हें [फेफड़ों में संक्रमण](Lung Infection) की समस्या के कारण एम्स में भर्ती किया गया था। उनकी इस बीमारी ने उन्हें काफी कमजोर कर दिया था और अंततः 72 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया।

हाल के राजनीतिक घटनाक्रम में भूमिका

अपने अंतिम दिनों में भी, सीताराम येचुरी ने कई राजनीतिक मुद्दों पर अपनी बेबाक राय रखी। उन्होंने कोलकाता की एक घटना पर बयान दिया और नए आपराधिक कानूनों के खिलाफ दायर याचिका में [विपक्षी गठबंधन इंडिया](Opposition Alliance INDIA) का समर्थन किया। वामपंथी विचारधारा के कट्टर समर्थक के रूप में, येचुरी हमेशा अपनी पार्टी और उसकी नीतियों के प्रति समर्पित रहे।

वामपंथी राजनीति में योगदान

सीताराम येचुरी का नाम हमेशा [वामपंथी राजनीति](Left-wing Politics) में एक विशेष स्थान रखेगा। उन्होंने न केवल भारत में [कम्युनिस्ट आंदोलन](Communist Movement) को मजबूत किया, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी वामपंथी नेताओं के साथ संबंध बनाए। उनके नेतृत्व में, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) ने कई राज्यों में मजबूत स्थिति हासिल की, विशेषकर पश्चिम बंगाल, केरल और त्रिपुरा में।

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निजी जीवन

सीताराम येचुरी के निजी जीवन की बात करें तो उनका विवाह सीता येचुरी से हुआ, जिनसे उनके दो बच्चे हैं। उनका बेटा आशीष कुछ वर्षों पहले निधन हो गया था, जो येचुरी के जीवन में एक बड़ी व्यक्तिगत क्षति थी। इसके बावजूद उन्होंने अपने राजनीतिक कर्तव्यों को पूरी निष्ठा से निभाया।

भारतीय राजनीति में उनकी विरासत

सीताराम येचुरी का निधन भारतीय राजनीति के लिए एक बड़ी क्षति है। वे एक ऐसे नेता थे जिन्होंने हमेशा [सामाजिक समानता](Social Equality), [श्रमिक अधिकार](Labor Rights), और [न्यायपूर्ण समाज](Just Society) के लिए संघर्ष किया। उनकी मौत के साथ, भारतीय राजनीति ने एक प्रखर, विचारशील और प्रतिबद्ध नेता खो दिया है। उनके विचार और सिद्धांत हमेशा उनकी विरासत के रूप में जीवित रहेंगे।

अंतिम शब्द

सीताराम येचुरी का निधन न केवल भारतीय वामपंथी राजनीति के लिए बल्कि पूरे भारतीय राजनीतिक परिदृश्य के लिए एक बड़ा झटका है। वे एक ऐसे नेता थे जिन्होंने अपने सिद्धांतों और विचारधारा के साथ कभी समझौता नहीं किया। उनके संघर्ष, नेतृत्व और निस्वार्थ सेवा को हमेशा याद रखा जाएगा।

निधन के बाद, वामपंथी दलों और उनके समर्थकों के बीच शोक की लहर है। उनके योगदान को देखते हुए, भारतीय राजनीति में उनका नाम सदैव एक महान नेता के रूप में गिना जाएगा।

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