महाराष्ट्र के ठाणे में जमीन कब्जा 17000 स्क्वायर फीट में फ़ैल गई दरगाह
Thane Dargah Demolition Case | बॉम्बे हाई कोर्ट ने महाराष्ट्र के ठाणे जिले में गज़ी सलाउद्दीन रेहमतुल्ला होल उर्फ परदेसी बाबा दरगाह के अवैध निर्माण को गिराने से रोक लगाने की याचिका को खारिज कर दिया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि किसी स्थान पर भीड़ या लोगों की आवाजाही के आधार पर अवैध निर्माण को वैध नहीं ठहराया जा सकता। यह दरगाह, जो मूल रूप से 160 वर्ग फुट में थी, बिना किसी वैध अनुमति के 17,610 वर्ग फुट तक फैल गई थी। कोर्ट ने इसे निजी जमीन पर अतिक्रमण का “क्लासिक मामला” करार देते हुए ठाणे नगर निगम (TMC) को विध्वंस कार्यवाही जारी रखने का आदेश दिया। Thane Dargah Demolition Case
कोर्ट का फैसला और तर्क
बॉम्बे हाई कोर्ट के जस्टिस अजय गडकरी और कमल खाटा की खंडपीठ ने 9 जुलाई 2025 को अपने आदेश में कहा कि गज़ी सलाउद्दीन रेहमतुल्ला होल उर्फ परदेसी बाबा ट्रस्ट ने न तो जमीन खरीदी और न ही निर्माण के लिए कोई वैध अनुमति प्राप्त की। कोर्ट ने ट्रस्ट के इस दावे को खारिज कर दिया कि सहायक चैरिटी आयुक्त द्वारा जारी सार्वजनिक नोटिस से उनकी जमीन पर स्वामित्व सिद्ध हो जाता है।
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा, “हम यह स्वीकार नहीं कर सकते कि किसी स्थान पर भीड़ या लोगों की आवाजाही के आधार पर यह सिद्ध हो जाता है कि वह एक वैध संरचना है। यह जमीन हड़पने का एक स्पष्ट मामला है, और ऐसी गतिविधियों को कोर्ट की मंजूरी नहीं दी जा सकती।” कोर्ट ने यह भी उल्लेख किया कि ट्रस्ट ने ठाणे नगर निगम द्वारा जारी विध्वंस नोटिस का जवाब देने या सुनवाई में भाग लेने में कोई रुचि नहीं दिखाई।
सिविल कोर्ट का निर्णय और ट्रस्ट का दावा
ठाणे के संयुक्त सिविल जज (सीनियर डिवीजन) ने 5 अप्रैल 2025 को अपने फैसले में स्पष्ट किया कि ट्रस्ट ने निजी जमीन पर अतिक्रमण किया है और न तो वह जमीन का मालिक है और न ही उसने प्रतिकूल कब्जे (adverse possession) के माध्यम से स्वामित्व सिद्ध किया। ट्रस्ट ने यह भी स्वीकार किया था कि 1982 के सरकारी गजट में उल्लिखित दरगाह एक अलग संपत्ति पर थी, न कि विवादित जमीन पर। इस आधार पर, हाई कोर्ट ने ट्रस्ट के दावों को पूरी तरह खारिज कर दिया।
मामले का इतिहास
यह विवाद ठाणे जिले के बोरीवड़े गांव में स्थित गज़ी सलाउद्दीन रेहमतुल्ला होल उर्फ परदेसी बाबा दरगाह से संबंधित है। ठाणे नगर निगम (TMC) ने जनवरी 2025 में इस संरचना को अवैध घोषित किया था, क्योंकि इसके लिए कोई नगरपालिका अनुमति नहीं ली गई थी। TMC के अनुसार, दरगाह का क्षेत्रफल 160 वर्ग फुट से बढ़कर 17,610 वर्ग फुट तक पहुंच गया, जो निजी जमीन पर बिना अनुमति के किया गया विस्तार था।
TMC ने जनवरी में विध्वंस नोटिस जारी किया, जिसका ट्रस्ट ने कोई जवाब नहीं दिया। इसके बाद, 30 अप्रैल 2025 को हाई कोर्ट ने TMC के विध्वंस आदेश को सही ठहराया। ट्रस्ट ने सुप्रीम कोर्ट में इस आदेश को चुनौती दी, जहां 17 जून 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने ट्रस्ट को हाई कोर्ट में दोबारा याचिका दायर करने की अनुमति दी। हालांकि, 9 जुलाई 2025 को हाई कोर्ट ने ट्रस्ट की अंतरिम याचिका को खारिज कर दिया, जिसका विस्तृत आदेश 22 जुलाई को उपलब्ध हुआ।
