उज्जैन: आस्था, शराब और शराबबंदी का अनोखा संगम

उज्जैन: आस्था, शराब और शराबबंदी का अनोखा संगम

Ujjain Sharab Bandi उज्जैन – जहाँ हर गली में बाबा महाकाल की गूंज सुनाई देती है, जहाँ क्षिप्रा नदी के किनारे आस्था का मेला लगता है, और जहाँ प्राचीन मंदिरों की घंटियाँ समय को पीछे ले जाती हैं। यह धार्मिक नगरी अपनी सांस्कृतिक समृद्धि और आध्यात्मिक ऊर्जा के लिए जानी जाती है। लेकिन 1 अप्रैल 2025 से मध्य प्रदेश सरकार ने उज्जैन सहित 17 धार्मिक शहरों में शराबबंदी लागू कर दी है। यह कदम जहाँ कुछ के लिए पवित्रता की जीत है, वहीं उज्जैन के लिए यह एक अनोखा सवाल खड़ा करता है – क्या शराब यहाँ सिर्फ नशा है, या आस्था का हिस्सा भी? Ujjain Sharab Bandi

काल भैरव: भक्त और शराब का भोग

उज्जैन का काल भैरव मंदिर कोई साधारण तीर्थ नहीं। यहाँ भगवान काल भैरव, जो महाकाल के रक्षक माने जाते हैं, को रोज़ मदिरा चढ़ाई जाती है। कहते हैं कि उनकी मूर्ति शराब को सचमुच “पी” लेती है – एक रहस्य जो विज्ञान को भी हैरान करता है। पहले मंदिर के बाहर शराब का काउंटर था, जहाँ भक्त बोतल खरीदते और भोग लगाते थे। कुछ इसे प्रसाद मानकर ग्रहण भी करते। यह परंपरा यहाँ की पहचान का हिस्सा बन चुकी है। लेकिन अब शराबबंदी ने इस रिवाज पर सवालिया निशान लगा दिया है।

भूखी माता और नगरकोट की रानी: त्योहारों का स्वाद

काल भैरव अकेले नहीं। भूखी माता और नगरकोट की महारानी मंदिरों में भी नवरात्रि जैसे खास मौकों पर शराब का भोग लगता है। यहाँ शराब सिर्फ पेय नहीं, बल्कि श्रद्धा का प्रतीक है। भक्तों का मानना है कि यह चढ़ावा देवी-देवताओं को प्रसन्न करता है। लेकिन अब, जब शहर में शराब की एक बूंद भी बिकना बंद हो गया है, तो क्या ये परंपराएँ भी खामोश हो जाएँगी? Ujjain Sharab Bandi

शराबबंदी: तारीफ और तकरार

मध्य प्रदेश सरकार का यह फैसला धार्मिकता को नया आयाम देने की कोशिश है। मुख्यमंत्री मोहन यादव इसे “संस्कृति की रक्षा” कहते हैं। कई संत और स्थानीय लोग इसे हाथोंहाथ ले रहे हैं। उनका कहना है कि शराब से मुक्ति उज्जैन की पवित्रता को और गहरा करेगी। लेकिन दूसरी तरफ, काल भैरव के भक्त और परंपरावादी इसे गलत ठहरा रहे हैं। उनका सवाल है – अगर शराब आस्था का हिस्सा है, तो इसे कैसे बैन किया जा सकता है?

प्रशासन का जवाब: बाहर से लाओ, लेकिन…

प्रशासन ने बीच का रास्ता निकाला। कलेक्टर नीरज कुमार सिंह कहते हैं, “भक्त बाहर से शराब लाकर भोग लगा सकते हैं। मंदिरों की परंपरा पर कोई रोक नहीं।” मंदिर समितियों को भी इसकी व्यवस्था करने को कहा गया है। लेकिन यहाँ पेंच है – भक्तों को डर है कि शराब की बोतल लेकर शहर में घुसते ही पुलिस और आबकारी विभाग उन्हें निशाना बना सकता है। क्या आस्था के नाम पर बोतल ढोना इतना आसान होगा?

भक्तों का डर: आस्था या आफत?

“हम शराब नहीं पीते, भगवान को चढ़ाते हैं। लेकिन पुलिस को कैसे समझाएँ?” – एक भक्त की यह बात कईयों की चिंता बयान करती है। शराबबंदी के बाद परिवहन का यह डर भक्तों के मन में घर कर गया है। वे पूछते हैं – क्या सरकार उनकी आस्था को सुविधा देगी, या इसे कानूनी उलझन में फँसा देगी?

एक नई राह की तलाश

उज्जैन आज दोराहे पर खड़ा है। एक तरफ शराबबंदी से पवित्रता की उम्मीद, दूसरी तरफ परंपराओं के टूटने का खतरा। क्या सरकार कोई ऐसा रास्ता निकालेगी, जहाँ मंदिरों के लिए शराब की सीमित व्यवस्था हो सके? जैसे, मंदिर समितियों को विशेष परमिट देना या भोग के लिए शराब को “प्रसाद सामग्री” का दर्जा देना। यह न सिर्फ आस्था को बचाएगा, बल्कि शराब के दुरुपयोग पर भी लगाम लगाएगा। Ujjain Sharab Bandi

अंत में…

उज्जैन की कहानी अब सिर्फ महाकाल की जयकारों तक सीमित नहीं। यहाँ शराबबंदी ने एक नया अध्याय जोड़ा है – आस्था और नियमों का अनोखा संगम। आने वाला वक्त बताएगा कि यह नगरी अपनी परंपराओं को कैसे सहेजती है, और सरकार इस तनाव को कैसे सुलझाती है। तब तक, काल भैरव की मूर्ति शायद चुपचाप इंतज़ार कर रही है – अपने भक्तों की भक्ति और उनकी बोतल का। Ujjain Sharab Bandi


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