अगर महिला काफी पढ़ी-लिखी है, तो उसे एलिमनी मांगने की बजाय खुद कमाकर खाना चाहिए : सुप्रीम कोर्ट

अगर महिला काफी पढ़ी-लिखी है, तो उसे एलिमनी मांगने की बजाय खुद कमाकर खाना चाहिए : सुप्रीम कोर्ट

Supreme Court on Alimony for Educated Women | नई दिल्ली, 23 जुलाई 2025, सुबह 11:48 IST: सुप्रीम कोर्ट में एक तलाक मामले की सुनवाई के दौरान उस वक्त सनसनी फैल गई, जब एक महिला ने अपने पति से गुजारा भत्ता (एलिमनी) के तौर पर मुंबई में एक लग्जरी फ्लैट, 12 करोड़ रुपये की नकद राशि, और एक BMW कार की मांग कर दी। इस असामान्य और भारी-भरकम मांग पर भारत के चीफ जस्टिस बी.आर. गवई ने नाराजगी जताई और महिला को सख्त लहजे में कहा कि वह पढ़ी-लिखी और सक्षम है, इसलिए उसे खुद कमाना चाहिए, न कि मांगना। यह मामला न केवल कानूनी हलकों में चर्चा का विषय बन गया, बल्कि सोशल मीडिया पर भी तीखी बहस छेड़ दी है। आइए, इस मामले की पूरी कहानी और इसके सियासी-समाजिक पहलुओं पर गहराई से नजर डालते हैं। Supreme Court on Alimony for Educated Women

यह मामला एक ऐसे दंपति से जुड़ा है, जिनकी शादी महज 18 महीने चली और इसके बाद पति ने तलाक की अर्जी दायर की। सुनवाई के दौरान महिला ने कोर्ट में दावा किया कि उसका पति संपन्न परिवार से है और दो बिजनेस चलाता है, इसलिए वह उसकी संपत्ति पर हकदार है। उसने अपनी मांगों में मुंबई के प्रतिष्ठित कल्पतरु बिल्डर के फ्लैट, 12 करोड़ रुपये की राशि, और एक लग्जरी BMW कार शामिल की। उसने यह भी आरोप लगाया कि शादी के बाद पति ने उसे नौकरी छोड़ने के लिए मजबूर किया, जिसके कारण वह वित्तीय रूप से निर्भर हो गई।

महिला ने कोर्ट को बताया कि वह आईटी क्षेत्र में काम कर चुकी है, एक प्रतिष्ठित कंपनी में नौकरी कर चुकी है, और एमबीए की डिग्री धारक है। उसका कहना था कि पति ने उसे मानसिक रूप से प्रताड़ित किया और “स्किजोफ्रेनिक” (मानसिक रोगी) कहकर तलाक की मांग की। दूसरी ओर, पति के वकील ने कोर्ट में दलील दी कि पति ने सिटीबैंक की नौकरी छोड़ने के बाद आमदनी में कमी देखी है और वर्तमान में वह दो छोटे बिजनेस से गुजर-बसर कर रहा है।

CJI की सख्त टिप्पणी

चीफ जस्टिस बी.आर. गवई ने महिला की मांगों को सुनकर हैरानी जताई और सवाल किया, “आपकी शादी सिर्फ 18 महीने चली और आप हर महीने के लिए एक करोड़ रुपये की मांग कर रही हैं?” उन्होंने महिला की शैक्षिक योग्यता और अनुभव का हवाला देते हुए कहा, “आप इतनी पढ़ी-लिखी और काबिल हैं, फिर मांगने की बजाय खुद क्यों नहीं कमातीं?” CJI ने सुझाव दिया कि वह मुंबई के फ्लैट से संतुष्ट हो और पुणे, हैदराबाद, या बेंगलुरु जैसे आईटी हब्स में नौकरी शुरू करे।

गवई ने यह भी स्पष्ट किया कि महिला अपने ससुराल की संपत्ति पर कोई कानूनी दावा नहीं कर सकती, क्योंकि भारतीय कानून के तहत एलिमनी केवल पति की व्यक्तिगत आय और संपत्ति से संबंधित होती है। उन्होंने महिला को चार करोड़ रुपये लेकर नई शुरुआत करने की सलाह दी और जोर देकर कहा कि उसकी काबिलियत को देखते हुए मांगने की बजाय आत्मनिर्भर बनना बेहतर होगा।