ट्रस्ट के तर्क और कोर्ट की प्रतिक्रिया
ट्रस्ट ने दावा किया कि यह दरगाह 1982 से पहले से मौजूद थी और यह एक मजहबी केंद्र है। उन्होंने 1982 के सरकारी गजट, 1989 के भूमि रिकॉर्ड, और चैरिटी आयुक्त के तहत पंजीकरण का हवाला दिया। हालांकि, कोर्ट ने पाया कि ये दस्तावेज न तो स्वामित्व सिद्ध करते हैं और न ही निर्माण के लिए अनुमति दर्शाते हैं। कोर्ट ने यह भी कहा कि केवल यह दावा कि संरचना एक दरगाह है, इसे वैध नहीं बनाता। ट्रस्ट को अपनी संरचना और जमीन पर अधिकार सिद्ध करने के लिए उचित कानूनी प्रक्रिया में इसे साबित करना होगा।
सामाजिक और कानूनी प्रभाव
बॉम्बे हाई कोर्ट ने अपने फैसले में इस बात पर जोर दिया कि कानून का उल्लंघन करने वाली किसी भी संस्था को मजहबी आधार पर अवैध निर्माण को वैध ठहराने की अनुमति नहीं दी जा सकती। कोर्ट ने कहा कि ऐसी गतिविधियां सामाजिक अशांति को बढ़ावा दे सकती हैं और सामाजिक ताने-बाने को कमजोर करती हैं। कोर्ट ने ठाणे नगर निगम को निर्देश दिया कि वह विध्वंस प्रक्रिया को दो सप्ताह के भीतर पूरा करे।
यह मामला महाराष्ट्र में अवैध निर्माणों और अतिक्रमण के खिलाफ चल रही कार्रवाइयों का हिस्सा है। हाई कोर्ट ने पहले भी इस तरह के मामलों में सख्त रुख अपनाया है, जिसमें यह स्पष्ट किया गया है कि “पहले निर्माण करो, फिर नियमित करो” की मानसिकता को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
हाई कोर्ट ने ठाणे नगर निगम को विध्वंस कार्यवाही को तुरंत आगे बढ़ाने और इसेआदेश अपलोड होने के दो सप्ताह के भीतर पूरा करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने यह भी सुनिश्चित करने को कहा कि इस स्थान पर कोईपुनर्निर्माण न हो। यह फैसला न केवलइस मामले में, बल्कि भविष्य में अवैध निर्माणों के खिलाफ सख्त कार्रवाई के लिए भी एक मिसालकायम करता है। Thane Dargah Demolition Case
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मैं इंदर सिंह चौधरी वर्ष 2005 से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय हूं। मैंने मास कम्यूनिकेशन में स्नातकोत्तर (M.A.) किया है। वर्ष 2007 से 2012 तक मैं दैनिक भास्कर, उज्जैन में कार्यरत रहा, जहाँ पत्रकारिता के विभिन्न पहलुओं का व्यावहारिक अनुभव प्राप्त किया।
वर्ष 2013 से 2023 तक मैंने अपना मीडिया हाउस ‘Hi Media’ संचालित किया, जो उज्जैन में एक विश्वसनीय नाम बना। डिजिटल पत्रकारिता के युग में, मैंने सितंबर 2023 में पुनः दैनिक भास्कर से जुड़ते हुए साथ ही https://mpnewsbrief.com/ नाम से एक न्यूज़ पोर्टल शुरू किया है। इस पोर्टल के माध्यम से मैं करेंट अफेयर्स, स्वास्थ्य, ज्योतिष, कृषि और धर्म जैसे विषयों पर सामग्री प्रकाशित करता हूं। फ़िलहाल मैं अकेले ही इस पोर्टल का संचालन कर रहा हूं, इसलिए सामग्री सीमित हो सकती है, लेकिन गुणवत्ता से कोई समझौता नहीं होता।