अजमेर दरगाह को हिंदू मंदिर बताने वाले दावे पर कोर्ट का आया बड़ा अपडेट

अजमेर दरगाह को हिंदू मंदिर बताने वाले दावे पर कोर्ट का आया बड़ा अपडेट

Update on Claim Declaring Ajmer Dargah as Hindu Temple | राजस्थान हाईकोर्ट की जयपुर बेंच ने अजमेर की ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती दरगाह को हिंदू मंदिर बताने वाले दावे से जुड़े एक महत्वपूर्ण मामले में सुनवाई की। यह मामला हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता द्वारा अजमेर की जिला अदालत में दायर याचिका से संबंधित है, जिसमें दावा किया गया है कि दरगाह का निर्माण एक प्राचीन शिव मंदिर को तोड़कर किया गया था। याचिका में दरगाह को “संकट मोचन महादेव मंदिर” घोषित करने, आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (ASI) द्वारा सर्वेक्षण की मांग और हिंदुओं को पूजा-अर्चना की अनुमति देने की मांग की गई है। इस मामले के खिलाफ दरगाह के खादिमों की दो अंजुमनों ने राजस्थान हाईकोर्ट में याचिका दायर की है, जिसमें अजमेर जिला अदालत की चल रही सुनवाई पर रोक लगाने की मांग की गई है। Update on Claim Declaring Ajmer Dargah as Hindu Temple

हाईकोर्ट की सुनवाई और नोटिस

4 अगस्त 2025 को राजस्थान हाईकोर्ट की जयपुर बेंच में इस मामले की सुनवाई हुई। कोर्ट ने भारत सरकार के अल्पसंख्यक मंत्रालय, आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (ASI), और हिंदू सेना के अध्यक्ष विष्णु गुप्ता को नोटिस जारी किए। कोर्ट ने सभी पक्षकारों को दो सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया। सुनवाई के दौरान, याचिकाकर्ताओं की ओर से वकील आशीष कुमार सिंह ने दलीलें पेश कीं, जिसमें सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश का हवाला दिया गया। Update on Claim Declaring Ajmer Dargah as Hindu Temple

सुप्रीम कोर्ट और प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट

याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि सुप्रीम कोर्ट ने अश्विनी कुमार केस में धार्मिक स्थलों से संबंधित विवादों में किसी भी अंतरिम आदेश को जारी करने से देश की सभी अदालतों को रोका है। उन्होंने कहा कि प्लेसेस ऑफ  वर्शिप (विशेष प्रावधान) एक्ट, 1991 के तहत, 15 अगस्त 1947 को धार्मिक स्थलों की जो स्थिति थी, उसे बनाए रखना अनिवार्य है। याचिका में यह भी दावा किया गया कि सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बावजूद, अजमेर की जिला अदालत इस मामले में लगातार सुनवाई कर रही है, पक्षकारों से जवाब मांग रही है और दस्तावेजों को रिकॉर्ड पर ले रही है। यह कार्यवाही सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का उल्लंघन है।

अजमेर जिला अदालत की कार्यवाही

अजमेर की जिला अदालत में यह मामला सितंबर 2024 से चल रहा है, जब विष्णु गुप्ता ने अपनी याचिका दायर की थी। 27 नवंबर 2024 को सिविल जज मन्मोहन चंदेल ने याचिका को स्वीकार करते हुए अल्पसंख्यक मंत्रालय, ASI, और अजमेर दरगाह समिति को नोटिस जारी किए थे। याचिका में दावा किया गया है कि दरगाह के नीचे एक शिवलिंग मौजूद है और इसका निर्माण हिंदू और जैन मंदिरों को तोड़कर किया गया था। गुप्ता ने 1911 में प्रकाशित हर बिलास सरदा की किताब “अजमेर: हिस्टोरिकल एंड डिस्क्रिप्टिव” का हवाला दिया, जिसमें यह उल्लेख है कि दरगाह के तहखाने में महादेव की मूर्ति और एक मंदिर मौजूद था। इसके अलावा, गुप्ता ने 1250 ईस्वी के संस्कृत पांडुलिपि “पृथ्वीराज विजय” का भी जिक्र किया, जिसमें अजमेर के धार्मिक इतिहास का उल्लेख होने का दावा किया गया है।

जिला अदालत में अगली सुनवाई 30 अगस्त 2025 को निर्धारित है। हालांकि, हाईकोर्ट ने अभी तक जिला अदालत की कार्यवाही पर रोक नहीं लगाई है, जिससे यह मामला और जटिल हो गया है।

