उज्जैन के चौबीस खंभा मंदिर में देवी महामाया-महालया को अष्टमी की नगर पूजा पर कलेक्टर लगाते हैं मदिरा का भोग

उज्जैन के चौबीस खंभा मंदिर में देवी महामाया-महालया को अष्टमी की नगर पूजा पर कलेक्टर लगाते हैं मदिरा का भोग

Ujjain News | शारदीय नवरात्रि के प्रारंभ के साथ ही मध्य प्रदेश के उज्जैन में स्थित प्राचीन चौबीस खंभा मंदिर भक्ति और आस्था का केंद्र बन गया है। 9वीं-10वीं शताब्दी में निर्मित यह मंदिर देवी महामाया और महालया माता का प्रमुख स्थल है, जो भक्तों और समस्त नगर को अनिष्टों से बचाने वाली मानी जाती हैं। 1400 वर्ष से अधिक पुरानी इस वास्तुकला की अनूठी कृति में 24 नक्काशीदार खंभे हैं, जो गुप्त स्थापत्य शैली का उत्कृष्ट उदाहरण हैं। नवरात्रि के दौरान यहां दूर-दूर से श्रद्धालु दर्शन और पूजा के लिए पहुंच रहे हैं। आइए जानते हैं इस मंदिर के इतिहास, धार्मिक महत्व, विशेष परंपराओं और चमत्कारिक इलाज के बारे में विस्तार से।

मंदिर का ऐतिहासिक और वास्तुशिल्पीय महत्व

चौबीस खंभा मंदिर उज्जैन के महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर परिसर का अभिन्न हिस्सा है और प्राचीन काल में अवंतिका (उज्जैन) का मुख्य द्वार माना जाता था। पौराणिक कथाओं के अनुसार, राजा विक्रमादित्य ने इस मंदिर का मूल निर्माण कराया था, जो महाकाल वन में प्रवेश का द्वार था। बाद में परमार राजाओं ने इसका जीर्णोद्धार कराया। मंदिर के 24 जटिल नक्काशीदार स्तंभों पर पौराणिक दृश्य, देवताओं की मूर्तियां और पुष्प आकृतियां उकेरी गई हैं, जो इसकी गुप्त शैली को दर्शाती हैं। मुख्य द्वार पर दो सिंह मूर्तियां स्थापित हैं, जो शक्ति और वीरता का प्रतीक हैं। मान्यता है कि इन्हीं देवियों को प्रसन्न करने पर राजा विक्रमादित्य को राज्य प्राप्त हुआ था। जयसिंहपुरा के गुदरी चौराहे पर स्थित यह मंदिर देवी महामाया और महालया का प्रवेश द्वार भी कहा जाता है।

नवरात्रि की विशेष परंपरा: मदिरा भोग और नगर पूजा

मंदिर की सबसे अनोखी परंपरा नवरात्रि की महाअष्टमी (अष्टमी) पर होती है, जब नगर पूजा का आयोजन किया जाता है। इस दिन जिला कलेक्टर स्वयं माता महामाया और महालया को मदिरा का भोग लगाते हैं। भोग के बाद मदिरा की धार 27 किलोमीटर की दूरी तय कर 40 मंदिरों तक बहाई जाती है, जहां बूंद-बूंद गिराकर बाल बाकल का भोग चढ़ाया जाता है। यह कार्य पटवारी, वसूली पटेल और चौकीदार मिलकर करते हैं। राजा विक्रमादित्य काल से चली आ रही यह परंपरा महामारी, आपदा से बचाव और नगर की समृद्धि के लिए की जाती है। इस वर्ष भी 1 अक्टूबर 2025 को अष्टमी पर यह धार्मिक आयोजन होगा, जिसकी तैयारियां जोरों पर हैं।

चमत्कारिक इलाज: पीलिया, टाइफाइड और नजर उतारना

चौबीस खंभा मंदिर केवल धार्मिक स्थल ही नहीं, बल्कि चिकित्सकीय चमत्कारों के लिए भी प्रसिद्ध है। यहां नजर, पीलिया (जॉन्डिस) और मोतीझरा (टाइफाइड) जैसी बीमारियों का पारंपरिक इलाज किया जाता है। पुजारी सूंघकर और आंखों से देखकर बीमारी का पता लगाते हैं। पीलिया या टाइफाइड की पुष्टि होने पर विशेष जड़ी-बूटियों की दवा दी जाती है, जिसका दावा है कि 5 दिनों में रोगी ठीक हो जाता है। इसके अलावा ताबीज, विशेष तेल और सलाह दी जाती है—जैसे दूध, केला और पोहा न खाना, तथा 5 दिनों तक नहाने से परहेज। नजर उतारने के लिए नींबू का प्रयोग किया जाता है, और देवी स्पर्श के बाद झाड़ना दिया जाता है। बड़ी संख्या में लोग इस चमत्कारिक इलाज के लिए दूर-दूर से आते हैं, जो मंदिर की लोकप्रियता को दर्शाता है।

पूजा-पाठ और दर्शन की व्यवस्था

मंदिर में देवी महामाया और महालया मुख्य गेट के दोनों ओर विराजमान हैं। दर्शन पूरे समय उपलब्ध रहते हैं, जबकि आरती सुबह 7 बजे और शाम 7:30 बजे होती है। नवरात्रि के दौरान विशेष पूजन, भजन और हवन का आयोजन होता है। मंदिर प्रशासन भक्तों की सुविधा के लिए प्रसाद वितरण और सुरक्षा व्यवस्था सुनिश्चित करता है।

मंदिर की विशेषताएं और आध्यात्मिक महत्व

  • स्थान: जयसिंहपुरा, गुदरी चौराहा, महाकालेश्वर मंदिर के निकट।
  • विशेषताएं: 24 नक्काशीदार खंभे, गुप्त स्थापत्य शैली, सिंह मूर्तियां।
  • धार्मिक महत्व: महामाया और महालया माता अनिष्ट नाशक मानी जाती हैं; मंदिर प्राचीन द्वार का अवशेष है।
  • इतिहास: विक्रमादित्य द्वारा स्थापना (9वीं-10वीं शताब्दी), परमारों द्वारा जीर्णोद्धार।
  • परंपरा: मदिरा भोग से महामारी रक्षा, जो विक्रमादित्य काल से चली आ रही है।

शारदीय नवरात्रि 2025 में चौबीस खंभा मंदिर भक्ति, इतिहासऔर चमत्कारों का अनोखा संगमप्रस्तुत कर रहा है। श्रद्धालुमाता की कृपा के लिए यहां पहुंच रहे हैं, जो उज्जैन की सनातन परंपराओं को जीवंत रखता है। यदि आप नवरात्रि के दौरान दर्शन करने की योजना बना रहे हैं, तो भीड़ और स्थानीय परंपराओं का ध्यान रखें। Ujjain News


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