कानूनी और सामाजिक संदर्भ

यह मामला भारतीय न्यायपालिका में गुजारा भत्ता और तलाक के मुद्दों पर चल रही बहस को फिर से उजागर करता है। सुप्रीम कोर्ट ने हाल के वर्षों में कई फैसलों में स्पष्ट किया है कि एलिमनी पति की वित्तीय स्थिति और पत्नी की जरूरतों के आधार पर तय की जाती है, न कि उसकी विलासिता की मांगों को पूरा करने के लिए। 2019 के एक ऐतिहासिक फैसले में कोर्ट ने कहा था कि पढ़ी-लिखी और कामकाजी महिलाओं को आत्मनिर्भर बनना चाहिए, जब तक कि असाधारण परिस्थितियां न हों।

हालांकि, इस मामले में महिला का दावा है कि पति ने उसे नौकरी छोड़ने के लिए मजबूर किया, जो एक जटिल पहलू है। पति के वकील ने कोर्ट में पेश किए गए टैक्स रिटर्न से यह साबित करने की कोशिश की कि उनकी आमदनी में कमी आई है, लेकिन महिला का कहना है कि पति का बिजनेस छिपा हुआ मुनाफा कमा रहा है। यह दावा अभी जांच के दायरे में है।

सोशल मीडिया पर प्रतिक्रिया

CJI गवई की टिप्पणी सोशल मीडिया पर वायरल हो गई है। कई यूजर्स ने उनकी बात का समर्थन करते हुए कहा कि महिलाओं को आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ना चाहिए, जबकि कुछ ने इसे लैंगिक पक्षपात का मामला बताया। एक ट्वीट में यूजर ने लिखा, “CJI सही हैं, पढ़ी-लिखी महिला को मांगने की बजाय कमाना चाहिए।” दूसरी ओर, एक महिला कार्यकर्ता ने कहा, “यह फैसला महिलाओं की वित्तीय निर्भरता को बढ़ावा देगा, लेकिन घरेलू हिंसा और मानसिक प्रताड़ना के मामलों पर ध्यान देना भी जरूरी है।”

सियासी और सामाजिक निहितार्थ

यह मामला सियासी दलों के लिए भी चर्चा का विषय बन गया है। विपक्षी दलों ने इसे महिलाओं के अधिकारों और आर्थिक स्वतंत्रता के संदर्भ में उठाया, जबकि सत्तारूढ़ पार्टी ने इसे पारिवारिक मूल्यों और जिम्मेदारी का मुद्दा बताया। कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि यह फैसला भविष्य में एलिमनी के मामलों में एक मिसाल कायम कर सकता है, खासकर उन मामलों में जहां दोनों पक्ष वित्तीय रूप से सक्षम हैं।

सामाजिक स्तर पर, यह घटना यह सवाल उठाती है कि क्या पढ़ी-लिखी महिलाओं को तलाक के बाद भी पति पर निर्भर रहने का हक है, या उन्हें खुद की जिम्मेदारी लेनी चाहिए। कई संगठनों ने मांग की है कि सरकार को ऐसी महिलाओं के लिए पुनर्वास और रोजगार प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू करने चाहिए।

कोर्ट का रुख और भविष्य

सुनवाई के दौरान कोर्ट ने अपना आदेश सुरक्षित रख लिया है और अगली तारीख 29 जुलाई 2025 को तय की गई है। CJI गवई की अगुआई वाली बेंच इस मामले में दोनों पक्षों के दावों की गहन जांच करेगी, जिसमें पति की वास्तविक आय और महिला की मानसिक स्थिति भी शामिल होगी। यह फैसला न केवल इस दंपति के भविष्य को प्रभावित करेगा, बल्कि पूरे देश में तलाक और एलिमनी के कानूनी ढांचे पर भी असर डालेगा। Supreme Court on Alimony for Educated Women

सुप्रीम कोर्ट में यह मामला केवल एक तलाक विवाद से कहीं अधिक है; यह आत्मनिर्भरता, लैंगिकसमानता, और कानूनीजिम्मेदारी के सवालों को उठाता है। CJI बी.आर. गवई की सख्त टिप्पणी ने यह स्पष्ट कर दिया कि कोर्ट अब ऐसी मांगों को गंभीरता से परखेगा, जो विलासिता पर आधारित हों। आने वाले दिनों में यह फैसला भारतीय समाज और न्यायपालिका के लिए एक महत्वपूर्णदिशा-निर्देश बन सकता है, जो महिलाओं को सशक्त बनाने और पारिवारिकविवादों को सुलझाने में मददगार साबित होगा। Supreme Court on Alimony for Educated Women


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