अंजुमनों का पक्ष

दरगाह के खादिमों की दो अंजुमनें, अंजुमन सैयद जादगान और अंजुमन मोइनिया फखरिया, ने इस मामले में हस्तक्षेप करते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। अंजुमन सैयद जादगान के सचिव सैयद सरवर चिश्ती ने इस याचिका को सांप्रदायिक सौहार्द को नुकसान पहुंचाने का प्रयास बताया। उन्होंने कहा कि अजमेर की दरगाह न केवल मुसलमानों के लिए, बल्कि सभी धर्मों के लोगों के लिए एक पवित्र स्थल है, जो सांप्रदायिक एकता और समन्वय का प्रतीक है। चिश्ती ने यह भी कहा कि ASI का दरगाह पर कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है, क्योंकि यह अल्पसंख्यक मंत्रालय के अधीन है। Update on Claim Declaring Ajmer Dargah as Hindu Temple

अंजुमनों ने यह भी तर्क दिया कि देश की अन्य अदालतें सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन करते हुए ऐसे मामलों में केवल तारीखें दे रही हैं, लेकिन अजमेर की जिला अदालत सक्रिय रूप से सुनवाई कर रही है, जो नियमों का उल्लंघन है।

राजनीतिक और सामाजिक प्रतिक्रियाएं

इस मामले ने राजनीतिक और धार्मिक हलकों में तीखी प्रतिक्रियाएं उत्पन्न की हैं। आम आदमी पार्टी (AAP) के सांसद संजय सिंह ने सुप्रीम कोर्ट से तत्काल हस्तक्षेप की मांग की है, जिसमें उन्होंने प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट का हवाला देते हुए कहा कि ऐसे दावों से देश में अराजकता फैल सकती है। दूसरी ओर, भारतीय जनता पार्टी (BJP) के नेताओं ने इस मामले को एक सामान्य न्यायिक प्रक्रिया बताया और इसे “वोट बैंक की राजनीति” से जोड़ने का आरोप लगाया।

सैयद नासिरुद्दीन चिश्ती, ऑल इंडिया सूफी सज्जादानशीन काउंसिल के अध्यक्ष, ने कहा कि दरगाह समिति इस मामले में कानूनी राय ले रही है और उचित कदम उठाएगी। उन्होंने इस दावे को निराधार और सांप्रदायिक सद्भाव को नुकसान पहुंचाने वाला बताया। Update on Claim Declaring Ajmer Dargah as Hindu Temple

ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व

अजमेर की ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह भारत में सूफी परंपरा का एक प्रमुख केंद्र है, जो 13वीं शताब्दी से सभी धर्मों के लोगों के लिए आस्था का प्रतीक रही है। इसका निर्माण ममलूक सुल्तान इल्तुतमिश के शासनकाल में शुरू हुआ था, और बाद में मुगल सम्राटों हुमायूं और शाहजहां ने इसमें कई जोड़ किए। यह दरगाह अपनी समन्वयवादी संस्कृति के लिए प्रसिद्ध है, जहां हिंदू, मुस्लिम, सिख और अन्य धर्मों के लोग एक साथ पूजा-अर्चना करते हैं। हर साल जनवरी में होने वाला इसका उर्स विश्व भर में प्रसिद्ध है। Update on Claim Declaring Ajmer Dargah as Hindu Temple

कानूनी और सामाजिक प्रभाव

यह मामला हाल के वर्षों में धार्मिक स्थलों को लेकर बढ़ते विवादों की कड़ी में एक और अध्याय जोड़ता है। उत्तर प्रदेश के संभल में शाही जामा मस्जिद के सर्वेक्षण के बाद हुई हिंसा, जिसमें चार लोगों की मौत हो गई थी, ने इस तरह के मामलों की संवेदनशीलता को उजागर किया है। अजमेर दरगाह विवाद ने भी स्थानीय प्रशासन को सतर्क कर दिया है, और विष्णु गुप्ता को पुलिस अधीक्षक वंदिता राणा के निर्देश पर सुरक्षा प्रदान की गई है। Update on Claim Declaring Ajmer Dargah as Hindu Temple

हाईकोर्ट में अगली सुनवाई अगस्त 2025 के तीसरे या चौथे सप्ताह में होने की संभावना है। तब तक यह मामला न केवल कानूनी, बल्कि सामाजिक और राजनीतिक चर्चा का केंद्र बना रहेगा। यह विवादभारत में धार्मिकस्थलों के ऐतिहासिक और सांस्कृतिकमहत्व को लेकर गहरे सवाल उठाता है, साथ ही यह भी परीक्षा लेता है कि क्या देश की न्यायिक प्रणाली सांप्रदायिक सद्भाव को बनाए रखते हुए इन संवेदनशील मुद्दों का समाधान कर सकती है। Update on Claim Declaring Ajmer Dargah as Hindu Temple


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